और वह युवक कुत्ते ( श्वान) के काटने से भौंकने लगा, पूर्णिया जिले के रूपौली कॉलोनी के रहने वाले उमेश राम के बेटा है पंकज राम.उसे पागल कुत्ते ने काटा था. वह एंटी रैबिज वैक्सीन नहीं लिया था. दो महीने बाद पागलपन सवार...
पूर्णिया.आजकल बिहार के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के अलावे अनुमंडल व जिला अस्पतालों में पर्याप्त मात्रा में एंटी रैबिज वैक्सीन उपलब्ध रहता है.जो केवल आधार दिखाने के बाद सहूलियत से मिल जाता है.पहले की तरह श्वान काटने (Dog Bite) पर 14 इंजेक्शन लगवाने पड़ते थे.उसके बाद 5 और अब तो सिर्फ 4 इंजेक्शन ( Dog Bite Injection ) ही लगवाने पड़ते हैं.इसका व्यवहारिक रूप नहीं देने के कारण उमेश राम के बेटा पंकज राम को रेबीज़ हो गया है.
रूपौली कॉलोनी के रहने वाले उमेश राम के बेटा पंकज राम को ऐसी परिस्थिति में पूर्णिया के मेडिकल कॉलेज अस्पताल में मरीज के रूप में लाया गया जिसके हरकत को देखने के लिए लोगों की भीड़ लग गई. युवक कुत्ते जैसा हरकत कर रहा था.उसके ऊपर पागलपन सवार था. वह कुत्ते के जैसा भौंक रहा था और लोगों को काटने के लिए तैयार था. परिजनों ने युवक को हाथ पैर गमछा से बांध दिया.डाॅक्टर ने भी उसे जवाब दे दिया. युवक अपने दिमागी संतुलन पूरी तरह खो दिया था.युवक जिले के रूपौली कॉलोनी के रहने वाले उमेश राम के बेटा पंकज राम (27 वर्ष) है.
मरीज के परिजनों ने बताया कि पंकज राम को गांव में ही दो माह पूर्व एक पागल कुत्ते ने काट लिया था. पंकज ने मामूली घाव समझ कर एंटीरेबिज की सुई नहीं लिया.घाव भी ठीक हो गए. लेकिन उसे यह पता नहीं चला कि उसके लापरवाही एक दिन जानलेवा साबित हो सकता है. दो महीने बाद पागल कुत्ते के काटा हुआ असर दिखने को मिला.परिजनों ने बताया कि पंकज एक दिन पहले तक ठीक था. लेकिन मंगलवार के 10 बजे बाद वह अचानक पागल जैसा बरताव करने लगा.
जब उसे मेडिकल कॉलेज अस्पताल लाया गया तो जांच से पता चला कि उसे रेबीज़ हो गया है. बताया जा रहा है कि पंकज की शादी 3 साल पूर्व हुई थी.अब तक वह पिता तक भी नहीं बन पाया.रेबीज़ होने की बात सुनते ही परिजनों के होश ही उड़ गए.
मेडिकल कॉलेज अस्पताल के डाॅ ए अहद ने बताया कि रेबीज़ का कोई इलाज नहीं है.समय पर एंटीरेबिज का सूई लेना ही बचाव है.यह संक्रमण 10 दिन से लेकर 12 साल के अंदर तक असर होता है. यह संक्रमण जंगली जानवरों के काटने से फैलता है.
परिवार वाले आनन-फानन में उसे लेकर पूर्णिया मेडिकल कॉलेज पहुंचे, जहां चिकित्सकों ने पंकज राम का आरभिंक उपचार करने के बाद पटना रेफर कर दिया.पंकज राम के चाचा ने बताया कि 2-3 माह पहले उसके भतीजे को किसी पागल कुत्ते ने काट लिया था. उन्होंने कहा, इस बात को पंकज ने हल्के में ले लिया तथा किसी को इसकी खबर नहीं दी.जब उसकी अचानक तबीयत बिगड़ने लगी तब घरवालों ने पहले उसे रेफरल हॉस्पिटल रुपौली में एडमिट कराया.शुरुआती उपचार के बाद चिकित्सकों ने उसे पूर्णिया के राजकीय मेडिकल कॉलेज हॉस्पिटल रेफर कर दिया.यहां आने के बाद चिकित्सकों ने जांच के बाद उसे रेबीज की परेशानी बताई तथा पटना रेफर कर दिया.मेडिकल कॉलेज हॉस्पिटल के डॉक्टर ने बताया कि रेबीज का कोई उपचार नहीं है, वक़्त पर एंटी रेबीज इंजेक्शन लेना ही बचाव है.यह संक्रमण जंगली जानवरों के काटने से फैलता है.इस के चलते चिकित्सालय परिसर में शख्स पागल जानवरों जैसी हरकतें करता रहा जिसे देखने के लिए वहां लोगों की भीड़ जुट गई.
श्वान के काटने पर पीड़ित को दर्द सहने के अलावा इंजेक्शन का डर अलग से सताता है.पहले जहां श्वान काटने (Dog Bite) पर 14 इंजेक्शन लगवाने पड़ते थे, उसके बाद 5 और अब सिर्फ 4 इंजेक्शन ( Dog Bite Injection ) ही लगवाने पड़ते हैं.इससे अस्पताल पहुंचने वाले पीड़ितों का दर्द कुछ कम होगा.उन्हे अस्पताल के चक्कर कम लगाने पड़ेंगे.वर्ल्ड हैल्थ आर्गेनाइजेशन ( WHO ) ने डॉग बाइटिंग पर दिए जाने वाले इंजेक्शनों को लेकर नई गाइड लाइन जारी की है.इसके तहत श्वान के शिकार को पांच के स्थान पर अब सिर्फ चार ही इंजेक्शन लगाए जाऐंगे. त्वचा के मार्ग से भी इंजेक्शन लगाकर पीड़ित को रेबीज से बचाया जा सकेगा.
डा. दिलीप बोस के अनुसार इन्ट्रामास्क्यूलर इंजेक्शन की पहले पांच डोज डॉग बाइट से पीड़ित को दी जाती थी. अस्पताल पहुंचने के दिन से चिकित्सको द्वारा बताए अनुसार ही इंजेक्शन लगवाने होते है.इसके तहत पहला इंजेक्शन काटने के बाद अस्पताल पहुंचने पर, दूसरी डोज तीसरे दिन व तीसरी डोज 7वें तथा चोथी व अंतिम डोज 14 से 28 दिवस के बीच दी जाएगी. इसके अलावा एक नया इंजेक्शन भी आया है. इसमें रोगी को तीन दिन ही अस्पताल आना पड़ेगा.
पहली डोज काटने के बाद, फिर तीसरे दिन व तीसरा इंजेक्शन 7वें दिन लगाया जाएगा.यह इंजेक्शन (इन्ट्राडर्मल) त्वचा रूट से लगेगा.चिकित्सको का मानना है कि कम दर्द देगा ओर असर भी ज्यादा करेंगे.हालांकि इसमें एक बार में दो इंजेक्शन लगाए जाएंगे.
जानकारी के अनुसार 2002 तक न्यूरल वैक्सीन लगाए जाते थे. इन पर सर्वोच्च न्यायालय ने रोक लगा दी थी.एक तो श्वान के काटने पर हुऐ घाव का दर्द ओर दूसरा एक के बाद एक 14 इंजेक्शन लगाने से पीड़ित को काफी पीड़ा सहनी पड़ती थी. चूंकि इंजेक्शन पेट में लगाए जाते थे.पेट में इंजेक्शन लगने के नाम से ही दिल दहल जाया करता था.बच्चो के लिए यह काफी मुश्किल भी ज्यादा होते है। इन इंजेक्शनो के बंद होने के बाद सेल कल्चर आए.नए शिड्यूल के अनुसार भी यही दिए जा रहे है.तरीका व माध्यम में कुछ बदलाव आया है.
एक अन्य चिकित्सक के अनुसार डॉग बाइट की तीन श्रेणियां होती है.पहली श्रेणी में श्वान की जीभ पर टच होने या चाटने पर.इस श्रेणी में जिस स्थान पर श्वान की जीच टच होती है, उसे 15 से 20 मिनट तक धोकर साफ कर लेना चाहिए.दूसरी स्थिति में खून नहीं निकले, लेकिन शरीर पर खरोंच आ जाए तो वेक्सीन लगवाना जरूरी है.तीसरी स्थिति में जब श्वान के काटने पर खून आ जाए तो रेबीज की रोकथाम के लिए इंजेक्शन के साथ इम्यूनोग्लोबिन भी साथ में लगवाने होते है.शहर में श्वानो का आंतक है.शहर के अस्पताल में प्रतिदन 2 से 3 पीड़ित पहुंचते है.बताया गया कि प्रतिवर्ष एक हजार के करीब लोग श्वानों के कोप के शिकार हो रहे है.
आलोक कुमार
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