आपस में मिलन होने वाला तार जुदा होकर जमीन पर गिर गया। एक तरफ का तार जलेबी के गिरे ढहनी की ओट में चला गया। दूसरी तरफ का तार लटकलने लगा। इसके बाद फोन से सूचना दी गयी । जब जाकर 1 बजे रात में बिजली विभाग ने बिजली गूल कर दिया। जलेबी के गिरे पेड़ के कारण किसी की हताहत होने की खबर नहीं है।
पटना। वैसे तो
राजधानी पटना में
चक्रवाती तुफान का कहर
देखने को नहीं
मिला। फिर भी
सूबे के अन्य
जिलों में भारी
तबाही होने की
खबर है। सुदूर
गांवघर में अधिक
नुकसान हुआ है।
वहां पर हजारों
की संख्या में
झोपड़ियों जमींदोज हो गया।
सैकड़ों पेड़ उखड़
गये। बिजली व्यवस्था
अस्तव्यस्त हो गयी।
वहीं राजधानी से
सटे कुर्जी और
दीघा क्षेत्र में
33 केवी का तार
गिर जाने के
कारण 11 घंटे के
बाद ही बिजली
रानी आकर घरों
में रोशनी फैला
दी। जलेबी के
गिरे पेड़ के
कारण किसी की
हताहत होने की
खबर नहीं है।
इसके पहले लोगों
को पानी नहीं
मिलने के कारण
नहाना,खाना,पीना
मुहाल हो गया।
जब खुदा मेहरमान हो गयेः
कुर्जी क्षेत्र में
एक ही जगह
में 33 हजार,11 हजार,440 केवी
का तार है।
33 हजार केवी का
तार पीपल पेड़
के नीचे से
होकर प्रवाहित होता
है। 440 केवी का
तार जलेबी पेड़
के नीचे से
प्रवाहित होता है।
चक्रवाती तुफान से जलेबी
का पेड़ 440 पर
जाकर गिर गया।
पेड़ गिरने से
इसका सर्म्पक जमीन
से हो गया।
इस बीच तुफान
के कारण पीपड़
पेड़ के नीचे
से 33 हजार केवी
का दो तार
आपस में मिल
गये। इस दो
तार के मिलन
होने से चिंगारी
उत्पन्न होने लगी।
कुछ ही समय
में चिंगारी आग
में तब्दील हो
गयी। आग की
लपट धरती तक
पहुंच गयी। इसके
बाद आपस में
मिलन होने वाला
तार जुदा होकर
जमीन पर गिर
गया। एक तरफ
का तार जलेबी
के गिरे ढहनी
की ओट में
चला गया। दूसरी
तरफ का तार
लटकलने लगा। इसके
बाद फोन से
सूचना दी गयी
। जब जाकर
1 बजे रात में
बिजली विभाग ने
बिजली गूल कर
दिया। जलेबी के
गिरे पेड़ के
कारण किसी की
हताहत होने की
खबर नहीं है।
सुबह में
बिजली मिस्त्री आकर
मरम्मती का कार्य
शुरू करके सामान्य
होने पर लाइन
चालू किया। इसके
बाद फिर से
तार से चिंगारी
उत्पन्न होने लगी।
जल्दी से लाइन
काटा गया। इसके
बाद बिजली विभाग
के कनीय अभियंता
ने कार्यालय से
बी0 इंसुलेशन लेकर
आये। एक व्यक्ति
को पीपड़ के
पेड़ पर चढ़ाया
गया। पेड़ की
ढहनी पर बैठ
कर बी0 इंसुलेशन
से एक तार
को बांध दिया।
इसके बाद ही
बिजली व्यवस्था सुचारू
की जा सकी।
कोई 11 घंटे से
लोग अंधकार के
साये में जीने
को बाध्य हो
रहे थे। रातभर
पानी बरसने के
कारण बिजली मिस्त्री
रिस्क नहीं लेना
चाह रहे थे।
जब पानी गिरना
बंद हुआ तो
यह कार्य संभव
हो सका।
आलोक कुमार