Friday, 12 July 2013

मुख्यमंत्री के दुलारे और दबंगों के दुत्कारे महादलित मुसहर समुदाय के गरीब लोग



               ठेकेदारों के द्वारा निर्मित मकान के छत अबतब में गिरने को उतारू

हिलसा। सूबे के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जी के गृह क्षेत्र नालंदा में महादलित कष्ट में हैं। हिलसा प्रखंड में कामता पंचायत और कमता गांव है। इसी गांव में अलग पर 110 साल से मुख्यमंत्री के दुलारे और दबंगों के दुत्कारे महादलित मुसहर समुदाय के गरीब लोग रहते हैं। प्रारंभ में ग्रामीण भूमिहीन नियोजन गारंटी कार्यक्रम के तहत मकान बनाया गया। जो अब जीर्णशीण अवस्था में गयी है। इसके छत अबतब में गिरने को उतारू है। वहीं पर एकदम घनी आबादी वाले क्षेत्र में सुअर के बखौरनुमा 40 घरों में 234 लोग रहने को बाध्य हो रहे हैं। यहां के महादलित मुसहर मेहनत की रोटी खाते हैं। इसी लिए शिक्षा की ओर ध्यान केन्द्रित ही नहीं किये। इसका नतीजा यह है कि यहां पर आजतक कोई भी वंदा मैट्रिक उर्त्तीण नहीं हो सका है।

 लाठी के सहारे चलने वाले बुर्जुग चमारी मांझी कहते  हैं कि सरकार ने गैर मजरूआ भूमि पर ग्रामीण भूमिहीन नियोजन गारंटी कार्यक्रम के तहत घर बनाने का आदेश निर्गत किया था। गैर मजरूआ भूमि का रकवा एक बीघा है। वर्ष 1989 में 27 महादलितों को डेढ़-डेढ़ डिसमिल जमीन दी गयी। सभी के नाम से पर्चा निर्गत किया गया है। थाना संख्या 60 है। जब उक्त कार्यक्रम के ठेकेदार मकान बनाने गये। तब गैर मजरूआ जमीन को हथियाने वाले कैलाश सिंह ने ठेकेदार को खदेड़ दिया। खदेड़े गये ठेकेदार ने अलग पर ही मकान बनाकर चला गया। आज भी खाता संख्या- 197 और खेसरा संख्या 2457 पर दबंग कैलाश सिंह का कब्जा है। जो ठेकेदार के द्वारा मकान बनाया गया। अब जर्जर हो गया है। इसके आलोक में इन्दिरा आवास योजना से 10 लोगों का मकान बना है। अल्प राशि होने के कारण मकान अधूरा ही रह गया है।

  यहां पर जरूर ही सरकार के द्वारा 35 महादलितों को पीला कार्ड निर्गत किया गया है। जो स्वागत योग्य है। यहां की गरीबता के अनुसार उचित भी है। केवल 5 लोगों को लाल कार्ड निर्गत किया गया है। समुचित जानकारी देने वाला राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना बन गया है। इसके तहत 30 परिवार को स्मार्ट कार्ड निर्गत किया गया है। स्मार्ट कार्ड का सदुपयोग केवल श्रीवंती देवी ने की है। उसने ऑपरेशन करवायी है। इसके अलावे किसी ने भी फायदा नहीं उठाया है।
यहां के संजय मांझी ने कहा कि आरंभ में हम लोगों को दबंग लोग मात्रः 2 सेर चावल मजदूरी में देते थे। इसके विरूद्ध महादलित संगठित हुए। कुदाल और खुरफी टांगकर खेत में काम करना बंद कर दिये। अहिंसात्मक आंदोलन का परिणाम यह निकला कि दबंग मालिकों ने सेर के बदले में किलो से मजदूरी देने लगे। जब आदमी नहीं मिलता है। तो 2 किलो के बदले 3 किलो दिया जाता है। एकदम जरूरी कार्य निपटारा करने के एवज में 5 किलो मजदूरी दी जाती है। दबंगों ने साजिश के तहत ही केवल 8 लोगों को जॉबकार्ड बनवा दिया है।

 कामता गांव के महादलितों ने बताया कि कोई शुरू में खेत मालिकों के 25 मुसहर हलावाहा का कार्य किया करते थे। उनको आठ कट्टा खेत मिलता था। खाने में सत्तू दिया जाता था। 14 गाही में 1 गाही धान दिया जाता था। काफी परिश्रम करने के बाद ही खेत मालिकों के चंगूल से महादलित निकल पाये हैं। कामता गांव में 350 बीघा जमीन गैर मजरूआ है। प्लाट संख्या 2457 है।
आलोक कुमार