Sunday 1 March 2015

बिहार में नीतीश जी को चुनावी नैया पार लगानी है ?

पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी के फैसले पर 
लेंगे फैसले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार

कटिहार। पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी का 9 मासीय मुख्य मंत्रित्वकाल को तीन हिस्से में विभक्त किया जा सकता है।तीन माह तक कठपुतली बने रहे। तीन माह रिमोर्ट कंट्रौल से निकलने का प्रयास करने लगे। तीन माह धड़ल्ले से फैसले लेते चले गए। उन फैसलों को तीन माह के अंदर लागू कर देने का मसला दिल की अरमान आंसूओं में बहने लगी।इस बीच मंझधार में डूबी नाव को उभारने के लिए अपने साथियों के साथ हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) बना लिए हैं। अपने मुख्य मंत्रित्वकाल के फैसले और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के द्वारा किए गए राजनीतिक नाटक को लेकर अब जनता के बीच में जाने का निश्चय कर लिया है। अब तो इसका परिणाम भविष्य में ही उजागर होगा। 

खैर, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी के द्वारा लिए गए प्रमुख फैसले पटलने के मूड में हैं। ऐसा करने से पुलिसकर्मियों को 13 माह का वेतन, होमगार्ड के दैनिक व यात्रा भत्तों में बढ़ोतरी,सरकारी नौकरियों में महिलाओं को 35 फीसदी आरक्षण(गैड्ेजेट पदों को छोड़कर),पासवान जाति को महादलित में शामिल करना,नियोजित शिक्षकों को वेतनमान के लिए कमेटी का गठन,सरकारी स्कूलों में ललित कला और संगीत शिक्षकों के पदों का सृजन,किसान सलाहकारों का मानदेय बढ़ाकर रू0 7000 करना,मिड डे मील रसोइयों को एक हजार मानदेय देने की केन्द्र से अनुशंसा,स्वामी सहजानंद सरस्वती और कर्पूरी ठाकुर संस्थान की स्थापना,सभी 66 हजार राजस्व गांवों में एक-एक स्वच्छता कर्मी की बहाली,मुख्यमंत्री क्षेत्र विकास योजना के तहत राशि दो से तीन करोड़ करना,विभागों में उर्दू अनुवादक के खाली पदों पर नियुक्ति, मदरसों का कम्प्यूटरीकरण,शिया और सुन्नी वफ्फ बोर्ड को विशेष अनुदान,मुजफ्फरपुर में ट्रैफिक थाना,सांख्यिकी स्वयंसेवक को मानदेय देने के लिए कमेटी,सवर्णों को आरक्षण देने के लिए कमेटी का गठन,विकास मित्र और टोला सेवक की सेवाकाल 25 वर्ष करना,मधुबनी के सौराठ मेले को राजकीय मेले का दर्जा,पथ निर्माण विभाग में 25 लाख तक के ठेके में बीसी-इबीसी और महिलाओं को आरक्षण,बीसी-इबीसी वित्त विकास निगम की स्थापना, एससी-एसटी सफाई कर्मचारी आयोग गठन,301 नये प्रखंडों के सृजन की सैद्धांतिक स्वीकृति और मनरेगा कर्मियों को नियमित करने की पहल पर असर पड़ना लाजिमी है। यह मानकर चले कि पूर्व मुख्यमंत्री ने हाल के दिनों में आंदोलन करने वालों की ही मांग को पूर्ण करने का फैसला लिए हैं। अगर उनकी मांग पर मुख्यमंत्री तलवार चला देंगे तो निश्चित तौर पर हंगामा होना ही है। 

  इस संदर्भ में रोजगार सेवक कुमार सुधांशु चौबे कहते हैं कि चुनावी वर्ष में मांझी सरकार द्वारा ली गयी लोकप्रिय निर्णय को बदलना क्या नीतीश सरकार का सही कदम है ? मेरा मानना है सरकार कोई भी हो लेकिन जो जनता के हित में फैसला लिया गया हो उसे और बेहतर तरीके से लागू किया जाना चाहिए। उसे बदलना घातक हो सकता है।

बिहार में नीतीश जी को चुनावी नैया पार लगानी है तो मांझी जी के फैसलों को लागू करे नहीं तो नीतीश जी जनांदोलन को तैयार रहे। ये आंदोलन उनकी और पार्टी के लिए अति विनाशक होगी।इस समय मनरेगाकर्मी मानदेय पर कार्यरत हैं।इन लोगों को पंचायत सचिव बनाने का आश्वासन भी दिया गया। अभी तक उन आश्वासनों को पूरा नहीं किया गया है।

 बहरहाल, मंत्रिपरिषद के द्वारा लिए गए फैसलों को पलटने से बौखलाकर प्रभावित लोग जरूर ही न्यायालय की शरण में जाएंगे।माननीय न्यायालय के द्वारा लिए गए फैसले का असर आगामी चुनाव पर पड़ेगा। मुख्यमंत्री जी को सुझबुझ कर निर्णय लेने की जिम्मेवारी आ गयी है। अब देखना है कि इसमें विजयी कौन हो रहा है? 

आलोक कुमार

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