Thursday 14 March 2013

पहले 12 और अब 5 बच गये














पहले 12 और अब 5 बच गये
बेहाल बिहार राज्य पथ परिवहन
इंडेन कम्पनी के द्वारा चमचमाती माको पोलो नामक बस बिहार राज्य पथ परिवहन निगम को दी गयी थी। इसमें सफर करने वालों को राजधानी से प्रकाशित नवबिहार नामक अखबार पढ़ने को दिया जाता था। जो बंद दिया गया है। उस समय किसी तरह की अनहोनी को टालने के लिए फायर कंट्रौल सिलेंडर को मुस्तैद तैयार रखा था। इसके बाद फिर से रिफिल नहीं किया गया। इससे साबित होता है कि यह सब व्यवस्था दिखलाने के लिए ही की गयी। जो कालान्तर में मद्धिम होते चला गया। हाल यह है कि पटना-दीघा-दानापुर मार्ग पर दे दनादन 12 बस चलती थी जो अब केवल 5 ही चलायी जाती है।

बिहार राज्य पथ परिवहन निगम के खुद की बस की हालत जर्जर होने के कारण सुशासन सरकार ने इंडेन कम्पनी के सहयोग से माको पोलो नामक बस मैदाने--सड़क पर उतारी थी। चमकदमक के साथ सड़क पर उतरने के साथ ही सड़क पर दबदबा जमाने वाले टेम्पों और मिनी बस के मालिकों के भृकुटी चढ़ गयी। इसमें चालक भी आग में घी डालने का कार्य करने लगे। मारपीट तक की नौबत आने लगी। यह सब बस की कीमत को कम रखने की वजह से होती रही। मात्रः 8 रूपये में पटना से दानापुर तक सफर किया जा सकता था। हां,जहां भी उतरे 5 रूपये जेबी से ढ़ीला कर देना पड़ता था। इस बीच निगमकर्मियों के आदतानुसार बस चालकों ने निगम को चूना लगाने लगे। इसके कारण बस घाटा का सौदा बनकर रह गयी।

 इसके बाद बिहार राज्य पथ परिवहन निगम ने जिस बस पर कडंक्टर और ड्राइवर साहब थे उनको ही किराया पर गाड़ी देने का निश्चय कर लिया गया। इन लोगों के साथ सौदा किया गया कि आप किसी भी हाल में प्रत्येक दिन 12 सौ रूपये दे दें। ड्राइवर,डीजल,खलासी आदि का खर्च मुसाफिरों से वसूल करें।
 रोनी सूरत बनाकर कडंक्टर साहब कहते हैं। गांधी मैदान से दानापुर तक गये हैं। कुल 270 रूपये भाड़ा में प्राप्त हुआ है। सुबह 6 से रात 9 बजे तक चार बार अप-डाउन मारा जाता है। इसी में 15 सौ रूपये डीजल पर,12 सौ रूपये निगम को,4 सौ ड्राइवर को,2 सौ खलासी को दिया जाता है। जो बचता है वह मेरा होता है। अभी भाड़ा में इजाफा किया गया है। 5 में 1 रूपया बढ़ाकर 6 कर दिया गया है। 8 में 2 रूपये बढ़ाकर 10 रूपये कर दिया गया है।
   

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