पटना। मां तेरी गंगा हो गयी पापियों के पाप धोते-धोते.......। जी हां, माननीय पटना उच्च न्यायालय द्वारा प्रस्ताव पारित किया गया। बिहार सरकार से कहा गया कि राजधानी से रूठ कर गंगा नदी दूर से दूर चली गयी हैं। उसको राजधानी के किनारे लाने का प्रयास करें। राजधानी के किनारे कैनाल बनाकर लाने में 6 करोड़ 80 लाख रू0व्यय किया गया। तभी किनारे लाने की कवायद फेल ही हो गयी।
इस आदेश को बिहार सरकार ने शिरोधार्य किया। गंगा नदी में जेसीबी मशीन चलायी गयी। इस तरह जोरशोर से कैनाल निर्माण कार्यारंभ किया गया। काफी मशक्कत करने के बाद गंगा जी को राजधानी के निकट लाने में सफलता मिली। राजधानी के निकट गंगा नदी आने से दो इंसान की मौत हो गयी। एक कुर्जी मोड़ के पास रहने वाले यादव जाति के और दूसरा रामजीचक नहर के किनारे रहने वाले महादलित मुसहर समुदाय से। इस तरह की मौत के बाद गंगा नदी बहती रही। इस कैनाल पर पुल नहीं करने के कारण नाव चलने लगी। इस पार से उस पार ले जाने की कीमत 5 से 10 रू0 तक नाविक वसूलने लगे। मजबूरी में लोग देने लगे। कुछ माह के बाद जेसीबी मशीन से बनी गंगा नदी नाला में तब्दील हो गयी। पवित्र पानी के बदले बदबूँदार पानी बहने लगा। इसी बदबूँदार पानी में हेलकर लोग कार्य निष्पादन करने जाते हैं। यहां पर जमींदारों से मालगुजारी पर जमीन लेकर खेती करते हैं। तीन से पांच हजार बीघा जमीन मालगुजारी भी दी जाती है।
इस पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते नागरिकों का कहना है कि गंगा नदी को लाने में भागीरथ का भागीरथ प्रयास रहा है। पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव और वर्तमान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भागीरथ की तरह प्रयास किए ही नहीं। तब किस तरह गंगा मइया किनारे आ जाएगी। अगर आ भी जाती है तो कुछ माह के बाद फिर चली जाएगी। पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने पटना जिला परिषद के पूर्व अध्यक्ष संजय सिंह के मकान के पास से कैनाल निर्माण शुरू किया। जो आगे की ओर बढ़ा था। इसके बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने दीघा बिन्द टोली के पासे कैनाल का मुंह गंगा नदी से जोड़ा था। जो कैनाल को बढ़ाकर आगे बढ़ाया गया। अब महागठबंधन सरकार का प्रयास होना चाहिए कि इसे स्थायी स्वरूप प्रदान करे।
आलोक कुमार
मखदुमपुर बगीचा, दीघा घाट,पटना।
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