Wednesday 19 April 2017

माँ मरियम की नगरी में है नाजरेथ हॉस्पीटल

मोकामा। माँ मरियम की नगरी में है नाजरेथ हॉस्पीटल। इस हॉस्पीटल को एससीएन सिस्टर चलाती हैं। यही एससीएन सिस्टर हैं जो कुर्जी होली फैमिली हॉस्पीटल के सांझा करके हॉस्पीटल चला रही हैं। खुद के नाजरेथ हॉस्पीटल को हाशिए पर रख दी हैं। कर्मचारियों से उत्पन्न समस्या और घाटे के सौदा करारकर हॉस्पीटल को बंद कर दिया गया। कुछ महीनों के बाद ओपीडी खोला गया है। जो पहले से कर्मी कार्यरत थे उनको बहाल नहीं किया गया। यह नाइंसाफी कार्य सिस्टरों के द्वारा किया गया।

एक गैर सरकारी संस्था के द्वारा संचालित नाजरेथ हॉस्पीटल को बंद कर दिया गया है। हॉस्पीटल बंद होने के कारण केवल कर्मचारी ही बेहाल नहीं बल्कि आसपास के लोग भी हलकान हो रहे हैं। हॉस्पीटल के आसपास के दुकानदारों का तो बुरा हाल हो गया है। आमदनी का जरिया ही बंद हो गया है। कुल मिलाकर  क्षेत्र के जन प्रतिनिधियों को भी समझ में कुछ नहीं आ रहा है कि क्या करें और क्या न करें। फिलवक्त रोनकदार हॉस्पीटल में सन्नाटा पसर गया है।
 हां,बिहार सरकार के द्वारा मान्यता प्राप्त गैर सरकारी संस्था नाजरेथ हॉस्पीटल है।   इस हॉस्पीटल को एससीएन सिस्टरों के द्वारा संचालित किया जाता है। एससीएन संस्था को अमेरिका में स्थापना की गयी थी। 13 साल पहले एससीएन सिस्टरों और ऑस्टीया में मदर अन्ना मरिया डेंगल के द्वारा एमएमएसएस सिस्टरों के साथ समझौता की गयी। दोनों सिस्टरों के समाज आपस में कुर्जी होली फैमिली हॉस्पीटल का प्रबंधन करेंगे। इसी समझौता के तहत कुर्जी होली फैमिली हॉस्पीटल संचालित है।
   नाजरेथ हॉस्पीटल और कुर्जी होली फैमिली हॉस्पीटल में समानता है। इन दोनों हॉस्पीटलों में यूनियन संचालित है। नाजरेथ हॉस्पीटल में मिशन नाजरेथ मजदूर यूनियन और कुर्जी होली फैमिली हॉस्पीटल में कुर्जी होली फैमिली हॉस्पीटल कर्मचारी यूनियन है। दोनों जगहों में सिस्टर प्रशासिका महिला ही हैं। इन दोनों गैर सरकारी संस्थाओं के बीच में वर्ष 1999-2000 में समझौता हुआ था। दलील यह दिया गया कि कुर्जी होली फैमिली हॉस्पीटल चलाने के लिए ‘सिस्टरों’ का अकाल है। नाजरेथ हॉस्पीटल में काफी संख्या में ‘सिस्टर्स’ हैं जो हॉस्पीटल को बेहतर ढंग से प्रबंधकीय प्रबंध कर सकते हैं। कुर्जी हॉस्पीटल का प्रबंधन बेहतर ढंग से नहीं कर पाने के कारण ही एससीएन सिस्टरों के साथ समझौता किया गया है। इस समझौता के बाद एससीएन सिस्टरों ने खुद के यानी अपना नाजरेथ हॉस्पीटल पर ध्यान देना ही बंद कर दिया। एक तरह से कह सकते हैं कि सिस्टरों ने अपने ही घर के चिराग से आशियाना जला डाले। इसका खामियाजा गरीब कर्मचारी भुगतने के लिए बाध्य हो गये हैं।
    पवित्र धर्मग्रंथ बाइबिल में लिखे दृष्तांत पर खुद और अन्य को चलवाने वाले ही इस समय राह भटक गये हैं। नाजरेज हॉस्पीटल की प्रशासिका के द्वारा रहम की आश में बर्खास्त कर्मचारी हॉस्पीटल के मुख्य मार्ग के सामने धरना पर बैठे हैं। सिर पटकपटक कर्मचारी सिस्टर प्रशासिका से आग्रह कर रहे हैं कि हॉस्पीटल को खोले और बर्खास्त कर्मचारियों को काम पर रखें। उसके बाद बकाये राशि को तुरंत भुगतान कर दें। परन्तु चर्च की मोटी दीवारों के अंदर रहने वालों पर किसी तरह का प्रभाव नहीं पड़ रहा है। एक बार कह दिया वह रामबाण साबित करने पर तुल गये हैं।
 बर्बादी की कहानी 30 जून 2012 को लिखी गयी। 1 जुलाई को 48 कर्मचारियों की सूची बनायी गयी। 2 जुलाई को नाजरेथ हॉस्पीटल बंद करने की घोषणा की गयी। 3 जुलाई को मिषन नाजरेथ मजदूर यूनियन के कोषाध्यक्ष ने बर्बादी की कहानी वाला पत्र प्राप्त किया। देखते-देखते हॉस्पीटल के बंद होने के 7 माह गुजर गये। सीधे अंधेर नगरी में पहंुचाने वाली हॉस्पीटल की प्रशासिका सिस्टर उषा के साथ बातचीत नहीं शुरू की गयी है। अब मामला उप श्रमायुक्त कार्यालय से हस्तान्तरण होकर श्रमायुक्त कार्यालय में पहुंच गया है। अब श्रमायुक्त के पाले में गेंद है।
  मिशन नाजरेथ मजदूर यूनियन के कोषाध्यक्ष मारकुस हेम्ब्रम को जो पत्र प्राप्त हुआ है कि उसमें हॉस्पीटल के उत्थान और पतन की कहानी लिखी गयी है। 1948 में 25 बेड वाले  नाजरेथ हॉस्पीटल को खोला गया। 90 किलोमीटर के दायरे में किसी तरह स्वास्थ्य सुविधा नहीं रहने के कारण 1965में बेड की संख्या 150 कर दी गयी। यक्ष्मा और कुष्ठ रोगियों की देखभाल और सेवा करने,मातृ-शिशुओं के लिए क्लिनिक,अनाथ बच्चों की देखभाल और सेवा और टीकाकरण की व्यवस्था करनी थी। 1984 में जाकर 250 बेड की संख्या कर दी गयी।
  पत्र में उल्लेख किया गया है कि 1948 से 1985 तक गौरवमय वर्ष रहा है। इसके बाद जिक्र किया गया है कि 1980 से गिरावट आनी शुरू हो गयी। 1985 में कई क्लिनिक खोले गये और कई उपकरण लाये गये। 1998-2007 में हॉस्पीटल में थ्री ‘एम’ को यूज किया गया। मनी,मेटेरियल और मेैन पॉवर को बढ़ाया गया। दो चिकित्सकों डा0श्रीमती शेट्टी और डा0 डिक्रूस के अवकाश ग्रहण करने के बहाना बनाकर 50 बेड को कम करने और नर्सिग स्कूल बंद करने की अनुशंसा की गयी। इसके बाद यह बताया गया कि हॉस्पीटल डेविट में चली गयी। यूनियन की मांग जोर पकड़ने लगी। इतने गिनाने के बाद सरकारी सुविधाओं का जिक्र किया गया। अब लोग सरकारी सुविधाओं को लेते हैं।
 मोकामावासियों ने दिल खोलकर भूदान किये। इसके बाद गैर सरकारी संस्था नाजरेथ हॉस्पीटल का परिधि 300 एकड़ का हो गया। मोदनगाछी, मोकामा में नाजरेथ हॉस्पीटल का उद्घाटन 1948 में किया गया। 64 साल के बाद हॉस्पीटल को 2 जुलाई 2012 को बंद कर दिया गया।  हॉस्पीटल की प्रशासिका सिस्टर उषा ने 48 कर्मचारियों को नौकरी से निकालकर अंधेरे में ढकेल दीं। इस गैर कानूनी कार्रवाई करने से एक ही झटके में कर्मचारी सड़क पर आ गये। ओपीडी में ही ऐटक से संबंधित मिशन नाजरेथ मजदूर यूनियन के बैनर तले बर्खास्त 48 कर्मचारी धरना देना शुरू कर दिये। जो आज भी जारी हैं।
 ईसाई धर्म स्वीकारने वाले और यहां के गाड़ी चालक दानिएल रोजारियों ने चालाकी से मिशन में रहकर मिशन नाजरेथ मजदूर यूनियन गठित कर पाने में सफल हुए थे। इसके कुछ दिनों के बाद मिशनरी प्रशासकों ने चालक को दूध में पड़े मक्खी की तरह नौकरी से बाहर कर दिये। किये थे।
   मिशन नाजरेथ मजदूर यूनियन के कोषाध्यक्ष मारकुस हेम्ब्रम ने कहा कि हर दिन की तरह कर्मचारी काम करने जा रहे थे कि ओपीडी की सुपरवाइजर सिस्टर टेªसी ने कहा कि 2 जुलाई 2012 से नाजरेथ हॉस्पीटल बंद हो गया है। आप लोग इस लिफाफा को स्वीकार कर ले। तब कर्मचारियों ने चट्टानी एकता दिखाते हुए सिस्टर के द्वारा दिया जा रहा लिफाफा को लेना मंजूर नहीं किये और ओपीडी में ही धरना पर बैठ गये। अनुमान के अनुसार कोषाध्यक्ष ने कहा कि ग्रेच्यूटी और जून माह का वेतनादि का चेक था। ओपीडी में 10 जुलाई तक धरना होने से ओपीडी बंद कर दिया गया। इसके बाद मुख्यद्वार को भी बंद करने से हारकर कर्मचारी मुख्यद्वार के बाहर धरना देना शुरू कर दिये। 
  महिला कर्मी मोनिका हेम्ब्रम ने 38 साल, टेरेसा केरोबिन ने 32 साल, सावित्री कुमारी 29 साल,तपोथी मंराडी ने 28 साल,मार्था टुडू ने 28 साल,राम विलास पासवान ने 28 साल, मारकुस मंराडी ने 28 साल, राजू राउत ने 28 साल,रोहन दास 28 साल तक कार्य किये।
इनके अलावे मो0 चांदो,राजेन्द्र रजक, मो0गुलाम रसूल, टुनटुन राउत,देवेन्द्र चौधरी,अखिलेश्वर प्रसाद, अषोक कुमार,अभयकांत कुमार, राम मंडल,अजीत कुमार,दीपक कुमार, माइकल हेम्ब्रम, क्लारा कर्माकर,मटिल्डा सोरेन, कार्मेला बेक, विमला मुर्मू, आग्नेस टुडू,रोसालिया मुर्म, जसिन्ता राजू, होनोरा मुर्मू, क्रिस्टीना किस्कू, शांति मुर्म,सावित्री कुमारी,किरन कुमारी,सिसिलिया जोआकिम,सुजीना कुमारी,लीली टोप्पनो,एलवीना एक्का,मार्सेला सोरेन, चुबी कुमारी,सुसन किस्कु,कुंती देवी, वैशाखी राय,टरेसा मरांडी,मरिया गा्रेरेटी बास्की,संगीता मुर्मू,राजेष कुमार,लाजरूस मुर्मू, शैला लुसिया और मो0मुस्लिम को भी हटा दिया।
सेन्टर सप्लाई में 38 साल से मोनिका हेम्ब्रम  ने कहा कि 38 साल काम करने के एवार्ड नौकरी से बाहर कर देना है। नर्सेज एड में काम करने वाली मार्था टूडु ने कहा कि 28 साल की सेवा को सिस्टर उशा ने चुटकी बजाकर समाप्त कर दी।

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