Friday 8 March 2013

झारखंड में कोयले की तस्करी


ट्रक से लेकर साइकिल तक की सवारी से झारखंड में कोयले की तस्करी
 ट्रक से लेकर साइकिल तक की सवारी से झारखंड में कोयले की तस्करी की जाती है। इस बोलती तस्वीर में एक वंदा दिखायी दे रहा है जो साइकिल पर 26 प्लास्टिक बैंग रखा है। एक बैंग में 15 किलोग्राम कोयला भरा रहता है। इस तरह इस साइकिल पर कुल साढ़े तीन से चार क्विंटल कोयला लाधा जाता है। इस साइकिल को वंदा ठेलकर आगे की ओर बढ़ता है। इस तरह आराम फरमाते हुए 65 किलोमीटर की दूरी तय करने के बाद कोयला बेचता है। फिर अगले दिन भी धंधा करता है। यह धंधा लगातार एक दशक से जारी है। इस कोयले की काली कमाई में पुलिस,नेता और पत्रकार शामिल हैं। तब कोयले की कालाबाजारी धंधा बंद होने का नाम नहीं ले रहा है।
  बिहार से अलग झारखंड 15 नवम्बर 2000 को हुआ था। तब प्राकृतिक संसाधनों से परिपूर्ण अपना झारखंड प्रदेश हो गया। इस प्रदेश में अनुसूचित जन जाति के ही कोई वंदा मुख्यमंत्री बनने का सौभाग्य प्राप्त किये हैं। दुर्भाग्य से झारखंड को दुर्गति से नहीं बचा पाये। कम से कम निगरानी विभाग की जांच से यह पता चलता है कि पुलिस,नेता और पत्रकार भी दुर्गति के दलदल में पहुंचाने में समान रूप से जिम्मेवार हैं।
     जो निगरानी विभाग की जांच से स्पष्ट कर दिया गया है कि कोयला तस्करों से पुलिस अफसरों की सांठगांठ है। कोयला तस्करों के द्वारा यहां के थानेदार को पांच हजार रूपये प्रति ट्रक दिया जाता है। इंस्पेक्टर साहब को पांच हजार रूपये प्रति ट्रक दिया जाता है। एस.पी.साहब को भी पांच हजार रूपये प्रति ट्रक थमाया जाता है। आई.जी.,डी.आई.जी. और डी.एस.पी.साहब को एक हजार रूपये प्रति ट्रक चटाया जाता है। सी.आई.डी.,विशेष शाखा और पुलिस मुख्यालय में पुलिस अफसरों को पांच सौ रूपये प्रति ट्रक दिया जाता है। इस तरह झारखंड से प्रत्येक दिन दो हजार ट्रक कोयला अवैध तरीके से बनारस की मंडियों को भेजा जाता है और इंट्री के नाम पर पुलिस अफसर हर ट्रक से 15 हजार रूपये वसूलते हैं। तब आप समझ गये होंगे कि कोयला तस्कर प्रति ट्रक व्यय करते हैं। उस हिसाब से आमदनी पता लगायी जा सकती है।

  कोयला माफियों के द्वारा 15 किलोगा्रम प्रति प्लास्टिक बोरा में भरने वाले कोयला की कीमत 1500 रूपये लेते हैं। प्लास्टिक बैंग को साइकिल के दोनों तरफ और आगे-पीछे सजाकर बांधते हैं। इसे एक व्यक्ति साइकिल को संभालते और ठेलते हुए 65 किलोमीटर की दूरी तय करता है। इस बीच 7 किलोमीटर की दूरी तय करके आराम फरमाता है। कांके रोड के किनारे झुण्ड के झुण्ड कोयला बेचने वाले रात्रि ठहराव किये हैं। यहां पर खाना-पीना करने के बाद सो जाएंगे। एकदम रात 1 बजे जागकर आगे की ओर प्रस्थान कर जाएंगे।
  इस तरह झारखंड में खुलेआम मानवाधिकारों का हनन हो रहा है। महज 8 से 9 सौ रूपये आमदनी के लिए इंसान जानवर की तरह कार्य करना शुरू कर दिया है। जिस काम को आदमी सहजतापूर्वक करता था। अब उसके बदले में मशीन से कार्य निष्पादन किया जाता है। वहीं जो बोझ ढोने के लिए जानवर उपयुक्त थे अब वही कार्य इंसान करने लगा है। सरकार पश्चिम बंगाल की सरकार की तरह कदम उठाएं। बड़े पैमाने में कोयला खदानों से कोयला की कालाबाजारी जारी है। इसको रोकने के लिए जिला प्रशासन अक्षम साबित हो रहा है। उल्टे खादी वर्दीधारियों के द्वारा प्रोत्साहन ही दिया जा रहा है। महज 20 रूपये में लेकर गोरखधंधा को जारी रख रहे हैं।
  इस संदर्भ में रामा राजभर का कहना है कि 65 किलोमीटर की दूरी तय करते समय मोबाइल पुलिस के द्वारा अवैध धंधे से अवैध राशि वसूलती है। कोई चार जगहों में खाकीवर्दीधारियों को राशि देनी पड़ती है।
   10 साल से अमानवीय धंधा शुरू करने वाले गोपाल कुमार का कहना है कि हम लोगों के पास मनरेगा से काम मांगने वाले जॉब कार्ड है। इसमें मजदूरी कम मिलती है। इसी के लिए यह धंधा अपना रहे हैं। काफी दूरी तय करने के लिए 7 किलोमीटर के बाद आराम कर लिया  जाता हैं आराम करते-करते रात्रि पहर 1 बजे से गतत्व स्थान पर पहुंचने के कूच कर जात हैं। वहां पर पहुंचने के बाद कोयला बेचकर साइकिल को बस पर लाधकर घर चले जाते हैं। घर में खर्ची देने के बाद पुनः कोयला खदान की ओर चले जाते है। इस तरह धंधा जारी है।
  बच्चों को स्कूल में पढ़ाते हैं। उनको हर तरह की सुविधाओं को उपलब्ध करवाते हैं ताकि इस धंधे से कोसो दूर रहे। हो जाने वाली कोयले की काली कमाई का सिलसिला बदस्तूर जारी है। कोई 15 सौ लोग बेचने जाते हैं। इसमें सात से आठ सौ रूपये की कमाई हो जाती है। झारखंड सरकार की नौकरशाह आवाजाही किया करते हैं। उसी राह से झुण्ड-झुण्ड बनाकर कोयले की काली कमाई करने वाले भी आते-जाते हैं। ऐसे तत्वों पर नजर रखने वाली पुलिस भी मौनधारण कर लेती है। 




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