Monday 25 March 2013

सरकार की दिलचस्पी नहीं


बिहार में शिक्षा अधिकार अधिनियम को लागू करने में सरकार की दिलचस्पी नहीं

पटना। सूबे में प्रभावशाली ढंग से शिक्षा अधिकार अधिनियम को लागू नहीं किया गया। समूचे देश में आरटीई एक्ट 2009 को लागू किया गया। बिहार में इसे साढ़े तेरह माह गवाने के बाद 1 अप्रैल 2010 से लागू किया गया। तब भी सरकार के द्वारा खास दिलचस्पी नहीं दिखायी गयी। शिक्षा अधिकार अधिनियम के तहत 3 साल समय निर्धारित किया गया था। इस अवधि में शिक्षकों की बहाली कर प्रशिक्षित कर लेना है। विघालय भवन निर्माण करके बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध करना था। इसमें अपना बिहार फिसड्डी हो साबित हो गया।
  गांधी मैदान,पटना के समीप अनुग्रह नारायण समाज अध्ययन संस्था के सभागार में तीन वर्श के बाद शिक्षा अधिकार अधिनियम के क्रियान्वयन की स्थिति पर चर्चा की गयी। शिक्षा जगत से जुड़े शिक्षक,विघार्थी और समाजसेवी उपस्थित थे। चर्चा के दौरान सामने आया कि शिक्षा अधिकार अधिनियम के अंदर काफी खामियां है। शिक्षा क्षेत्र में कार्यशील चाहते थे कि इसका जोरदार ढंग से विरोधकर अस्वीकार कर दिया जाए। इसपर सहमति नहीं बनी। कोई स्वीकार कर लिये। अधिनियम के तहत 0 से 18 वर्ष के बच्चों को शिक्षा अधिकार देना था। मगर सिर्फ 6 से 14 साल के बच्चों को ही अधिकार दिया गया। 0 से 6 और 14 से 18 साल के बच्चे वंचित कर दिये गये। शिक्षा अधिकार अधिनियम के तहत 38 धारा है। इसमें शिक्षकों और भवनों के ऊपर 19 धारा बनाया गया है। विघालय प्रबंध समिति नहीं बनायी जा सकी है। जन संवाद के दौरान कई खामिया सामने आया।


 इस अवसर पर ऑक्सफेम इंडिया के प्रविन्द कुमार प्रवीण, डा.विनय कंठ,शत्रुध्न प्रसाद,अशर्फी सदा, कुमार किशोर, गालिब,संजय सुमन, विजय कांत,संजीव कुमार आदि ने विचार रखे। अपना जन्मदिन मनाने वाली डा.डेजी नारायण ने चर्चा की अध्यक्षता की।  

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