खुदकुशी
राजस्थान के गजेन्द्र किसान थे तो पटना के गजेन्द्र बटाईदार किसान थे
आम आदमी पार्टी के द्वारा 22 अप्रैल 2015 को जंतर-मंतर पर मोदी सरकार के भूमि अधिग्रहण बिल के खिलाफ संसद मार्च आयोजित किया गया। इसमें 300 किलोमीटर की दूरी तय करके राजस्थान प्रदेश के दौसा जिले के नांगल झामरवाड़ा पंचायत के बंदी गांव में रहने वाले बाने सिंह के पुत्र गजेन्द्र सिंह राजपूत कालवर्त नामक किसान आए थे। इनके 3 संतान हैं। संतानों में बड़ी लड़की मेघा सिंह हैं। जो सेक्रेडरी स्कूल में पढ़ती हैं। उसके दोनों अनुज भी अध्ययन में तेज हैं। हां, अनुजों में राघवेन्द्र सिंह अध्ययन में काफी तेज हैं।बच्चों के दादाजी ठाकुर भवर सिंह ने बच्चों के पिताश्री गजेन्द्र सिंह को साफा बांधने के गुर सीखाएं थे।
इनके पास 11 बीघा खेत है।इसी पर फसल पैदा करते हैं।ओलावृष्टि और अतिवृष्टि के कारण फसल बर्बाद हो गयी।पटवारी बेहतर ढंग से रिपोर्ट पेश नहीं किए। किसानों के 80 प्रतिशत फसल बर्बाद है। गजेन्द्र खेती और साफा बांधने का धंधा भी किया करते थे।जो अपने दादा ठाकुर भवर सिंह के द्वारा सीखा था।हाल के दिनों में एनडीआरएफ ने ओलावृष्टि और बारिश से नुकसान 50 प्रतिशत होने पर ही मुआवजा देने की प्रक्रिया शुरू करती थी। एनडीआरएफ के अनुसार सिंचित खेती करने वाले किसानों को 4500 रू. और असिंचित खेती करने वाले किसानों को 9000 रू. प्रति हेक्टेयर मुआवजा दिया जाता था।न्यूनतम 750 रू.दिया जाता था। सालभर फसल बर्बाद होने पर 12 हजार रू.दिया जाता था। जो बहुत ही कम है।1866 कानून के तहत ही किसानों को मुआवजा दिया जाता है। इसमें संशोधन नहीं होने से किसानों को नुकसान ही नुकसान उठाना पड़ता था। परिवार की माली हालत खराब होने से महाजनों को व्याज सहित कर्ज चुकता नहीं कर पाते है।यह देश का दुर्भाग्य है कि हमारे किसान अभाव में खुदकुशी करने सदृश्य मार्ग चुन लेते हैं।जानकारी के अनुसार इस नीति के कारण ही लाचार किसान आत्महत्या करने को मजबूर थे। 2013 में 11772 किसानों ने खुदकुशी कर लिए थे। कुल 18 साल में 3 लाख किसानों ने आत्महत्या कर लिए हैं। इसको लेकर एनडीए सरकार चिचिंत हैं।
अब खेत में लगी फसल की नुकसान का आकलन 33 फीसदी तबाही पर ही किया जाएगा। हाल में ओलावृष्टि और बारिश से तबाही फसलों की भरपाई डेढ़ गुना राशि देकर की जाएगी। अब से सिंचित खेती करने वाले किसानों को 6750 रू. और असिंचित खेती करने वाले किसानों को 13500 रू. प्रति हेक्टेयर मुआवजा दिया जाएगा। न्यूनतम 1250 रू.दिया जाएगा है।सालभर फसल की तबाही होने पर 18 हजार रू.दिया जाएगा। न्यूनतम 2250 रू.दिया जाएगा। वहीं बैंकों से कहा गया है कि किसानों के कर्ज को पुनर्गठन करें। बीमा कम्पनियों से कहा गया है कि किसानों के दावों को जल्द से जल्द निपटाया करें।
पीएम मोदी के द्वारा घोषणा करने के बाद भी तबाही का मुआवजा किसानों को नहीं मिल पा रहा है। इसको लेकर किसानों में आक्रोश व्याप्त है। गजेन्द्र पेड़ पर चढ़ गया। 2 घंटे तक पेड़ पर चढ़ा रहा। पेड़ पर चिट्टी गिराता है। उस चिट्टी में लिखा है कि घर से पिताजी निकाल दिए है। तीन बच्चे हैं। भूख से बिलबिलाते रहते हैं। फसल बर्बाद हो गयी है। कैसे घर वापसी करेंगे? फिर ऐसा कारनामा कर दिया कि चलकर आने वाले गजेन्द्र को लोगों के कंधे पर चढ़कर घर जाना पड़ा। दो भतीजियों की शादी में भाग नहीं ले सका। खुशी के माहौल में मातम छा गया।
अभी यह मामला ठंडा भी नहीं हुआ था कि पटना जिले के दानापुर अनुमंडल के मनेर प्रखंड में स्थित सिघाड़ा पंचायत के ताजपुर,शेरभुक्का गांव में गजेन्द्र प्रसाद सिंह उर्फ बब्बल सिंह ने विषपान करके खुदकुशी कर ली। शनिवार 26 अप्रैल 2015 को देर रात विषपान कर गांव के निकट खलियान में सो गया।रविवार 27 अप्रैल को अहले सुबह में लोगों ने देखा कि वह खलियान में सोया है।सशंकित लोगों ने जब देखा कि गजेन्द्र के मुंह से झाग निकल रहा है। किसी तरह से उठाकर गजेन्द्र को दानापुर अनुमंडल अस्पताल ले गए। जहां के चिकित्सकों ने मृत घोषित कर दिया।
गजेन्द्र प्रसाद सिंह की पत्नी पूनम देवी कहती हैं कि हमलोगों के पास खुद की 10 कट्टा जमीन है। बावजूद, इसके हर साल की तरह बीज,खाद आदि उधारी खरीदकर खेती की गयी। भूमिहीन किसान होने के कारण 9 हजार रूपए प्रति बीघा की दर से 20 बीघा खेत पट्टे पर लेकर फसल लगायी गयी। सुशासन सरकार के द्वारा ऐलान किया गया है कि सरकार भूमिहीन बटाईदार किसानों से भी धान खरीद खरीद करेगी। वगैर जमीन की रसीद का भी धान खरीदा जाएगा।जब अधिप्राप्ति केन्द्र पर धान ले गया तो पैक्स के लोगों ने बिना जमीन की रसीद से धान खरीदने पर राजी नहीं हुए।करीब दो लाख रूपए की देनदारी हो गयी। इसके बाद हिम्मत नहीं हारकर गजेन्द्र ने गेहूं लगाया।अचानक मौसम में बदलाव आ जाने से गेहूं की फसल में दाने नहीं निकले। इसी तरह मसूर की फसल की भी हो गयी। फसलों की बर्बादी से गजेन्द्र का तनाव बढ़ गया। फिर साल में एक बार ही खगौल में स्थित पीजीएस स्कूल में पढ़ने वाले आठ वर्षीय एकतौला पुत्र अनुराग और चिल्ड्रेन सैनिक स्कूल में पढ़ने वाली रानी का फीस भी भरना था। इससे गजेन्द्र परेशान हो गया था। इसके कारण कठोर कदम उठा लिए। वहीं सिघारा ग्राम पंचायत के मुखिया सह जदयू के प्रखंड अध्यक्ष अखिलेश सिंह ने भी चिंता व्यक्त किए। इस बीच दानापुर अनुमंडल के एसडीओ अरविंद कुमार ने कहा है कि मनेर अंचल के अंचलाधिकारी व किसान सलाहकार की फसल चौपट हो जाने की रिपोर्ट आ जाने के उपरांत मुआवजा दिया जाएगा।
इससे साबित हो रहा है कि केन्द्र और राज्य सरकार के पास बटाईदार किसानों की सहायता करने वाला कानून नहीं है। सूबे के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भूमि सुधार आयोग बनाया था। इस आयोग के अध्यक्ष डी. बंधोपाध्याय ने बटाईदार किसानों की पहचान और सुख सुविधाओं को लागू करने के बारे में अनुशंसा दी थी। इस अनुशंसा को सरकार ने लागू ही नहीं किया। आज भी कागजात वाले किसानों को ही मुआवजा की राशि थमा दी जाती है।जरूरत है कि किसान और बटाईदार किसानों के बारे में कानून बने। उस कानून के आलोक में बटाईदार किसानों को लाभ मिल सके। हालांकि गैर सरकारी संस्थाओं के कर्ताधर्ता लोग सरकार से भूमि सुधार आयोग के अध्यक्ष डी. बंधोपाध्याय की अनुशंसा को लागू करने की मांग करते रहे हैं। सरकार की कार्य इच्छा नहीं रहने के कारण अनुशंसा को लागू नहीं किया गया।
आलोक कुमार
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