पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी के फैसले पर
लेंगे फैसले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार
कटिहार। पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी का 9 मासीय मुख्य मंत्रित्वकाल को तीन हिस्से में विभक्त किया जा सकता है।तीन माह तक कठपुतली बने रहे। तीन माह रिमोर्ट कंट्रौल से निकलने का प्रयास करने लगे। तीन माह धड़ल्ले से फैसले लेते चले गए। उन फैसलों को तीन माह के अंदर लागू कर देने का मसला दिल की अरमान आंसूओं में बहने लगी।इस बीच मंझधार में डूबी नाव को उभारने के लिए अपने साथियों के साथ हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) बना लिए हैं। अपने मुख्य मंत्रित्वकाल के फैसले और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के द्वारा किए गए राजनीतिक नाटक को लेकर अब जनता के बीच में जाने का निश्चय कर लिया है। अब तो इसका परिणाम भविष्य में ही उजागर होगा।

इस संदर्भ में रोजगार सेवक कुमार सुधांशु चौबे कहते हैं कि चुनावी वर्ष में मांझी सरकार द्वारा ली गयी लोकप्रिय निर्णय को बदलना क्या नीतीश सरकार का सही कदम है ? मेरा मानना है सरकार कोई भी हो लेकिन जो जनता के हित में फैसला लिया गया हो उसे और बेहतर तरीके से लागू किया जाना चाहिए। उसे बदलना घातक हो सकता है।
बिहार में नीतीश जी को चुनावी नैया पार लगानी है तो मांझी जी के फैसलों को लागू करे नहीं तो नीतीश जी जनांदोलन को तैयार रहे। ये आंदोलन उनकी और पार्टी के लिए अति विनाशक होगी।इस समय मनरेगाकर्मी मानदेय पर कार्यरत हैं।इन लोगों को पंचायत सचिव बनाने का आश्वासन भी दिया गया। अभी तक उन आश्वासनों को पूरा नहीं किया गया है।
बहरहाल, मंत्रिपरिषद के द्वारा लिए गए फैसलों को पलटने से बौखलाकर प्रभावित लोग जरूर ही न्यायालय की शरण में जाएंगे।माननीय न्यायालय के द्वारा लिए गए फैसले का असर आगामी चुनाव पर पड़ेगा। मुख्यमंत्री जी को सुझबुझ कर निर्णय लेने की जिम्मेवारी आ गयी है। अब देखना है कि इसमें विजयी कौन हो रहा है?
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