महादलित मुसहर समुदाय
के रहनुमा बनने
वाले लोगों ने
प्रमोद कुमार को मौत
की मुंह से
नहीं निकाले
मात्रः 16 वंसत बहार
देखने के बाद
प्रमोद कुमार की इहलीला
समाप्त
पटना। जितना हो सका
मां-बाप ने
अपने पुत्र प्रमोद
कुमार की किडनी
की बीमारी से
छुटकारा दिलवाने के लिए
प्रयास किया। मां दुःखनी
देवी हमेंशा चितिंत
रहती थी कि
किसी तरह से
प्रमोद कुमार को जिंदा
रख सके। वह
अपनी ओर से
किसी तरह की
कोई कोर कसर
नहीं छोड़ रखी।
आखिर विधि के
विधान के सामने
झुकना ही पड़ा।
खैर,अपने नाम
के अनुरूप दुःखिनी
देवी और उसके
परिवार के लोग
गरीबी की मार
झेल रहे हैं।
विडम्बना है कि
बिस्तर पर प्रमोद
कुमार पड़ा रहता
था और उसकी
मां दुःखिनी देवी
कूड़ों के ढेर
पर चक्कर लगाती
और रद्दी कागज
आदि चुनकर लाती
थी और उसे
बेचकर प्रमोद कुमार
को किसी बड़े
चिकित्सक के पास
जाकर दिखलाती थी।
इस क्रम में
कभी महाबीर आरोग्य
संस्थान चली गयी
थी। कभी न्यू
नालंदा डायग्नोस्टिक सेंटर में जाकर
जांच करवाती। 8 अप्रैल,
2013 को डाक्टर एस. भट्टाचार्य
और 16 अप्रैल, 2013 को
डाक्टर एस.के.शर्मा को दिखलायी।
किडनी खराब हो
जाने के बाद
इधर महादलित छात्र
प्रमोद कुमार घर के
द्वार पर बैठे
और सोते हुए
किसी मसीहा की
तलाश करते रहा।
घर के द्वार
पर बैठने के
बाद कोई मसीहा
सामने नहीं आया।
उसे विष्वास था
कि उसकी तलाश
करके महादलितों का
रहनुमा बनने वाले
लोग आएंगे और
पर्याप्त रकम देकर किडनी
की बीमारी से
निजात दिलवा देंगे।
जिस स्कूल में
पढ़ता था। उसका
नाम शोषित समाधान
केन्द्र है। उसके
संचालक भी सुधि
नहीं लिये। इस केन्द्र
के द्वारा आवासीय
विघालय संचालित किया जाता
है। वहां के
प्रमोद कुमार छात्र था।
वहां से नौवीं
कक्षा उर्त्तीण करके
दसवीं कक्षा में
जाने की तैयारी
कर रहा था।
इस बीच विजयादशमी
के अवसर पर
केन्द्र के द्वारा
संचालित आवासीय विघालय में
छुट्टी हो गयी।
वह 10 दिनों की
छुट्टी पर घर
आने के बाद
बीमार पड़ गया।
बिस्तर पर गिरा
तो फिर बिस्तर
से उठ नहीं
सका। उल्लेखनीय है
कि प्रमोद कुमार
की मां-बाप
को यक्ष्मा रोग
से ग्रसित हैं।
पिता बुद्धू मांझी
और मां दुःखिनी
देवी बीमारी से
हलकान और परेशान
हैं। पिता बुद्धू
मांझी पलम्बर का
कार्य करते हैं
और मां रद्दी
कागज चुनती और
बेचती है। खा.पीकर जो
रकम शेष दोनों
ने बचा रखे
थे उससे अपने
16 वर्षीय पुत्र प्रमोद कुमार
की बीमारी में
झोंक दिये।
राजधानी के बगल
में पटना नगर
निगम के वार्ड
नम्बर 1 में दीघा
मुसहरी है। इसे
शबरी कॉलोनी से
भी जाना जाता
है। यहां पर
64 घरों में महादलित
मुसहर समुदाय के
लोग रहते हैं।
कोई 325 लोगों की जनसंख्या
है। सूबे की
सरकार के द्वारा
महादलितों का मकान
राष्ट्रीय ग्रामीण नियोजन कार्यक्रम
के द्वारा बना
दिया गया है।
जो अब जर्जर
हो गया है।
झुक गया आसमान
की तरह मकान
भी झुक गया
है। किसी तरह
से महादलित निवास
करते हैं। आरंभ
में दीघा के
चवर में जाकर
मुसहर समुदाय के
लोग मजदूरी किया
करते थे। बिहार
राज्य आवास बोर्ड
के द्वारा दीघा
की जमीन को
अधिग्रहण कर लिया
गया है। तब
खेत से हटकर
महुआ और मिठ्ठा
का दारू बनाने
के गैरवाजिब धंधे
से जुड़ गये
हैं। इससे मुसहर
समुदाय को कम
लाभ और अधिक
हानि होने लगी।
बेहिसाब से महुआ
और मिठ्ठा का
दारू पीने से
मुसहर समुदाय जानलेवा
यक्ष्मा बीमारी की चपेट
में आ गये।
इस यक्ष्मा बीमारी
की चपेट में
आने से पहले
बुजुर्ग लोग अल्लाह
के प्यारे हो
गये। इसके बाद
अधेड़ावस्था वाले मुसहरों
की अकाल मौत
होने लगी। अभी
जवान मुसहरों की
मौत हो रही
है। कुछ दिनों
के अन्तराल में
उदय मांझीए अर्जुन
मांझी और इंदल
मांझी की मौत
हो गयी है।
इस यक्ष्मा बीमारी
की चपेट में
अधिकांश मुहसर आ चुके
हैं। कई दर्जन
लोगों की मौत
हो चुकी है।
अन्य की तरह
बांसघाट में ले
जाकर प्रमोद कुमार
की अंतिम संस्कार
कर दिया गया।
आलोक कुमार
9939003721