Friday, 14 December 2012

Sharab................


गोलमाल है भाई गोलमाल

शराब से मरने वालों का सिलसिला जारी

हां, बाबू, बिहार में शराब पीने से आम आदमी मर रहे हैं। यह जश्न के अवसर पर शराब सेवन से लोग नहीं मर रहे हैं। दम लगाकर मेहनत से काम करने वाले लोग शराब पीकर मर रहे हैं। कई प्रकार के गम पालने वाले शराब पीकर मर रहे हैं। यह तो शराब पीने के बहाने बनाकर शराबपान कर रहे हैं। शराब से मरने वालों का सिलसिला मुजफ्फरपुर से हुआ। आरा और गया चला गया। इसके बाद औरंगाबाद में पसर गया। दुर्भाग्य से पटना शामिल नहीं हो सका है। परन्तु यह हकीकत है कि पटना नगर निगम के वार्ड नम्बर 1 में पड़ने वाली दीघा मुसहरी में रहने वाले क्रिया मांझी के पुत्र राजकुमार की मौत अत्याधिक शराब पीने से हो गयी है। मौत की खबर अखबार की सुर्खिया नहीं बन सकी। खैर, शराब से हो रही मौत से सुशासन सरकार की नींद हराम हो गयी है।

 इस समय यह एक ज्वलंत सवाल है कि आखिरकार उत्पाद विभाग के लोग क्या करते हैं? उत्पाद विभाग के अफसर छापामारी करने जाते हैं तो उसकी खबर महुंआ दारू बनाने वाले और बेचने वालों के पास चली जाती है। गंदे धंधे करने वालों की नेटवर्किग काफी सशक्त है। हरेक पल की सूचना धंधेबाजों के समक्ष चल जाता है।
 
 शराब माफियाओं के द्वारा उत्पाद विभाग के कार्यालय में काम करने वालों को खरीद लिया जाता है। मोबाइल गाड़ी में बैठने वाले अफसरों के इशारों की जानकारी माफियाओं को मोबाइल के द्वारा पहुंचा दी जाती है। इसमें अगर कोई चूक हो जाए तो उनके द्वारा मुख्यमार्गों पर आदमी रख दिया जाता है। कि वह आवाजाही करने वाली गाड़ियों की हरकत पर नजर रखे। अगर गाड़ी रही  है और बढ़ रही है। रोड पर रहने वाले आदमी तुरंत ही सूचना माफियाओं को दे देते हैं। सूचना पाते ही शराब बनाने और बेचने का धंधा बंद करके शटर गिरा दिया जाता है। ऐसा माहौल बना दिया जाता है कि यहां कभी भी शराब बेचने और बनाने का धंधा होता ही नहीं है।
 
 हां,बेरोजगारी का दंश झेलने वाले लोग शराब के गंदे धंधे में लग गये हैं। बेरोजगारी से पीड़ित लोग कम लागत पर शराब बनाने और बेचने का धंधा शुरू करने में कामयाब हो जाते हैं। महुंआ और मिठ्ठा और जलावन के लिए लकड़ी खरीदते हैं। महुंआ,मिठ्ठा और लकड़ी खरीदने में सौ रू0 से कम लागत लगता है। इसके बाद महुंआ दारू बन जाता है। इसे दस,बीस,तीस रू0 में बेच सकते हैं।

उत्पाद विभाग में भारी भरकम खाकी वर्दीधारी हैं। इन लोगों के द्वारा सिर्फ शराब के अड्डों पर औपचारिकता निर्वाह करने के लिए छापामारी किया करते हैं। इस धंधा को समूल मंदा करना नहीं चाहते हैं। इसी तरह स्थानीय थाने में पदस्थापित खाकी वर्दीधारियों की भी स्थिति है। अगर ऊपर से थाने में दबाव बनया जाता है तो थाने में माल चढ़ाने वालों के ऊपर हाथ लगाने की कोशिश नहीं करते हैं। ऐसे लोगों को पकड़ लेते हैं जो उनके पीछे आवाज उठाने वाले कोई हो। कुछ दिनों की बात है कि दीघा थाने की पुलिस ने किसी गणेश मांझी नामक मुसहर को पकड़ लिया था। उसे जेल भेज दी गयी। जमानत पर घर गया। वह कोर्ट में हाजिरी देने नहीं जाता था। उसके बदले में भदई मांझी के पुत्र महेश मांझी को पकड़ लिया गया। उसे गणेश मांझी के नाम पर जेल भेज दिया गया। अंत भदई मांझी के द्वितीय पुत्र गणेश मांझी को पकड़कर जेल भेज दिया। इस तरह एक केस में तीन अलग-अलग व्यक्ति को जेल भेज दिया गया। बाद में भदई मांझी के दोनों पुत्र महेश और गणेश की मौत हो चुकी है।
 
यह सच है कि इस धंधे में बेरोजगार और गरीब मुसहर समुदाय के लोग शामिल होते है। अब दंब लोग इस धंधे में शामिल हो गये हैं। ये लोग विभिन्न मुसहरी में आकर बस गये हैं। वहीं पर रहकर धंधा को प्रसार कर लिये हैं।

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