Monday 27 May 2013

‘रहने को घर नहीं, परन्तु सारा संसार हमारा’



अब सरकार से मांगने लगे हैं 5 बीघा जमीन रहने के लिए

10 बीघा जमीन खेती करने के लिए

प्रायः देखा जाता है कि अग्रज और अनुज साथ-साथ स्कूल में पढ़ने जाते है। स्कूल की यूनिफोम में सुसज्जित रहते हैं। पीठ पर भारी भरकम बैंग और हाथ में वाटर बोतल रहता है। बच्चों के बढ़ते कदमों को देखकर परिजन काफी खुश नजर आते हैं। दूसरी ओर आदिवासी सहारिया समुदाय के बच्चे हैं। जो स्कूल के निकट तक जाकर स्कूल के मुंह तक देख नहीं पायें। दिन का पहना वस्त्र को रात में पहने सो गये और सुबह में उठकर पेट की रोटी के जुगाड़ में लग जाते हैं। उनके पीठ पर स्कूल बैंग और वाटर बोतल नसीब नहीं है। उनके हाथ में सिर्फ एक कटौरा रहता है। यह आपबीती हाल सारिका कुमारी ने कह सुनायी। मात्र 6 साल की सारिका कुमारी  और 4 साल के उसके अनुज काकेश कुमार भीख मांगने को बाध्य हो रहे हैं।
रहने के लिए घर नहीं। खेती के लिए जमीन नहीं। राषनकार्ड नहीं। पहचान पत्र नहीं। ऐसे लोगों को सरकार नहीं बल्कि आदिवासी सहारिया संगठन एकता परिषद, ब्लाक बबीना जिला झांसी (.प्र.) के द्वारा पहचान-पत्र निर्गत किया गया है। जय जगत,जय भारत का नारा पत्र में लिखा हुआ है। आदिवासी सहारिया संगठन एकता परिषद के अध्यक्ष नाथूराम आदिवासी, सचिव/उपाध्यक्ष दिनेश कुमार रैकवार (मछवारे), महिला अध्यक्ष श्रीमती वृन्द्रा आदिवासी और ब्लाक संगठन मंत्री कन्छेदी लाल आदिवासी हैं। रामदयाल आदिवासी,पिता/पति का नाम साधु आदिवासी  को प्रमाणित किया गया है। इन लोगों ने प्रमाणित किया है कि ग्राम बबीना रूलर, ब्लाक बबीना, जिला झांसी (.प्र.) एकता परिषद का सदस्य है।
 ‘एकता परिषद के उत्तर प्रदेश के प्रांतीय संयोजक राकेश दीक्षित ने कहा कि यूपी सरकार के द्वारा सहारिया आदिवासियों के साथ दोहरी नीति अपनायी जा रही है। यहां के झांसी संसदीय क्षेत्र में झांसी, महौबा और ललितपुर है। जो ललितपुर में सहारिया आदिवासी रहते हैं। ये सब के सब खुशनसीब हैं। उनको अनुसूचित जन जाति का दर्जा प्राप्त है। बच गये झांसी और महौबा के सहारिया आदिवासियों को अनुसूचित जाति का दर्जा दिया गया है। इसी दोहरी नीति के शिकार रामदयाल आदिवासी के साथ अन्य घुमंतू समुदाय के लोग जंतर-मंतर पर आये थे। श्री दीक्षित ने आगे कहा कि एकता परिषद ने संकल्प ले रखा है कि समाज के किनारे रह गये लोगों को जल,जंगल और जमीन पर अधिकार दिलवाएं। इसी सिलसिले में केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश और जन सत्याग्रह के महानायक पी.व्ही. राजगोपाल जी के संग 11 अक्तूबर 2012 में भूमि सुधार एवं अधिकार एजेंडा पर ग्रामीण विकास मंत्रालय तथा जन सत्याग्रह के मध्य सहमति पर घुमंतू समुदाय के भूमि अधिकार देने पर जोर दिया गया। भारत सरकार द्वारा परामर्श-पत्र जारी करते हुुए घुमंतू समुदायय को बसाने तथा उनको न्यूनतम आवासीय भूमि और कृषि तथा आजीविका के लिए भूमि आवंटित करने के लिए सभी राज्य सरकारों को परामर्श दिया है।
 बहरहाल केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश ने 11 अक्तूबर 2012 को 6 माह के अंदर घर का अधिकार कानून बनाने का आश्वासन दिया था। अब उनके द्वारा टालू नीति अपनायी जा रही है। जो लोग कल्याणकारी सरकार पर निर्भर हैं। उनको बहुत ही धक्का लगा है। कानून बन जाने के बाद 10 डिसमिल जमीन और खेती करने के लिए 5 एकड़ जमीन देने की बात कहीं गयी है। हां,गणप्रतिनिधि होने के नाते सरकार का दायित्व और फर्ज बनता है कि सरकार अपने नागरिकों के कल्याण और विकास का कार्य सुनिश्चित ढंग से करें।  उसी तरह गैर सरकारी संस्थाओं को भी दायित्व बनता है कि सरकार के द्वारा किये जा रहे कल्याण और विकास के कार्यों में सहयोग प्रदान करें। इसी लिए गैर सरकारी संस्थाओं को पंजीकृत भी की गयी है। दुर्भाग्य से अब दोनों का नजरिया ही बदल-सी गयी है। सरकार वोट बैंक बनाकर कुर्सी से चिपकने और गैर सरकारी संस्थाओं के द्वारा नोट बैंक में रखने की तैयारी में रहती है। इसके कारण समाज के किनारे रह गये लोगों की बुरी हालत होती जा रही है।
 इसी लिये आजादी के 65 साल के बाद भी घुमंतू समुदाय के लोग दरदर भटकने को मजबूर हैं। आजाद भारत के जानकार लोग घुमंतू समुदाय की दिशा-दिशा को देखकर जरूर ही आहें भरते हैं। आज भी घुमंतू समुदाय की किस्मत और ही तकदीर बदल पायी है। समाज के किनारे रह गये घुमंतू समुदाय का कल्याण और विकास हो सका। वहीं हमारे गणप्रतिनिधि भी घुमंतू समुदाय की दशा-दिशा पर मशालेदार भाषण देने से बाज नहीं आते हैं। उस समय अजबगजब लगता है जब शासक वर्ग के जन प्रतिनिधि और बिहार विधान सभा के माननीय अध्यक्ष उदय नारायण चौधरी भी इस दिशा में शासकीय ठोस कदम नहीं उठा पाते हैं। आवासीय भूमि एवं जोत भूमि में दलित समुदायों की कानूनी हक पर एक दिवसीय विचार गोष्ठी के अवसर पर शनिवार को ठाकुर प्रसाद,सामुदायिक भवन में आगे बिहार विधान सभाध्यक्ष उदय नारायण चौधरी ने कहा कि सच में जमीन ही लोगों की पहचान है। सबसे बुरा हाल द्युमंतू समुदाय को हो रहा है। आखिर किस तरह से इस समुदाय को पहचान दी जा सके। सरकार परेशान है। इनके पास जमीन नहीं है। इसके कारण पहचान पत्र, आधार कार्ड, वोटर कार्ड आदि से महरूम हो रहे हैं। इस ओर ठोस कार्रवाई करने की जरूरत है। हर इंसान को भूमि पर अधिकार मिलना ही चाहिए। जल,जंगल,जमीन,हवा,प्रकाश ये सभी प्राकृतिक प्रदत वस्तु हैं। ताकदवर लोगों ने जमीन,जंगल और जल पर अधिकार रूपी कब्जा जमा रखा है। इनका अधिकार हवा और भगवान दिवाकर के रोशनी पर नहीं हो पाया। इसी कारण जो हवा और धूप धीरूभाई अम्बानी और मंगला मुसहर को समान रूप से मिल पा रहा है। मगर जल,जमीन,जंगल पर दबंगों का कब्जा होने से आम लोगों को दिक्कत हो रही है।
 इन दोनों की पैतरेबाजी से आजीज होकर जन संगठनों का प्रार्दुभाव हुआ है। अब इनके द्वारा ही गांधीवादी, जेपीवाद, अम्बेडकरवाद आदि नारों के सहारे लोगों को संगठित किया जा रहा है। जन संगठनों के द्वारा अनुसूचित जन जाति और अनुसूचित जाति के साथ अब घुमंतू समुदाय के मसले को बुलंदी से उठाने का प्रयास होने लगा है। जन संगठन एकता परिषद के संस्थापक अध्यक्ष पी.व्ही.राजगोपाल उर्फ राजा जी के बुलाया पर घुमंतू समुदाय के लोग जन संसद में भाग लेने के लिए जतंर-मंतर पर आये थे। 45 साल के राम दयाल है। इनके पिता का नाम साधु आदिवासी है। बगल में ही राम दयाल की पत्नी पुतली बाई बैठी है। इन दोनों के 6 संतान है। अनिल, अंजनि, प्रिया, पायल, सारिका और काकेश हैं। बिडम्बना है कि इस समुदाय के बाल-बच्चे स्कूल के मुंह तक देख नहीं पाते हैं। हाथ में स्कूल बैंग के बदले में हाथ में कटौरा मिल जाता है। जहां ठहरते हैं वहीं पर सयाने लोग काम चलाऊं आशियाना तैयार करने में लग जाते हैं। उस समय बच्चे हाथ में कटौरा लेकर भीख मांगने निकल जाते हैं। काकेज कहता है कि हम लोग भीख मांगते समय कहते हैंरोटी दें दो, बाबूजी पेट की खातिर खाना दें दो।पुतली बाई कहती हैं कि अपने अग्रज पुत्र अनिल आदिवासी की षादी कर दी गयी है। इशारा करके कहती है कि पीछे बहु बैठी है। इसका अंजनि नाम है। अभी दोनों दम्पति से बच्चा नहीं हुआ है।
 राम दयाल कहते हैं कि हम लोग अभी तक मुम्बई, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, यू.पी., झारखंड, दिल्ली आदि प्रदेश में जा चुके हैं। अभी बिहार में पैर नहीं रखे हैं। रेल में टिकट नहीं लगता है। रेल में पसरकर बैठकर जाते हैं। बहु और बच्चे रकम कमाने के धंधे में लग जाते हैं। बोगी-बोगी चक्कर लगाते रहते हैं। रेल सफर से उतरकर स्टेशन परिसर में ही ईंट के सहारे चूल्हा बना लेते हैं। आसपास से लकड़ी चुनकर लाते हैं। बर्तन के नाम पर भात और दाल बनाने के लिए ढेंकची रहती है। रोटी बनाने के लिए तावा और खाने के लिए प्लेट रहती है। इसी पर रोटी बेला जाता है। लड़की जलाकर दाल-भात बना लेते हैं। खाना खाकर आराम किया जाता है। स्टेशन परिसर में खाना बनाते समय खार्की वर्दीधारियों का डंडा भी सहना पड़ता है। किसी अपराधी के द्वारा कोई आपराधिक घटनाओं का अंजाम नहीं दिया गया है। भविष्य में क्या होगा वह तो भगवान ही जानते हैं।
 एक सवाल के जवाब में सारिका कुमारी और काकेश कुमार कहते हैं कि दुनिया की तमाम चीज दे दें। परन्तु अपने मां-बाप को छोड़कर अन्यत्र नहीं जा सकते हैं। भले ही सिर छुपाने के लिए घर हो। इससे क्या होता हैरहने को घर नहीं, परन्तु सारा संसार हमारा।घुमंतू राम दयाल की सरकार से 5 बीघा जमीन रहने के लिए और 10 बीघा जमीन खेती करने के लिए देने की मांग की है।
इनके मसले को लेकर आम चुनाव के पूर्व भू अधिकार आंदोलन को तेज करने का निर्णय लिया गया है। पटना में आगामी 2 अक्तूबर 2013 से 100 संस्था-संगठनों को मिलाकर अंजाम दिया जाएगा। देश के नामीगिरामी नेताओं का आगमन महात्मा गांधी के कर्मभूमि, लोकनायक जयप्रकाश के क्रांतिभूमि, आचार्य विनोबा भावे के भूदानभूमि, महात्मा बुद्ध की ज्ञानभूमि और महाबीर के दर्षणभूमि बिहार में भू अधिकार आंदोलन के सिलसिले में पटना युर्वातुर्क नेता सुब्बा राव, आचार्य विनोबा के साथ कार्य करने वाले बाल विजय भाई, सामाजिक कार्यकर्ता स्वामी अग्निवेश, जल पुरूष राजेन्द्र सिंह आदि का होगा। यहां पर जन सरोकारों को लेकर सुदूर ग्रामीण अंचलों से आये लोगों के साथ संपर्क होगा। केन्द्र सरकार ने राज्य सरकारों की झोली में गेंद डाल दी है। अब थोड़ी केन्द्र सरकार को और बहुत राज्य सरकारों को कटघरे में लाने का प्रयास किया जाएगा।
  Alok Kumar