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एनजीओ द्वारा 1 लाख 20 हजार रू0 डकारने का सवाल बरकारः दीघा थानान्तर्गत बाँसकोठी में पटना राइट्स क्लेटिव नामक एनजीओ ने राष्ट्रीय बाल श्रमिक विशेष विघालय वर्ष 2007 में खोला। जिला परिषद के पूर्व अध्यक्ष संजय सिंह के मकान में सितम्बर 2007 से अगस्त 2010 तक विघालय संचालित था। इसमें बांसकोठी ( अम्बेडकर कॉलानी) झोपड़पट्टी में रहने वाले बच्चों का नामांकन करवाया गया। नामांकन करने वालों ने 8 से 14 वर्ष की आयु के छात्र-छात्राओं के परिजनों को लॉलीपोप थमाते चले गये। अघ्ययनरत विघार्थियों को दोपहर में भोजन दिया जाएगा। उन बच्चों को प्रति माह एक सौ रू0 बतौर छात्रवृर्ति देय होगा। इस तरह के जाल बिछाने से परिजनों ने 50 विघार्थियों का नामांकन पलक झपकते ही करा लिये। बहाल 3 शिक्षक पढ़ाने लगे और 1 रसोइया खाना खिलाने लगे।झोपड़पट्टी में रहने वाले रूदल दास की पत्नी सरस्वती देवी कहती हैं कि उनके तीन बच्चे पढ़ने लगे। तीन साल विभा कुमारी, सन्नी कुमार और अंशु कुमार पढ़े। वह बोल ही रही थी कि चैतू पासवान की पत्नी आशा देवी कहने लगी कि सोनम कुमारी और निखिल कुमार भी पढ़ते थे। इन लोगों को दोपहर में खाना मिलना शुरू हुआ। इस बीच शिक्षकों ने कहना शुरू कर दिया कि प्रत्येक विघार्थियों को बैंक में खाता खोलना है। 50 विघार्थियों का खाता पंजाब नेशनल बैंक,दानापुर में खोला गया। एक छात्र को मिलने वाली मासिक राशि 100 रूपये के हिसाब से जमा कर दी गयी। कुल 3 साल की राशि 1 लाख 80 हजार रू0 जमा की गयी। इसमें से केवल सालभर के 60 हजार रू0 निकालकर 50 विघार्थियों के बीच में वितरित कर दिया। वहीं परिजनों को समझाया गया कि शेष 2 साल की राशि बाद में वितरित कर दी जाएगी। लगभग 6 साल के बाद भी वितरित नहीं किया गया। इस तरह विघार्थियों के हिस्से मिलने वाली राशि 1 लाख 20 हजार रू0 को एनजीओ वालों ने डकार लिये?
आलोक कुमार
मखदुमपुर बगीचा,दीघा घाट,पटना।
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