विस्थापितों की सुधि ले सरकार
पटना उच्च न्यायालय के आदेश से
पुनर्वास करने की व्यवस्था
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पुनर्वास संघर्ष मोर्चा के नेता 23 अगस्त,2013 को जनता दरबार गयेः
पुनर्वास
संघर्ष मोर्चा के नेता
सुनील कुमार,गोर्वधन
साव और जयराम
चौहान आवेदन पत्र
लेकर 23 अगस्त को जनता
दरबार में फरियाद
पेश करने गये
थे। टेशलाल वर्मा
नगर के बारे
में जानकारी देकर
पुनर्वास करने की
मांग कर रहे
थे। इसके पहले
भी 14 जुलाई,2011 को
जिलाधिकारी, पटना को
आवेदन पत्र देकर
कह चुके हैं
कि पाटलिपुत्र स्टेशन
को 12.10.2012 को चालू
होने वाला है।
मगर पाटलिपुत्र स्टेशन
से रेलगाड़ी का
परिचालन शुरू नहीं
हुआ। इसके बाद 22 अगस्त,2013
को पुनर्वास संघर्ष
मोर्चा ने नेतृत्वकर्ताओं
ने जिलाधिकारी, पटना
को आवेदन पत्र
देकर कहा कि
25 अगस्त,2013 से पाटलिपुत्र
स्टेशन से रेलगाड़ी
का परिचालन होगा।
उस दिन जनता
दरबार में जिलाधिकारी
महोदय के बदले
में एडीएम साहब
जनता दरबार में
फरियाद सुन रहे
थे। आवेदन पत्र
देने के बाद
एडीएम साहब ने
दानापुर अंचल के
सीओ को फोन
लगाकर टेशलाल वर्मा
नगर के बारे
में जानकारी लिये।
दानापुर अंचल के
सीओ का एकमात्र
वक्तव्य था कि
सभी लोग मुख्यमंत्री
के गृह स्थल
नालंदा जिले से
आकर रहते हैं।
बस इसी जगह
से मामला बिगड़
गया।
पटना उच्च न्यायालय ने 4 माह के अंदर पुनर्वास करने को कहाः
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खुले आकाश के नीचे जीवन बसर करने को बाध्यः
बीएमपी
और आरपीएफ के
सहयोग से 23 और
24 अगस्त को पाटलिपुत्र
रेलवे लाइन के
किनारे रहने वाले
गरीबों की सपनों
की झोपड़ी को
जेसीबी मशीन से
ध्वस्त कर दिया।
इस संबंध में
लोगों का कहना
है कि बिना
नोटिस के ही
रेलवे व जिला
प्रशासन ने झोपड़ियों
को ध्वस्त कर
दिया। इससे करीब
पांच सौ परिवार
खुले आकाश के
नीचे जीवन बसर
करने को विवश
हैं।
दूधमुंहा बच्चों का बुरा हालः
गुड्डू
कुमार और ममता
देवी के घर
में पुत्र रत्न
प्राप्त हुआ है।
मात्र 3 दिन का
मासूम बच्चा है।
केवल तीन दिन ही
खुशी मनायी गयी।
इसके बाद सारा
घर झोपड़ी ध्वस्त
हो जाने से
मातम मना रहे
हैं। रंजीत बिंद
और विमला देवी
को झोपड़ी का
लाल मिला। मात्र
6 दिन की खुशी
के बाद संपूर्ण
परिवार परेशान होने लगा
है। जितेन्द्र साव
और सोनी देवी
के सहयोग से
घर में पुत्र
रत्न प्राप्त हुआ
है। खुशी के
12 दिनों के बाद
ही घर में
गम समा गया
है। सुधीर मांझी
और संगीता देवी
की झोपड़ी में
लड़की बच्ची जन्म
ली है। 20 दिन
की है। इसी
तरह का रस्म
अदायगी करने की
स्थिति में नहीं
है। बुलडोजर के
कारण घर-द्वार
स्वाहा हो गया
है। अब सवाल
है कि सिर
छुपाने लायक भी
जगह नहीं है।
नवजात शिशुओं की
मां बच्चों को
किस तरह से
ख्याल रखेंगी? दिन
में गर्मी और
रात में ठंडक
की मार नवजात
शिशु सहन कर
पाएंगे? उसी तरह
घर में चूल्हा
नहीं जलने के
कारण नवजात शिशुओं
की मां को
आहार और खाना
नहीं मिल पा
रहा है। आखिर
किस तरह से
स्तनपान करा पायेंगे।
क्या सरकार किसी
की मौत के
बाद कदम उठाएंगी?
चूल्हा जलाने लायक भी नहीं छोड़ः
बुलडोजर
के कहर से
आहत परिवार के
लोग दुख के
समुन्द्र में समा
गये हैं। चूल्हा
ठंडा पर गया
है। भूख से
मचलते बच्चों को
बाजार से मकई
खरीद कर दिया
जा रहा है।
कल्याणकारी सरकार की छवि
सामने नजर आ
रही है। नागरिकों
को सुधि नहीं
ली जा रही
है। वहीं राज्य
मानवाधिकार आयोग भी
संज्ञान नहीं ले
रहा है। भूगर्भ
सदृश्य झोपड़ी में रहने
वाले उपेन्द्र सिंह
की नन मैट्रिक
बीबी रेणु देवी
ने कहा कि
तिनका-तिनका जोड़कर
घर बनाया गया।
आकर दुश्मनों ने
तोड़ दिया। अब
जाए तो जाए
कहां की स्थिति
बन गयी है।
15 से 20 फीट तोड़ेने के बदले तो तमाम झोपड़ी ही ध्वस्त कर दियेः
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अब स्कूल की बारीः
यहां
पर दो आंगनबाड़ी
और एक प्राथमिक
विघालय है। जो
बुलडोजर की चपेट
में आ गयी
है। वैसे तो
बिहार शिक्षा परियोजना
परिषद, जगदेव पथ , बेली
रोड, पटना ने
भवनहीन विघालय को नजदीक
के भवनयुक्त विघालय/भवन में
स्थानान्तरण करने के
संबंध में पत्रचार
किया है। प्रधान
सचिव शिक्षा विभाग,बिहार,पटना के
पत्रांक 186/सी दिनांक
1.7.2013 है। आपके पास
भवनहीन विघालय जो पहले
से नवनियुक्त विघालय/भवन में
संचालित है,उसे
पूर्ववत रखने एवं
ऐसे विघालय जो
भवनहीन है उसका
नजदीक के भवनयुक्त
/भवन में स्थानान्तरित
करने का प्रस्ताव
दिया गया था।
प्रस्ताव पर जिला
पदाधिकारी से अनुमोदन
प्राप्त किया जा
रहा है। इसके
बाद भी आंगनबाड़ी
और प्राथमिक विघालय
पर संकट के
बादल मडरा रहे
हैं। कभी भी
आंगनबाड़ी और प्राथमिक
विघालय को ध्वस्त
किया जा सकता
है।
पटना उच्च न्यायालय के आदेश और अहिंसात्मक आंदोलन को दिखाया ठेंगाः
पटना
उच्च न्यायालय में
जनहित याचिक 2010 में
दाखिल की गयी।
पटना उच्च न्यायालय
ने आदेश पारित
किया कि 4 माह
के अंदर सरकार
विस्थापितों को पुनर्वास
करने की व्यवस्था
कर दें। परन्तु
ऐसा नहीं हो
सका। विस्थापित पटना
उच्च न्यायालय के
आदेश प्रति को
आने वाले किसी
भी व्यक्ति को
दिखाकर न्याय करने की
मांग कर रहे
हैं। इसी तरह
विस्थापित लोग पुनर्वास
की मांग को
लेकर अहिंसात्मक आंदोलन
करते रहे। प्रजातंत्र
के चार स्तंभ
के समक्ष गुहार
लगाते रहे। चारों
स्तंभ न्यायपालिका,कार्यपालिका,विधायिका और पत्रकारिता
के समक्ष फरियाद
करते रहे। बावजूद,
आश्वासन के कुछ
नहीं मिला। यह
कहा जा सकता
हैं कि वर्तमान
समय में अहिंसात्मक
आंदोलन करने वालों
को भी तरजीह
नहीं नहीं दिया
जाता है। चाहे
आपके साथी आंदोलन
के दरम्यान शहीद
क्यों न हो।
टेशलाल वर्मा नगर के
विस्थापित लोगों ने वर्ष
2007 में दानापुर प्रखंड परिसर
में बेमियादी सत्याग्रह
9 माह तक चलाएं
थे। इस दौरान
तेतरी देवी नामक
महिला साथी की
मौत हो गयी।
शहीद तेतरी देवी
भी सरकार के
दिल को मुलायम
करके विस्थापितों को
पुनर्वास नहीं दिला
सकी।
हुजूर, कुछ तो करें:
जेसीबी
के कहर के
आंतक में गरीब
लोग है। खुले
आकाश के नीचे
रहने को बाध्य
हैं। इस समय
नवजात शिशु, धात्री
माता,किशोरी लड़कियां,
नवयुवती,महिलाएं और तमाम
लोगों का मानवाधिकार
की समस्या उत्पन्न
हो गयी है।
इनका मौलिक अधिकार
का सवाल उत्पन्न
हो गया है।
हुजूर, इस समय
यहां के लोगों
का जान-माल
की रक्षा करने
की जरूरत है।
इस समय प्रभावित
लोगों का चूल्हा
बंद है। सभी
लोग रेल की
पटरी पर पनाह
ले लिये है।
हुजूर, इनके घाव
पर मलहम लगाने
की जरूरत है।
आलोक कुमार