Saturday 16 March 2013

पहले आइसक्रीम बेचते थे,उसके बाद शिक्षक बन गये

                             पहले आइसक्रीम बेचते थे,उसके बाद शिक्षक बन गये

पहले आइसक्रीम बेचते थे,उसके बाद शिक्षक बन गये। एक झोपड़ी में 1984 से पढ़ा रहे हैं। बगल में ही सरकारी स्कूल हैं। झोपड़ी में अध्ययनरत बच्चों का नामांकन सरकारी स्कूल में भी दर्ज है। गुरूजी पहले प्रति विघार्थी 5 रूपये फीस लेते थे मंहगाई के कारण अब प्रति छात्र 75 रूपये लेते हैं। जोर जर्बदस्ती नहीं है। अगर कोई छात्र फीस देने में असर्मथ हैं तभी गुरूजी की शिक्षा से महरूम नहीं होता है। कारण कि गुरूजी को गांव वाले गांधी जी कहते हैं। तब ही गुरूजी अपना गांधीगीरी से बाज नहीं आते हैं।

अब आपको गुरूजी का नाम बता दे रहे हैं।  उनका नाम राम नारायण पासवान है। उम्र 70 साल है। आइसक्रीम बेचते समय ही राम नारायण पासवान जी की शादी महारानी देवी के संग हुई थी। दोनों 10 साल संग में रहे परन्तु औलाद सुख नहीं पा सके। इसके बाद मामूली बीमारी डायरिया से महारानी देवी की मौत हो गयी। तभी से तन्हा रहने लगे। तब उन्होंने आइसक्रीम बेचने का धंधा मंदा करके शिक्षक बन गये। जहानाबाद प्रखंड के सिकरिया गा्रम पंचायत के कड़ौना गांव के मुहान पर ही एक झोपड़ी में सरस्वती शिशु सदन प्राथमिक विघालय चलाने लगे। यहां पर ऐसे विघार्थी भी हैं जो राजकीय प्राथमिक विघालय,कड़ौना में नामदर्ज हैं। दोनों जगह नामदर्ज होने से सरकारी शिक्षक खफा हो जाते हैं। इस विघालय के बगल में गुरूजी के द्वारा सरस्वती शिशु सदन चलाने से नाराजगी व्यक्त किया करते हैं।

इस संदर्भ में गुरूजी के साथ बच्चे भी सुर मिलाकर कहने लगे कि सरकारी विघालय में पढ़ाई नहीं होती है। 12 बजे लेट नहीं और 2 बजे भेट नहीं तर्ज पर शिक्षण कार्य होता है। सरकारी विघालय में जगहाभाव होने के कारण एक क्लास रूम में चार कक्षा चलायी जाती है। तब आप समझ सकते हैं कि वहां पर किस तरह से बच्चों का भविष्य निर्माण किया जा रहा है। यहां भी कमोवेश समान स्थिति है। एक बच्चा पहाड़ा पढ़ता है और सभी उपस्थित बच्चे पीछे दोहराते चले जाते हैं। एक चीज यह है कि पहाड़ा के साथ किस तरह अंक में लिखा जाता है उसे भी साथ-साथ दोहराया जाता है।

  एक सवाल के जवाब में विवेक कुमार ने कहा कि सुबह में उठने के बाद सबसे पहले मां-बाप को प्रणाम करते हैं। विवेकानंद, खुशबू,रजनी आदि ने कहा कि काफी कम लोगों के घरों में शौचालय की व्यवस्था में है। सड़क और खेत के किनारे नित्यकर्म किया जाता है। हम लोग चप्पल पहनकर नित्यकर्म करने के लिए जाते हैं। वहां से आने के बाद अच्छी तरह से साबुन से अथवा राख से हाथ की सफाई करते हैं। इस बीच गुरूजी कहते हैं कि सुबह आठ बजे से शाम चार बजे तक पढ़ाई की जाती है। अगर कोई बच्चे शाम में पढ़ना चाहते हैं। तो उसे पढ़ा दिया जाता है। गुरूजी की खाशियत यह है कि किसी तरह के मघपान नहीं करते हैं। खैनी भी नहीं खाते हैं। सादगी रहना और उच्च विचार के रहने के कारण गांव के लोग सम्मान व्यक्त करने के लिए गुरूजी को गांधी जी कहकर पुकारते हैं। 70 साल होने के बाद भी बीमार नहीं पड़ते हैं। पूर्ण मुस्तैदी से कार्य निपटारा करते चले जाते हैं। इस आधुनिक गांधी को नमस्कार है।


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