‘खेत खाएं गदहा और मार खाएं जोलहा’
हां, इसी को कहा जाता है ‘खेत खाएं गदहा और मार खाएं जोलहा’। यह कहावत प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र, धनरूआ के स्वास्थ्यकर्मियों के लिए सटिक ढंग बैठ रहा है और चरितार्थ भी हो रहा है। भला पीएससी, धनरूआ के बड़ा बाबू ने गलती की है और उसका खामियाजा कर्मियों को भुगतना पड़ा है। सैकड़ों लोगों को 750 रूपए से अधिक की राशि लूटाना पड़ गया।
बड़ा बाबू ने आय-व्यय को सही ढंग से नहीं देखा और न ही आवंटित राशि को घटाने का ही प्रयास किया। बस आंख बंद करके हरके माह वेतनादि निर्गत करते चले गये। हमेंशा अपने काम के ऑल्ड स्टाइल को ही आगे बढ़ाते चले गए। इसी सिलसिले में बड़ा बाबू ने सभी स्वास्थ्यकर्मियों का फरवरी माह के वेतनादि बनाकर ट्रेजरी में अग्रसारित कर दिये। उसके बाद वहां से पेमेंट एडवाइस बैंक में भेज दिया गया। इसको देखकर बैंककर्मी भौचक रह गये। बैंक में फरवरी माह के वेतनादि देने लायक रकम ही नहीं था। इतना कम था कि दो-तीन ही कर्मी को दिया जा सकता था। इसके आलोक में चेक की कार्रवाही ही बंद कर दिया गया।
फरवरी माह का वेतनादि मार्च में देना था। वित्तीय वर्ष की समाप्ति के पहले वेतनादि दे देना है। उसी अवधि में कभी रामनवमी और गुडफ्राइडे की छुट्टी भी हो गयी थी। अब केवल शनिवार और रविवार ही बच रहा था। बैंककर्मियों ने शनिवार को बड़ा बाबू को जानकारी दिये कि फरवरी माह के वेतनादि देने के लिए बैंक में पयार्प्त राशि नहीं है। इस तरह की जानकारी मिलते ही बड़ा बाबू के होश तोते की तरह उड़ गया। इसके बाद खुद आवंटित राशि के आय-व्यय करने लगे। तब जाकर बड़ा बाबू को पता चला कि आवंटित राशि की हिसाब किताब नहीं करने के कारण ही फजीयत में पड़ना पड़ रहा है।
जल्दी-जल्दी आवंटित राशि को घटाने के क्रम में बड़ा बाबू पसीना से तर-ब-तर होते रहे। वित्तीय वर्ष के शनिवार और रविवार ही बच गया था। दो दिनों के अंदर आवंटन पाना नामुमकिन दिखायी देने लगा। अन्ततः बड़ा बाबू चारों खाने चित हो गये और अपनी हार मान लिये। इस बीच मार्च माह का वेतनादि दिलवाने में सफल होने के बाद गिरगिट की तरह रंग बदल दिये। उल्लेखनीय है कि मार्च और अप्रैल माह में बिना आवंटन के ही वेतनादि विरमित किया जा सकता है। यही किया गया।
अब फरवरी माह के वेतनादि निकालने के तरकीब के क्रम में सभी स्वास्थ्यकर्मियों को नोटरी से शपथ पत्र भरके लाने के लिए कहा गया है। इसके बाद सिविल सर्जन ऑफिस के बड़ा बाबू को 500 रूपए देने के लिए तैयार रहने को कहा गया है। छुट्टी होने के कारण किसी भी हालात में सरकारी तिजौरी से राशि नहीं मिल पायी। वह भी वित्तीय वर्ष की की रीति रिवाज है। राशि निकालने को एरियल कहते हैं। एरियल निकालने के लिए कंडिशन लगा दिया जाता है कि जबतक काम का दाम नहीं मिलता है तबतक काम पूरा नहीं हो पाता है। यह समाजसेवी अन्ना हजारे की नजर में मामला गंभीर बन जाता है। मगर अन्ना हजारे के कार्यालय में चलता ही नहीं है और न निगरानी विभाग का चलता है। यह सब आपसी सहमति के आधार पर कर लिया जाता है। कारण कि सरकारी कार्यालय का परम्परा ही है।