Thursday 6 April 2017

विमला देवी के घर में दो दिव्यांग


रौशनी कुमारी 
विमला देवी के घर में दो दिव्यांग

पटना। आप यह सुनकर और पढ़कर आश्चर्य में पड़ जाएंगे। भला एक ममतामयी मां बच्चों को ताला में जकड़कर कार्य निष्पादन करने चली जाएंगी? हां-हां, वह चली जाती हैं। वह नहीं चाहती हैं कि परिवार असंतुलित हो जाए और गरीबी के दलदल में पूर्णतः फंस न जाए।  यह एक सच्ची प्रस्तुति है। राकेश कुमार और विमला देवी के घर में दो दिव्यांग हैं। दोनों एक ही जगह पर प्रतिमा सदृश्य बैठी रहती हैं। इसी अवस्था में बैठाकर चली जाती है। 

  खैर, दीघा थाना क्षेत्र में पूजा फ्लावर मिल है। मिल के सटे ही रहते हैं राकेश कुमार और विमला देवी। दोनों दम्पति के 3 बच्चे हैं। सुभम कुमार (9 साल), आंचल कुमारी (7 साल) और रौशनी कुमारी (3 साल) की हैं। आंचल और रौशनी दिव्यांग हैं। दोनों का यह हाल 6 माह केे बाद से ही शुरू हुआ। दोनों अपने हाल पर जीर्वित हैं। दोनों को न दवा और न ही दुआ की जाती है। 
वह दिव्यांग बच्चियों को घर के अंदर बंद कर देती हैं। और मुख्य द्वार पर ताला जकड़ देती हैं। हां पड़ोसी को चाभी दे देती हैं। वह पड़ोसी के कंधे पर दिव्यांगों को छोड़ जमीन की दलाली करने निकल पड़ती हैं। वहीं दो जून की रोटी के जुगाड़ में दिव्यांग का पिता जी लगे रहते हैं। वे किराये के टेम्पों चलाते हैं। टेम्पों मालिक को 3 सौ रूपए देते हैं।
विमला देवी कहती हैं कि हमलोग दिव्यांग से परेशान हैं। दोनों इशारों ही इशारों में दर्द का बयान करते हैं। मां समझ जाती हैं कि मल त्याग करना है। बोलने में केवल पापा-पापा कह सकती हैं दोनों दिव्यांग। घर की माली हालत खराब है। दो कमरे वाले मकान का किराया 4 हजार 500 रू. देना पड़ता है। पीएसीएल में जमा 5 हजार रू. डूब गया। तंगी के कारण ही जमीन की दलाली करती हूं। अभी तक बच्चों का इलाज नहीं कर सकी। दोनों बैठे ही रहते हैं। वह कहती हैं कि यकीन है कि दोनों चल सकने में समर्थ हो जाएंगे। 
अभी-अभी महावीर वात्सल्य अस्पताल में शिविर लगा था। 1 और 2 अप्रैल को शिविर में आंचल और रौशनी को दिखाने के लिए कहा गया था। तो विमला देवी कहने लगी कि मेरा अनुभव पीएमसीएच के बारे में है। वहां पर बेहतर ढंग से इलाज नहीं होता है। तो बच्चों को नहीं ले गयी। यह कहा गया कि आपको महावीर वात्सल्य अस्पताल ले जाने के लिए कहा गया। तो अपने ही अनुभव पर विमला देवी अडिग रहीं। किसी तरह से बात को मनवाने पर अड़ी रहीं। 
गरीबी के दलदल में परिवार और मां का अनुभवपूर्ण जिद्द के आगे दिव्यांग प्रतिमा ही बनकर रह जाएंगी। बच्चे के गले में हार डालकर गम को दूर नहीं कर सकते और न दोनों की जिदंगी को ही गतिमान बना सकते। इस हालात को निकालने वाले कोई मसीहा ही हो सकता है जो विपरित परिस्थितियों के बावजूद भी बच्चों की जिदंगी संवार सकें।
आलोक कुमार
कहती हैं कि पीएमसीएच क

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