Sunday, 14 June 2015

चुनाव के समय में लोग ‘राजा’ बन जाते हैं और नेता ‘रंक’


चुनाव के बाद नेता ‘रंक’ बन जाते हैं और लोग ‘रंक’
लिट्टी खाकर रंक लोग राजा से टक्कर ले रहे हैं
पटना। मैं कारगिल चौक हूँ। कारगिल युद्ध में शहीदहोने वाले शहीदों की याद में ही कारगिल चौक बनाया गया है। सर्वविदित है कि हमलोग वतन की रक्षा में ही शहीद हुए हैं। हाँ,यह जरूर हुआ कि पड़ोसी देश पाकिस्तान के मनसूबे पर पानी फेरने में कामयाब हो गए।

इधर हमारे प्रदेश के नागरिकों की उम्मीदों पर सरकार पानी फेरने से बाज नहीं आ रही है।सरकार ने बड़े पैमाने पर अनुबंध के आधार पर नागरिकों को नौकरी दी है। इस तरह के अनुबंधों से बेहाल होकर नागरिक जिले से चलकर शहर की ओर आने को बाध्य हैं। मेरे ही प्रांगण के बगल में आकर बेमियादी धरना दे रहे हैं। सरकार ने मनमाने ढंग से नागरिकों के साथ अनुबंध कर रखा है। सभी अनुबंधों पर बहाल परेशान हैं। इन लोगों को अल्प मानदेय ही दिया जाता है। एक बार मानदेय निर्धारित कर दिया। उसमें बढ़ोतरी नहीं किया जाता है।

इस समय सैपर्स वेलफेयर एसोसिएशन, बिहार राज्य पंचायत रोजगार सेवक संघ, बिहार मौसमी डी0डी0टी0छिड़काव कर्मचारी यूनियन, बिहार पुलिस संविदा चालक सिपाही संघ आदि के आंदोलनकारी धरना दे रहे हैं। सभी लोग राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी,भूदान आंदोलन के प्रर्णेता विनोबा भावे और लोकनायक जयप्रकाश नारायण के बताये गये मार्ग पर चलकर अहिंसात्मक आंदोलन कर रहे हैं। कोई धरना,उपवास,अनशन,बेमियादी अनशन का हथियार अपना रहे हैं। यह सच है कि धरना स्थल पर जिला   प्रशासन के अधिकारी आते हैं।माँगों से संबंधित कागजात लेकर चलते बनते हैं। इनको चाहिए कि आंदोलनकारी से संबंधित विभाग के अधिकारियों से वार्ता करवाकर आंदोलन समाप्त करा दें। हाँ, प्रदेश के प्रिंट और इलेक्टोनिक्स मीडिया के प्रतिनिधि भी आते हैं।प्रेस विज्ञप्ति लेते हैं और फोटोग्राफर फोटो लेकर चले जाते हैं।इसका प्रतिफल सामने आ जाता है। टी.वी.चैनल से खबर प्रसारित होने लगती है। इसके अगले दिन अखबारों में एक-दो कॉलम की खबर प्रकाशित कर दी जाती हैं।

संबंधित यूनियन और संघ के नेताजी के द्वारा सरकार के विरूद्ध में जनहित याचिका पेश कर देते हैं। माननीय न्यायालय के द्वारा विधायिका और कार्यपालिका को आदेश दिया जाता है। कि उनको नौकरी में बहाल कर दो। जैसे मामला है वैसे ही आदेश पारित कर देते हैं। मगर माननीय न्यायालय के द्वारा पारित आदेश को विधायिका और कार्यपालिका के द्वारा पूरा ही नहीं किया जाता है। इससे आंदोलनकारी परेशान हो जाते हैं। आंदोलन करने के सिवाय कोई चारा नजर नहीं आती है।
आंदोलनकारियों का पीड़ा भी है। आलम यह है कि कई माह से मानदेय से महरूम होने वाले आंदोलनकारी आंदोलन करने आते हैं। इनलोगों को दो जून की रोटी भी नहीं मिलती है। भूखे ही सो जाते हैं। खबर संकलन करने के दौरान बिहार मौसमी डी0डी0टी0छिड़काव कर्मचारी यूनियन के सदस्यों ने आपबीती सुनायी। आज लिट्टी बनाए हैं। आप क्या लिट्टी खाएंगे? दो लिट्टी दी गयी। उसे तोड़ने पर पता चला कि उसके अंदर नाममात्रा का ही सत्तू भरा है। आप तो एक बार देखें हैं। मैं कारगिल चौक देखकर रो पड़ता हूँ। कोई कारगिल चौक के पास आकर अनुभव करें।राम नाम सत्य है और कारगिल चौक के बगल में आंदोलनकारियों का गर्त हैं।

आलोक कुमार





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