Thursday 12 September 2013

सावन में इंजोर और भादो में अंधेर हो जाता


सावन में इंजोर और भादो में अंधेर हो जाता

 बांका। मात्रः सावन महीने में ही जिला प्रशासन के द्वारा भगवान शंकर के भक्तों का स्वागत किया जाता है। बोलबम का नारा लगाने वाले को उत्साह बढ़ाने के लिए देश और प्रदेश से काफी लोग आकर सामग्रियों को फ्री वितरण करते हैं। वहीं जिला प्रशासन के द्वारा भागलपुर से लेकर देवघर तक रातदिन बिजली दी जाती है। इसके कारण दिनरात में फर्क करना मुश्किल हो जाता है। बिजली की रोशनी प्रसार करने से देखने में काफी आनंद आता है।
बोलबम का नारा लगाने वालों का हौसल्ला भादो माह में पस्त:
वहीं सावन महीने के समापन के बाद भादो माह आते ही जिला प्रशासन के द्वारा सावन माह के दरम्यान बढ़ाए गए हाथों को खिंच लिया जाता है। इसके कारण बोलबम का नारा लगाने वालों का हौसल्ला भादो माह में पस्त हो जाता है। शाम ढलते ही अंधेरा का राज कायम हो जाता है। टॉच की रोशनी में शंकर के भक्त चलने को मजबूर हो जाते है। इस तरह के परेशानी के संदर्भ में बोलबम का नारा लगाने वाले कहते हैं कि सावन में इंजोर और भादो में अंधेर हो जाता है। यह भक्तों के साथ नाइंसाफी किया जाता है। इस परेशानी के कारण कुछ ही दूरी तय करने के बाद बाबा के भक्त थक जाते हैं और आराम करने लगते हैं।
बोल बम का नारा लगाने वाले भक्तों को बढ़ाई गयी कीमत पर समान खरीदना पड़ता हैः
सावन महीने के बाद भादो में भी दुकान सजायी जाती है। मगर दुकान सजाने वाले दुकान बढ़ी हुई कीमतों पर समान बेचते हैं। उनका कहना है कि जमीन और बिजली बिल भुगतान करना पड़ता है। उसके अलावे उसपर मजदूरी भी है। शोचक्रिया के लिए पांच रूपए लिया जाता है। बोलबम बोलने वालों को स्नान से लेकर खाने तक भारी कीमत अदा की जाती है। एक सौ रूपए खुदरा लेने पर 80 रूपए दिये जाते हैं।
 बाबा के भक्तों के द्वारा आराम करने पर कान पकड़कर करना पड़ता है उठ और बैठकीः



भागलपुर जिले के सुल्तानगंज से पानी लेकर बढ़ने वाले भोले बाबा के भक्त पूर्णिया और बांका जिला तय करके देवघर जिले में प्रवेश करते हैं। 105 किलोमीटर तय करना पड़ता है। बीच में आराम करके भोजनादि करने पर दण्ड स्वरूप कान पकड़कर उठा-बैठकी करनी पड़ती है। इसके पहले गंगा जल से स्वयं को शुद्ध किया जाता है। उसके बाद जोरदार ताली बजाकर बोलबम का नारा लगाकर उठा-बैठकी पांच बार की जाती है। उसके बाद कांवर लेकर आगे की ओर प्रस्थान करते हैं।
आलोक कुमार