फेसबुक पर संत कुरियाकोस एलियास चावारा और संत सुफ्रेसिया के बारे में 47 लोगों ने किया लाइक
पटना। अब
पटनाइट भी वेटिंग कर रहे हैं कि कब मदर टरेशा संत द्योषित होगी? वहीं पापा पोप फ्रांसिस को धन्यवाद दे रहे हैं कि उनको धन्य
द्योषित कर दिए गए हैं। हां, संत द्योषित होने
के लिए जो प्रक्रिया चलती है उसे कैनोनाइजेशन कहा जाता है और इसमें कई साल भी लग
जाते हैं। भारतीय ईसाई समुदाय के लिए 23 नवम्बर
को सुपर संडे साबित हुआ। वेटिकन सिटी में दो भारतीयों को संत द्योषित किया गया।
आजतक भारत के केरल प्रदेश से तीन महान आत्मा को संत बनने का अहोभाग्य प्राप्त हुआ
है। वेटिकन द्वारा अबतक सिस्टर अल्फोंसा,फादर
कुरियाकोस एलियास चावारा और सिस्टर यूफ्रेसिया को संत द्योषित किया गया हैं।
कैसे कैनोनाइजेशन की प्रक्रिया होती है शुरू?: ईसाई समुदाय के लोग मर जाते हैं।
उनको विशेष तरह के बॉक्स में रखा जाता है। बॉक्स को बंद करके कब्रिस्तान में दफना
दिया जाता है। मृत व्यक्ति के नाम से प्रार्थना की जाती है। प्रार्थना करने वाले
व्यक्ति की प्रार्थना सुन ली जाती है। तब मृतक के नाम प्रचार-प्रसार किया जाता है।
उसके बाद ही पोप के द्वारा गठित समिति के द्वारा मंथन किया जाता है। गठित समिति के
सदस्य आते हैं। कब्रिस्तान से मृतक के
शरीर की जांच की जाती है। उसके बाद ही कैनोनाइजेशन की प्रक्रिया की शुरूआत की जाती
है। संत केवल याजक ही नहीं बल्कि गैर याजक भी बन सकते हैं।
बस अद्भूत चमत्कार की पड़ती जरूरतः उद्धहारण के तौर पर किसी शख्स को कैंसर रोग हो गया। यहां पर बता दें कि
अद्भूत चमत्कार धर्म, जाति, वर्ग, समुदाय के घेरे में नहीं है। उक्त
कैंसर रोगी को विशेषज्ञ चिकित्सकों के द्वारा जांचोपरांत प्रमाणित तौर पर कैंसर
रोगी करार देते है। चिकित्सक यहां तक कह डालते हैं कि रोगी का कैंसर लास्ट स्टेज
पर है। हमलोगों ने काफी दवा-दारू कर चुके हैं। कुछ दिनों के मेहमान हैं। इतना कहकर
चिकित्सक हाथ खड़ा कर देते हैं। अब गॉड ही सेफ कर सकते हैं। यह सुनकर परिजन हैरान
और परेशान हो उठते हैं। तब जाकर किसी मृत व्यक्ति के ही नाम लेकर प्रार्थना करने
लगते हैं। उनके समक्ष गिड़गिड़ाते रहते हैं। ऐसा करने से रोगी की बेहाल तबीयत में
सुधार होने लगी है। अन्ततः आजकल के मेहमान कैंसर रोगी ठीक हो जाता है। इसके बाद
चिकित्सक ही प्रमाण पत्र जारी करेंगा। वह कैंसर रोग के अंतिम स्टेज पर था। अब वह
पूर्णतः ठीक हो गया है। ऐसा करने वाला धरती का भगवान नहीं हो सकता है, बल्कि अद्भूत चमत्कार गॉड ही कर सकते हैं। इस तरह से दो-तीन
चमत्कारिक पेश करना पड़ता है। उस चमत्कार को रोम के द्वारा गठित समिति के सदस्य
जांच करते हैं। हर पहलू पर गौर करते है। वैज्ञानिक और आध्यात्मिक पक्ष जांचा और
परखा जाता है। तब जाकर ही व्यक्ति को धन्य द्योषित कर बाद में संत की उपाधि दी
जाती है।
भारत की पहली महिला संत अल्फोंसा बनीः यह संयोग देखे कि सदियों पुराने साबरी मालाबार कैथोलिक चर्च से जुड़े हैं
फादर कुरियाकोस एलियास चावारा और सिस्टर यूफ्रेसिया। इसी चर्च से सिस्टर अल्फोंसा
भी जुड़ी हैं। इस तरह तीन लोग अब संत बन चुके हैं। 6 साल पहले ही सिस्टर अल्फोंसा संत की उपाधि पाने वाली पहली भारतीय बनी
थीं। सिस्टर अल्फोंसा 2008 में संत बना
दिया गया था। चर्च स्कॉलर्स के मुताबिक साबरी मालाबार चर्च उस जमाने का है,
जब अपोस्टल सेंट थोमस पहली सदी (एडी) में केरल तट पर आये
थे। वह पूर्वी देशों के उन 22 चर्चों में
शुमार है जो रोम के साथ पूरी तरह जुड़े हुए है। कोट्टयम जिले के पणिद्यान्नम में
संत अल्फोंसा को अंतिम संस्कार किया गया था।
संत कुरियाकोस एलियास चावाराः फादर कुरियाकोस एलियास चावारा को संत द्योषित करने की प्रक्रिया 1984 में शुरू हुई। 23 नवम्बर
को संत द्योषित कर दिया गया। फादर चावारा (1805 से 1871 ) के संबंध में इतिहासकार और समाज
सुधारक भी मानते हैं। वह ऐसे शख्स थे जिन्होंने सिर्फ कैथोलिक ही नहीं बल्कि दूसरे
समुदाय के वंचित बच्चों में भी सेक्युलर एजुकेशन के लिए जोर दिया। उन्होंने जो
पहला संस्थान शुरू किया वह संस्कृत स्कूल ही था। उन्होंने प्रिंटिग प्रेस भी लगायी
और कम्युनिटी लीडर्स को खुद के पब्लिकेशन शुरू करने के लिए प्रेरित किया। तब से
लेकर अब तक उनकी कोशिशों और विजन से प्रेरणा पाकर केरल के भीतर और बाहर कई एजुकेशन
और चैरिटी संस्थाएं खुल चुकी है। उनका जन्म अलपुज्जा जिले के कइनाकरी गांव में 10 फरवरी 1805 को हुआ था। संत
कुरियाकोस एलियास चावरा को कोट्टयम जिले के मान्नमन में दफन किया गया है।
त्रिचुर में यूफ्रेसियम्मा के नाम से मशहुर थीं: सिस्टर सुफ्रेसिया एक आध्यात्मिक
महिला थीं जिन्होंने त्रिचुर के एक कॉन्वेंट में लोगों की मदद करते हुए उम्र बिता
दी। जो भी उससे प्रेयर के जरिए आता या परामर्श करता उसे आध्यात्मिक शांति का अहसास
होता था। उनका जन्म त्रिचुर के अरनाटुकारा में 17 अक्टूबर 1877 में हुआ था। सिस्टर यूफ्रेसिया
त्रिचुर में यूफ्रेसियम्मा के नाम से मशहुर रहीं। उनका निधन 1952 में हुआ था और 1987 में
उन्हें संत द्योषित करने की प्रक्रिया शुरू हुई थी। संत सुफ्रेसिया को एर्णाकुलम
में दफन किया गया।
वेटिकन सिटी के सेंट पीटर्स स्कॉवरः सुपर संडे 23 नवम्बर को वेटिकन सिटी के सेंट
पीटर्स स्कॉवर में विशेष प्रार्थना में पोप फ्रांसिस ने कुरियाकोस एलियास चावारा
और सुफ्रेसिया को संत द्योषित किया। इस
मौके पर केरल से गये कई ईसाई श्रद्धालु भी मौजूद थे। पोप ने जैसे ही वेटिकन में
संतों की द्योषणा की तो केरल भर के चर्चों में खुशी और उमंग का माहौल कायम हो गया।
इस उमंग और हर्ष को एक नये स्वर दिया गया। उत्साहित बड़ी संख्या में श्रद्धालु में
एकत्रित होकर थैंक्स सर्विस और प्रेयर्स के लिए जुटे। खुद वेटिकन में भी द्योषणा
के समय बड़ी संख्या में केरल से गये श्रद्धालु, दो कार्डिनल, बिशप,कलर्जी और नन मौजूद थीं। वहीं संत कुरियाकोस एलियास चावारा और संत
सुफ्रेसिया से जुड़े कोट्टायम के मान्नमन, एर्णाकुलम
के कुनम्मदू और त्रिचुर के ओल्लुर में तो कई दिन पहले से ही खुशी का माहौल बन गया
था।
दोनों नवद्योषित संतों के बारे में फेसबुक पटाः फेसबुक पर सर्वश्री बीजू जोसेफ,जोसफी माननेल, आलोक कुमार,शिवडॉन-शिवडॉन, जेकब थोमस समेत 47 लोगों ने लाइक किया है। वहीं संत कुरियाकोस एलियास चावारा और संत सुफ्रेसिया के बारे में अखबारों में न्यूज वीफ फोटो प्रकाशित की गयी है। कुल मिलाकर अरब सागर के किनारे बसे केरल प्रदेश पर गर्व है। जो शिक्षा और चिकित्सा पर स्थान हासिल करने के बाद संत बनने में भी एकाधिकार प्राप्त कर लिया है।
आलोक कुमार
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