Thursday 12 September 2013

महादलित मुसहरों ने महुआ दारू को आजीविका से जोड़ रखा है


जीने के लिए और मरने के लिए महुआ दारू
अनगिनत लोग टी.बी.बीमारी के शिकार होकर दम तोड़ चुके



पटना। पटना सदर प्रखंड और पटना नगर निगम के वार्ड नम्बर एक में स्थित है दीघा मुसहरी। इसे शबरी कॉलोनी भी कहा जाता है। यहां पर घर-घर में महुआ और गुड़ से महुआ दारू बनता है। अब यह धंधा कुटीर उघोग का रूप ले लिया है। उत्पाद विभाग के पुलिस और अधिकारियों के द्वारा लाख प्रयास करने के बाद भी कुटीर उघोग ठप नहीं हो पाता है। हां, इतना जरूर है कि पटना में पदस्थापित वरीय आरक्षी अधीक्षक मनु महाराज से धंधेबाज खौफ खाते हैं। इसे महादलितों ने आजीविका का भी साधन बना दिया है। इसी से जीना और इसी से मरना होता है।
आरंभ में खेतिहर मजदूर थे महादलितः
आरंभ में दीघा मुसहरी के महादलित मुसहर खेतिहर मजदूर थे। किसानों के खेत में मुसहर मजदूरी किया करते थे। किसानों की खेती योग्य जमीन को बिहार राज्य आवास बोर्ड ने अधिग्रहण कर लिया है। बिहार राज्य आवास बोर्ड ने 10.24 एकड़ जमीन अधिग्रहण कर रखा है। यहां पर किसान मकई, प्याज,आलू,धान,गेहूं, सब्जी आदि उपजाते थे। यहां के उत्पादन सामग्री को किसान दीघा हाट में ले जाकर बेचते थे। आज भी दीघा हाट बरकरार है। बाहर से सब्जी लाकर बेचा जाता है।
अधिग्रहण करने के बाद मुसहर रद्दी कागज चुनने लगेः
बिहार राज्य आवास बोर्ड के द्वारा राजीव नगर की जमीन को अधिग्रहण करने के बाद खेत में मजदूर काम नहीं कर सकने के कारण दीघा मुसहरी की महिलाएं और बच्चे रद्दी कागज आदि चुनकर बेचने लगे। पुरूष लोग बगीचा में लकड़ी और ठीका पर लेकर काम करने लगे। किसी तरह से जीविका चलाने लगे। कुछ पूंजी होने पर महुआ और गुड़ खरीदकर महुआ दारू बनाने लगे। पुरूष काम करके आने के थकावट दूर करने के नाम पर दारू पीने लगे। इस तरह मुसहर महुआ दारू से जीने और दारू पीकर मरने लगे।
जानलेवा यक्ष्मा बीमारी होने के बाद अनगिनत मुसहर मौत के गाल में समा गयेः
अभी-अभी उर्मिला देवी नामक महिला की मौत हो गयी। सिरोसिस ऑफ लीवर हो गया था। पेट और पैर में सूजन हो गया था। इसके पहले महुआ दारू पीकर यक्ष्मा बीमारी की चपेट में आकर अनगिनत मुसहरों की मौत हो गयी है। एक बबन मांझी नामक मुसहर का कहना था कि हम लोगों को बासी पैसा नहीं धारण होता है। आज जितना भी कमाते हैं, उतना खा-पीकर खत्म कर देना है। बचत करने का सवाल ही नहीं उठता है। ऐसा करने से कुछ माह के अंदर परलोक सिधार चुके।
 बाजार में महुआ और गुड़ आसानी से मिल जाता हैः
दीघा हाट और तो और दीघा मुसहरी के आसपास के दुकानदार धड़ल्ले से महुआ और गुड़ बेचते हैं। 2 किलो महुआ और 1 किलो गुड़ की कीमत 170 रूपए पड़ता है। वजन करके दुकानदार महुआ और गुड़ को पॉलिथीन में करके रखते हैं। ग्राहकों की मांग पर रकम लेकर पॉलिथीन थमा देते हैं। इसके बाद घर लाया जाता है। इसी तरह बाजार में लकड़ी भी उपलब्ध है। 40 रूपए में पांच किलो लकड़ी मिलती है। खाना लकड़ी पर बने या बने मगर महुआ दारू लकड़ी पर ही बनाया जाता है।
कैसा बनता है महुआ और गुड़ का दारूः
बाजास से महुआ और गुड़ खरीदकर लाया जाता है। उसे बाल्टी में भरा पानी में डाल दिया जाता है। घर के अंदर अथवा घर के बाहर मिट्टी के पात्र में रखकर खाकी वर्दीधारियों से बचाने के लिए मिट्टी के अंदर गाढ़ दिया जाता है। करीब 10 दिनों तक महुआ और गुड़ को सड़ने दिया जाता है। उसके बाद निकाला जाता है। उसके बाद आग के ऊपर स्पेशल पात्र में डाल दिया जाता है। तब जाकर साइफन पद्धति से भाप बनकर नली के सहारे नीचे रखे पात्र में टपकना शुरू हो जाता है। एक-डेढ़ घंटे के अंदर महुआ दारू बन जाता है। उस समय दारू गरम रहता है। जितना दारू उतना ही पानी डालकर दारू पीने लायक बनाया जाता है। एक बोतल की कीमत 40 रूपए है। जितना लागत है दुगुना बन जाता है।
आलोक कुमार