*प्रेस/मीडिया की आजादी पर सत्ता संरक्षित हमले के खिलाफ 9-15 अक्टूबर तक राष्ट्रव्यापी प्रतिवाद
*पूरे देश में सामाजिक न्याय संबंधी नीतियों को नए सिरे से वंचितों के पक्ष में तय करने की जरूरत
*कई राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव के संकेत भाजपा के खिलाफ
*विधानसभा चुनावों में भाजपा की करारी शिकस्त के लिए करेंगे प्रयास
पटना.भाकपा-माले महासचिव का. दीपंकर भट्टाचार्य ने कहा है कि भारत सरकार को किसी भी सूरत में इजरायल के पक्ष में खड़ा नहीं होना चाहिए. इजरायल-फिलीस्तीन के बीच के टकराव की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को देखते हुए भारत को फिलिस्तीनियों के अधिकार को हासिल करने की दिशा में राजनीतिक समाधान निकालने में मदद करनी चाहिए. हम अंतर्राष्ट्रीय समुदाय और संयुक्त राष्ट्र संघ से भी अपील करते हैं कि वे इजरायल और हमास को नियंत्रित कर संकटग्रस्त फिलिस्तीनियों और आम इजरायली जनता के जानमाल की क्षति को रोकने का काम करे.पटना में आज एक संवाददता सम्मेलन के दौरान का. दीपंकर भट्टाचार्य ने कहा कि इसके विपरीत प्रधानमंत्री मोदी ने कल से जारी हिंसा को आतंकवादी हमला कहते हुए इजरायल के साथ अपनी एकजुटता व्यक्त की है. भाजपा भारत में आतंकवादी हमलों और हमास की वर्तमान आक्रामकता को समतुल्य बताने की झूठी कोशिश कर रही है. मोदी सरकार और भाजपा फिर से फिलिस्तीन पर कब्जा और फिलिस्तीनियों के विरुद्ध इजरायल के अपराधों से आंखें मूंद कर इस घटनाक्रम का इस्तेमाल मुस्लिम विरोधी नफरत फैलाने में करना चाहती है.
संवाददाता सम्मेलन में का. दीपंकर के अलावा पार्टी के राज्य सचिव कुणाल, पोलित ब्यूरो के सदस्य धीरेन्द्र झा, अमर, मीना तिवारी व शशि यादव उपस्थित थे.
उन्होंने आगे कहा कि न्यूजक्लिक के उपर जो आरोप लगाए गए हैं और उन आरोपों के आधार पर जो छापेमारी हुई है, दुनिया के इतिहास में पत्रकारों पर हमले के ऐसे विरले ही उदारण होंगे. सरकार 2 साल से जांच कर रही है, जांच से क्या निकला, यह अलग सवाल है; लेकिन न्यूयार्क टाइम्स की दो लाइन की रिपोर्ट के आधार पर जो कार्रवाई हुई है, वह पत्रकारिता को आतंकवाद के रूप में पारिभिषत करने का एक गंभीर षड्यंत्र है.
तीन कृषि कानूनों के खिलाफ चलने वाले किसान आंदोलन और उसको कवर करने वाले पत्रकारों को चीन के इशारे पर काम करने वाला बताया गया है. जिस तरह से उनके मोबाइल, लैपटॉप जब्त किए गए हैं; वे भीमा कोरेगांव की कहानी दुहराने वाली है. जो पत्रकार चाटुकारिता की बजाए सरकार से सवाल पूछ रहे हैं, उनकी आवाज खामोश कर देने के लिए उनके ऊपर बेहद साजिशपूर्ण ढंग से हमले किए गए हैं. यह न केवल पत्रकारिता बल्कि पूरे देश के लिए खतरनाक है. इसके खिलाफ 9-15 अक्टूबर तक भाकपा-माले ने संगठित तरीके से राष्ट्रव्यापी विरोध कार्यक्रम का अभियान लिया है.
पत्रकारों के साथ-साथ आप नेता संजय सिंह की गिरफ्तारी; तृणमूल कांग्रेस व डीएमके के नेताओं पर छापेमारी दिखाती है कि मोदी सरकार अंदर से बहुत डरी हुई है और जो भी बचा-खुचा लोकतंत्र है, उसे खत्म कर देने पर आमदा है.जाति आधारित सर्वे का हमने स्वागत किया है. 2021 में पूरे देश में गणना होनी थी, लेकिन आजादी के बाद पहली बार समय पर जनगणना नहीं हुई, और कब होगी इसकी भी संभावना नहीं दिख रही है. ऐसे दौर में बिहार ने जाति अधारित सर्वे कराकर सराहनीय काम किया है. हमें उसके संपूर्ण रिपोर्ट का इंतजार है, लेकिन जितने आंकड़े आए हैं, वे बहुत कुछ कहते हैं.
1931 की जनगणना के आधार पर ओबीसी 52 प्रतिशत के इर्द-गिर्द थी. इस सर्वे ने बताया कि ओबीसी की आबादी 63 प्रतिशत है. इसमें ईबीसी की आबादी लगभग 37 प्रतिशत है. और तब इसके आधार पर चाहे आरक्षण की नीति हो या सरकार की योजनाओं का सवाल हो, अपडेट होने चाहिए. सामाजिक-आर्थिक न्याय हासिल करने के लिए सरकार को बहुत कुछ करना होगा. पूरे देश में सामाजिक न्याय संबंधी नीतियों को नए सिरे से वंचितों के पक्ष में तय करने की जरूरत है.
आर्थिक आधार पर सवर्ण आरक्षण का हमने शुरूआती दौर से ही विरोध किया है. आंकड़ों ने उसे और साफ कर दिया है. आबादी के हिसाब से 8-9 प्रतिशत आबादी को 10 प्रतिशत आरक्षण मिल रहा है. यह बिलकुल अनुचित है.
इसके साथ-साथ आरक्षण को विभिन्न तरीकों से कमजोर बनाया जा रहा है. प्राइवेटाइजेशन से लेकर लैटरल इंट्री ने उसे कमजोर किया है. एक तरफ कॉरपोरेट हित हैं तो दूसरी ओर संस्थानों पर आरएसएस की पकड़ मजबूत बनाई जा रही है. इसलिए सामाजिक व आर्थिक न्याय के सवाल को सार्थक बनाने के लिए सही योजनाओं के निर्माण की दिशा में आगे बढ़ने की जरूरत है. पार्टी व इंडिया गठबंधन के स्तर पर इसपर बात होगी.
लोकसभा चुनाव में सीट शेयरिंग पर हमारी ओर से तेजी लाने के लिए बातचीत जारी है. बिना देरी किए इसपर सहमति बना लेनी चाहिए. 5 राज्यों के आने वाले विधानसभा चुनाव के संकेत भाजपा के खिलाफ हैं. भाजपा जनता के आक्रोश का सामना कर रही है. हम भाजपा की करारी शिकस्त के लिए प्रयास करेंगे. इससे 2024 के लिए एक निर्णायक माहौल भी बनेगा.
आलोक कुमार
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