खेसारी दाल बेचकर प्राथमिक विघालय, हथियाकान्ध में नाम लिखाया
समुदाय में व्याप्त बुराईयों को दूर कर अच्छी आदतों को समावेश किया

गरीबी के कारण अपने बच्चों को मुसहर समुदाय के लोग स्कूल ही भेजना नहीं चाहते हैं। यही हाल सामाजिक कार्यकर्ता नरेश मांझी के साथ भी हुआ। उसकी मां कारी देवी और शिवयतन मांझी स्कूल भेजने का नाम ही नहीं लेते थे। इसके कारण वह बारह साल तक स्कूल जाने से महरूम रह गया।
एक दिन शिवचक मुसहरी नामक गांव के पुलिया के पास खेल रहा था तो हनुमान गंज निवासी महराज राय आकर कहा कि चल रे मुसहरा भाषण सुने। दानापुर अनुमंडल के उसरी पंचायत भवन के पास नेताओं का गरमागरम भाषण चल रहा था। नेताओं के द्वारा बच्चों को स्कूल भेजने की नसीहत अभिभावकों को दे रहे थे। इस भाषण की वाणी सूई की तरह चूभ गयी। घर आने के बाद अपने अभिभावकों के पास जाकर मचलने लगे। स्कूल नहीं भेजेंगे तो तलवार से गर्दन काटकर जान दे देंगे।
ममतामयी मां ने घर के खेसारी दाल बेचकर प्राथमिक विघालय, हथियाकान्ध में नाम लिखा दीं। स्कूल में जाकर पढ़ना शुरू कर दिये तो गांवघर में जर्बदस्त हल्ला हंगामा हो गया। पहली बार किसी मुसहर समुदाय के एक मुसहर का बेटा स्कूल में नाम लिखाया है। गरीब के लाल होने के कारण खुब मन लगाकर पढ़ना और लिखना शुरू कर दिया। मेहनत करने का फल भी निकले लगा। और अन्य समुदाय के बच्चों में अव्वल और काफी तेज छात्र होने लगा। एक दिन के अंदर दो और तीन तक का पहाडा़ कठस्थ याद कर लेता था।
तीसरी क्लास में था तो टोला कुकुरमुत्ता की तरह खुली शराब की दुकान और कुटीर उघोग बन चुका महुंआ और मीठ्ठा से शराब बनाने को वर्ष 1979 - 80 में बंद करवा दिये। पाचवां वर्ग में जाने के बाद सूअर पालना और बेचने पर पाबंदी लगा दिये। इतना करने के बाद आठवां क्लास में जाने के बाद अपने टोले के लड़के और लड़कियों को स्कूल जाने का आह्वान किया। इस आह्वान का असर भी पड़ा। चार लड़के एवं पांच लड़कियों ने जाकर स्कूल में नामांकन भी करवाया लिये। गया। दुर्भाग्य और परिस्थिति वष एक लड़का को छोड़कर कुछ दिनों के बाद सभी 8 विद्यार्थियों ने बीच में ही पढ़ाई छोड़ दिये। दसवीं कक्षा पास करने के बाद गांवघर में साफ-सफाई और मुसहर समुदाय के लोगों के बीच में बचत करने की आदत डालने के उद्देश्य से स्वयं सहायता समूह का गठन किये। इसके अलावे सामाजिक-आर्थिक विशयों पर प्रेरणा देते रहा। जो आज भी जारी है। ऐसे करने से समुदाय के लोग काफी खुशहाल हो गये हैं।
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