सरकार को सामान्य मौत होने पर शक्ति ना लगाकर
समस्याओं का समाधान करने की दिशा में पहल करनी चाहिए
खिजरसराय। अब बिहार में खुदकुशी करने लगे हैं किसान। दिल्ली में पेड़ पर चढ़कर किसान गजेन्द्र ने कर ली थी खुदकुशी। यह मामला शांत भी नहीं हुआ था कि पटना में बटाईदार किसान गजेन्द्र ने विषपान करके आत्महत्या कर ली। बीती रात गया में भरत नामक किसान की संदेहास्पद मौत हो गयी है। इस मौत की जांच अधिकारी करने लगे हैं कि वह छत पर गिरकर मरा है अथवा आत्महत्या कर लिया है?अबतक हादसा और आत्महत्या पर से पर्दा नहीं हट पाया है। पोस्टमार्टम करने के बाद ही सच्चाई पता चल पाएगा।
गया जिले के खिजरसराय प्रखंड के गुरारू थाना में सनसनी पैदा हो गया। कोहडीहरा गांव में रहने वाले भरत सिंह ने छत से गिरकर आत्महत्या कर ली। इस गांव में रहने वाले किशोरी शर्मा ने कहा कि भरत सिंह की बेटी की शादी होने वाली थी। वह काफी परेशान था। वह पैक्स और व्यापार मंडल से धान बेचा था। दुर्भाग्य से भरत सिंह को धान की कीमत नहीं मिल पायी थी। इसको लेकर जनता दरबार में जाकर डीएम को आवेदन भी दिया था। डीएम भी सहायक नहीं हो सके। इस बीच गया में खाघ एवं आपूर्ति मंत्री और गया जिले के प्रभारी मंत्री श्याम रजक आए थे। उनसे भी फरियाद किया गया। सभी जगहों से निराश होकर भरत सिंह ने सख्त कदम उठा लिया।
इस खुदकुशी की खबर सुनकर सुशासन सरकार के अधिकारी कोहडीहारा गांव आने लगे। मौके पर एसडीओ और एलआरडीसी पहुंचे। गुस्से से तनमनाए किसानों ने एलआडीसी के साथ धक्कामुक्की कर बैठे। यहीं पर किसान शांत नहीं हुए। प्रभारी मंत्री श्याम रजक का पुतला भी अग्नि को समर्पित कर दिए। इस अवसर पर मांग कर रहे थे कि भरत सिंह के परिवार को चार लाख रू. मुआवजा और सरकारी नौकरी दी जाए।
परिजनों का कहना है कि भरत सिंह परेशान थे। दो दिनों से भोजन भी नहीं करना चाहते थे। हादसा के दिन तो भोजन भी नहीं किए। यहां के किसानों का कहना है कि पैक्स और व्यापार मंडल का व्यवहार सकारात्मक नहीं रहता है। किसानों से धान नहीं खरीदना चाहते हैं। अगर धान खरीद भी लिए तो उसकी राशि देने में कौताही किया जाता है। सभी किसानों ने एक स्वर से कहा कि अधिकारियों को ध्यान देना होगा। जिनकी बकायी राशि है तो उसको तुरंत ही भुगतान कर देना चाहिए। ऐसा नहीं करने से अन्य किसान भी खुदकुशी करने को बाध्य हो जाएंगे। वहीं खेत में कार्यरत मजदूरों पर भी ध्यान केन्द्रित करना चाहिए। ऐसा न हो कि मजदूरों को भूखों मरने की नौबत न आ जाए।
आलोक कुमार
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