दानापुर।
अगर आपको महादलित
मुसहर टोले में
जाने का मौका
मिला होगा तो
आप वहां पर
जरूर ही सूअर
के बखोर भी
देखे होंगे। बस सूअर पालकों के
द्वारा किसी तरह
से मिट्टी से
छोटा और अंधकारमय
घर बना दिया
जाता है। सूअर
के बखोर के
ऊकर कुछ लकड़ी
और कुछ पुआल
से पाटकर बना
दिया जाता है।
इसी सूअर के
बखोर को कई
मर्तबा उदहारण देकर कहा
और लिखा जाता
है कि आज
भी समाज के
किनारे रहने वाले
लोग सूअर के
बखोरनुमा घर में
रहने को बाध्य
हैं।
जर्जर मकानों में रहते हैं महादलित मुसहरः
दानापुर
प्रखंड के जमसौत
मुसहरी में रहने
वाले महादलित मुसहरों
को मकान बनाने
के लिए राशि
मिली है। यहां
पर 110 घर है
और जनसंख्या 375 से
अधिक है। यहां
पर प्रायः सभी
लोगों को सरकार
के द्वारा मकान
बनाया गया है।
केवल एक दर्जन
की संख्या में
लोग लाभ से
वंचित हैं। यहां
पर इंदिरा आवास
योजना के तहत
मकान बने थे
जो जर्जर हो
गया है। अबतब
में गिरने पर
उतारू है। ऐसे
मकानों को नये
सिरे से निर्माण
करने की जरूरत
है। चेनारिक मांझी
(80 साल ) और सकलवसिया
देवी (75 साल ) का भी
घर जर्जर हो
गया है। बताते
चले कि यहां
पर प्रारंभ में
लाभान्वितों को मकान
बनाने के लिए
25 हजार रूपए मिलता
था। इसको बढ़ाकर
45 हजार रू0 कर
दिया गया। इसके
अभी 70 हजार रू0
मिल रहा है।
यहां पर अभी
70 हजारी राशि नहीं
मिली है।
यहां पर नीचे सूअर और ऊपर में इंसान का मकान हैः
यहां
पर जीतू मांझी
और उनकी पत्नी
साबित्री देवी ने
सूअर के बखोर
को आधुनिक तरीके
से बनाये हैं।
भू-गर्भ सूअर
के बखोर बनाकर
छत ढलाई कर
दिया गया है।
खुद सूअर के
बखोरनुमा घर के
ऊपर रहते हैं।
सूअर पालन करना
भी एक व्यवसाय
है। अभी इसके
पास एक ही
सूअर है। वह
भी अभी- अभी
खरीदी है। मजे
की बात है
कि इंसान के
रहने वाले घर
की छत ढलाई
नहीं किया जा
सका है। राशि
के अभाव में
छत ढलाई नहीं
की गयी है।
घर के अंदर
पानी और धूप
न प्रवेश करें
उसके लिए ताड़
का पता और
कुछ जगह में
कर्कट लगा दी
है। इतना तो
जरूर है कि
जीतू मांझी की
छत की ढलाई
कराने की औकात
नहीं है। अगर
सरकार के द्वारा
सहयोग दिया जाएगा
तब ही यह
संभव हो सकता
है।
पेड़ से गिरा तो इलाज में खर्च कर दियेः
सरकार
के द्वारा गरीबी
रेखा के नीचे
रहने वालों को
मोटी राशि देकर
इंदिरा आवास योजना
के तहत मकान
निर्माण कराया जाता है।
इसमें जन प्रतिनिधि
और कुछ दलाल
शामिल होकर राशि
में बंदरबांट कर
लेते हैं। जिसका
परिणाम यह होता
है कि लाभार्थी
इंदिरा आवास के
तहत मकान नहीं
बना पाते हैं।
यहां कुछ अलग
ही बात है।
निफिकर मांझी और मरनी
देवी को 9 जून,
2007 में 25 हजार रू0
मिले थे। जब
लिंटर तक मकान
बन रहा था
तो दुर्भाग्य से
निफिकर मांझी काम के
दौरान पेड़ पर
से गिर गये।
कामकाज बंद हो
गया। परिवार के
लोग दाने-दाने
के लिए मोहताज
हो गये। जमसौत
ग्राम पंचायत की
मुखिया बेदामो देवी भी
सहायक नहीं बनी।
तब निफिकर मांझी
की मां रामझरिया
देवी दुर्गा मां
की तरह सामने
आ गयी। उसने
अपने जर्जर मकान
को तोड़कर ईंट
और छड़ बेच
दी और अपने
पुत्र के इलाज
में खर्च कर
दी। स्वर्गीय ब्रह्यदेव
मांझी की विधवा
रामझरिया देवी को
कुश्ठ होने के
बाद हाथ-पैर
से विकलांग हो
गयी है। तब
भी आर्फत के
समय में खड़ी
होकर अपने पुत्र
का इलाज करा
सकी। अभी निफिकर
मांझी स्वस्थ होकर
परिवार की गाड़ी
खिंच रहा है।
एक को टी0बी0एम0 तो दूसरे को चेस्ट टी0बी0 होने के बाद इलाज करायाः
यहां
के कृष्णा मांझी
और कौसमी देवी
की बेटी को
सिर में टी0बी0 बीमारी
हो गयी थी।
इसे टी0बी0एम0 कहा
जाता है। दोनों
दम्पति को 18 जून,2007 में
25 हजार रू0 मिला
था। छत ढालने
वाली ही थीं
कि बेटी बबीता
कुमारी को टी0बी0एम0
हो गया। जो
रकम बच रहा
था। उसे बबीता
कुमारी को स्वस्थ
होने में लगा
दी। अभी वह
ठीक है। कृष्णा
मजूदरी करके परिवार
चलाता है। वहीं
करीमन मांझी और
उर्मिला देवी को
11 दिसम्बर,2010 में 45 हजार रू0
मिले। छत ढालने
लायक घर बना
लिया था कि
करीबन मांझी को
खून की उल्टी
होने लगी। इंदिरा
आवास योजना की
बाकी राशि को
बीमारी में व्यय
कर दी। महेश
मांझी और शांति
देवी को 45 हजार
रू0 मिला। किसी
तरह से मकान
की छत ढालने
में कामयाब हो
गया। अधूरा मकान
था महाजन और
मानदेय की राशि
मिलाकर छत ढाल
सकी। शांति देवी
आंगनबाड़ी में सहायिका
हैं।
सरकार
कुछ और राशि
विमुक्त करें:
इस
संदर्भ में सामाजिक
कार्यकर्ता अजय मांझी
का कहना है
कि अनुसूचित जाति
और अनुसूचित जन
जाति के कल्याण
और विकास के
लिए जो राशि
का प्रावधान किया
जाता है। मगर
सरकार के द्वारा
एससी/एसटी की
राशि को अन्य
मद में उपयोग
कर देती है।
इसी तरह जमसौत
मुसहरी के महादलित
मुसहर समुदाय के
लोगों ने मकान
बनाने के बदले
बीमारी में खर्च
कर दिये। वह
अब फंसाना साबित
होने लगा है।
वैसे तो सरकार
के द्वारा 1 अप्रैल,2004
से पूर्व अधूरा
मकान बनाने के
लिए राशि दी
जा रही है।
श्री मांझी ने
जमसौत मुसहरी के
महादलितों के साथ
हमदर्दी दिखाकर मकान पूरा
करने के लिए
कुछ और राशि
विमुक्त कर दिया
जाए।
आलोक कुमार