Wednesday, 10 July 2013

बिहार में वनाधिकार कानून 2006 के तहत राज्य सरकार संवेदनशील नहीं



केवल 76 लोगों को वनाधिकार कानून के तहत लॉली पॉप के रूप में थमा दिया पर्चा

  गया। बिहार में वनाधिकार कानून 2006 के तहत राज्य सरकार संवेदनशील नहीं है। 7 साल के अंदर केवल 76 लोगों को वनाधिकार कानून के तहत लॉली पॉप के रूप में पर्चा थमा दिया गया है। इससे वनभूमि क्षेत्र में रहने वाले लोगों के बीच में आक्रोश व्याप्त है। इस संदर्भ में एकता परिषद,बिहार की संचालन समिति की सदस्या मंजू  डुंगडुंग ने कहा कि जमुई जिले में वनभूमि का परवाना मांगने वालों पर प्रशासन के द्वारा फर्जी मुकदमा दर्ज कर दिया जाता है।


चक्कर काटना पड़ता है कार्यालय का

वनाधिकार कानून 2006 को लागू होने के 7 साल के बाद हजारों की संख्या में अनुसूचित जनजाति और गैर अनुसूचित जनजाति रहते हैं। ऐसे लोग वनभूमि पर  वर्षों से काबिज हैं। परन्तु आज भी अपने हक के लिए विभागों के चक्कर काटने को मजबूर हो रहे हैं और तो और वन विभाग की प्रताड़ना झेलने को बाध्य हो रहे हैं।

राज्य अनुसूचित जनजाति आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष ललित भगत ने कहा    
       
  अनुसूचित जनजाति और गैर अनुसूचित जनजाति के लोगों का नेतृत्व करने वाले नेतागण भी प्रभावितों को न्याय दिलाने में अक्षम साबित हो रहे हैं। इस संदर्भ में राज्य अनुसूचित जनजाति आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष ललित भगत ने कहा है कि केन्द्र सरकार ने वनाधिकार कानून 2006 बनाया है। इसके तहत वनभूमि पर रहने वालों को वनभूमि का पर्चा देकर मालिकाना हक देना है। अभी तक बिहार में 76 लोगों को वनाधिकार कानून 2006 के तहत पर्चा दिया गया है। इसमें दो जिले भाग्यशाली हैं। जिनको वनभूमि पर काबिज रहने का परवाना मिल सका है। फिलवक्त बांका जिले में 54 और गया जिले में 22 लोगों को पर्चा मिला है।

क्या कहता है वनाधिकार कानून 2006          

 बिहार में बांका, जमुई, मधेपुरा, गया, पश्चिम चम्पारण, अररिया, कटिहार आदि जिलों में वनभूमि है। इस वनभूमि क्षेत्र में 13 दिसंबर,2005 से पूर्व रहने वाले अनुसूचित जन जाति और 3 पीढ़ी रहने वाले गैर अनुसूचित जन जाति के लोगों को वनाधिकार कानून 2006 के तहत परवाना देना है।

 ग्राम पंचायत के मुखिया के द्वारा प्रस्ताव पारित करना है

 वनाधिकार कानून के प्रावधान के तहत ग्राम पंचायत के मुखिया के द्वारा वनभूमि क्षेत्र में रहने वाले अनुसूचित जनजाति और गैर अनुसूचित जनजाति के लोगों का चयन किया जाता है। ग्राम पंचायत के मुखिया के द्वारा  प्रस्ताव पारित कर पंचायत समिति में अग्रसारित किया जाता है। इसके बाद जिला स्तर पर अग्रसारित किया जाता है।

 हरेक स्तर पर वन कमिटी निर्माण करना है

ग्राम पंचायत के मुखिया के द्वारा अग्रसारित के बाद पंचायत समिति के द्वारा अनुमोदित करने के बाद गहन रूप से जांच वन कमिटी के द्वारा करना है। आवेदन को स्वीकार करना अथवा अस्वीकार करना वन कमिटी के अधिकार क्षेत्र में आता है। वन कमिटी की अनुशंसा के बाद ही वनभूमि क्षेत्र में रहने वाले को वनभूमि का परवाना दिया जाता है।  अभीतक कई जिलों में वन कमिटी निर्माण नहीं किया जा सका है।

किसी तरह की कार्रवाई नहीं

वन अधिकार समिति के सचिव शिव कुमार दास ने बांका जिले के चांदन प्रखंड के अंचलाधिकारी महोदय के नाम से 06.9.2011 से आवेदन कार्यालय में पेश किया। आजतक यहां से किसी तरह की कार्रवाई नहीं की जा सकी है।  एकता परिषद, बिहार के कार्यकर्ता रविशंकर पासवान ने कहा कि अतरी प्रखंड के नरावट पंचायत के वनवासी ग्राम के लोग पहाड़ के नीचे रहते हैं। गैर अनुसूचित जनजाति श्रेणी में रहने वाले महादलित 4.5 पीढ़ी से रहते रहे हैं। इनका आवेदन  सीओ को दिया गया है। कार्रवाई नगण्य है। वहीं एकता परिषद,बिहार की संचालन समिति की सदस्या मंजू  डुंगडुंग ने कहा कि जमुई जिले में वनभूमि का परवाना मांगने वालों पर प्रशासन के द्वारा फर्जी मुकदमा दर्ज कर दिया जाता है।

Alok Kumar