सुन लो ओ दीवानों ऐसा
काम न करों ताकि प्रदेश का नाम बदनाम न हो जाए

महज
बालक येसु की
मां माता मरियम
की प्रतिमा में
माता मरियम को
लाल पाड़ की
साड़ी पहना देने
से मामले को
तूल कर राजनीति
रंग देने का
प्रयास किया जा
रहा है। भोले-भाले आदिवासियों
को समझाया जा
रहा है कि
यह तो केवल
एक बहाना है।
वास्तव में आगामी
लोकसभा में फतह
होने के लिए
हिन्दू कार्ड खेलने वाली
राजनीति दल ने
हवा तेज कर
रखी है। ऐसे
साम्प्रदायिक शक्ति को आम
चुनाव-2014 में शिकस्त
देना ही है।
झारखंड धर्म परिवर्तन
करने वालों को
घर वापसी कराने
के कार्यक्रम में
आदिवासियों के बीच
में फूट डालकर
चुनाव में उतरना
चाहते हैं।

आदिवासी
संगी-साथियो, यह
झारखंड की सच्चाई
है कि आज
हम आदिवासी चाहे
उरांव, संताल, मुंडा, खड़िया,
हो या असुर,
बिरहोर, पहाड़िया हों, सभी
समुदाय में लोग
ईसाई बन गए
हैं तो कुछ
लोग खुद को
हिन्दू भी मानने
लगे है। वहीं
इन सभी आदिवासी
समुदायों में बहुत
से लोग अपने
आदि धर्म सरना
भी मान रहे
है। हालत यह
है कि एक
भाई-बहिन ईसाई
या हिन्दू हो
गए हैं तो
दूसरे भाई-बहिन
सरना है। ऐसे
में सवाल उठता
है कि वे
सरना धर्मगुरू लोग
कौन है जो
लगातार चर्च और
ईसाईयत के खिलाफ
घृणा फैला रहे
हैं? इस घृणा
और झगड़े से
किसको फायदा होगा?
सरना धर्म को
या हिन्दू धर्म
को?
सोचने
वाली बात यह
है कि सरना
धर्म धार्मिक तौर
पर ईसाई और
हिन्दू धर्म दोनों
से ही प्रभावित
हो रहे हैं।
हर साल हिन्दू
पूजा में सरस्वती
और दुर्गा को
लाल पाड़ वाली
साड़ी पहनाई जाती
है। इस साल
के दशहरा त्योहार
में तो कई
जगह दुर्गा और
अन्य सभी प्रतिमाओं
को सिर्फ कपड़ा
ही नही बल्कि
आदिवासी रूप में
स्थापित किया गया
था। झारखंड के
सभी आदिवासी स्कूलों
और आदिवासी हॉस्टलों
में सरस्वती पूजा
और हिन्दू परब-त्योहार मनाया जाता
है। अफसोस! वर्षो
से हिन्दू समाज
द्वारा किए जा
रहे इस आक्रमण
पर हमारे तथाकथित
स्वयंभू ‘सरना धर्मगुरू’
आहत नहीं होते।
लेकिन एक किसी
चर्च में यदि
माता मरियम की
साड़ी लाल पाड़
वाली हो गई
तो बवाल मचा
रहे है। हमारा
सवाल है इन
तथाकथित धर्मगुरूओं से कि
हिन्दू धर्म के
इस हमले पर
वे क्यों चुप
हैं? दुर्गा को
लाल पाड़ वाली
साड़ी पहनाना, उसे
आदिवासी रूप में
दिखाना और आदिवासी
स्कूलों और छात्रावासों
में सरस्वती पूजा
करना क्यों आदिवासियत
और सरना धर्म
की पहचान व
अस्तित्व पर चोट
नहीं हैं?
असलियत
यही है कि
ये हिन्दू धर्म
के धर्मांतरण और
सांस्कृतिक हमले का
विरोध नहीं करेंगे।
क्योंकि ये सरना
धर्म की आड़
में आदिवासियों को
हिन्दू बनाने में लगे
हैं। क्योंकि इन्हें
आरएसएस,विश्व हिन्दू परिषद
और भाजपा इस
घृणित काम को
करने के लिए
आदिवासी एकता को
तोड़ने के लिए
आदिवासी को खत्म
करने के लिए
पैसा देती है।
ये तथाकथित स्वयंभू
सरना धर्मगुरू हिन्दू
धर्म के पाले
हुए पिठ्ठू हैं।
अगर इन्हें वाकई
में सरना धर्म
और आदिवासी पहचान
की चिंता होती
तो ये ईसाई
के साथ-साथ
हिन्दू धर्म के
संस्कृतिकरण का भी
विरोध करते हैं।
आदिवासी
भाई-बहनों सोचिए
और सवाल पूछिए
ऐसे भाड़े के
लोगों से जो
पुरखा झारखंड दिसुम
को घृणा और
विद्वेष की आग
में झोंक देने
का खूनी खेत-
आरएसएस और भाजपा
के स्पांसरशिप में
खेलना चाह रहे
हैं।
·
कि
आदिवासी का अर्थ
क्या है?
·
कि
ईसाई या हिन्दू
हो गए आदिवासी
हमारे दुश्मन कैसे
हैं?
·
कि
माता मरियम की
लाल पाड़ वाली
से सरना को
खतरा है तो
फिर दुर्गा-सरस्वती
की लाल पाड़
वाली साड़ी पर
उनकी खामोशी क्यों
है?
·
कि
आदिवासी इलाकों के स्कूलों
और छात्रावासों में
हिन्दू पूजा-त्योहारों
के आयोजन पर
आज तक इन
खून क्यों नहीं
खौलता?
कि
आदिवासी को बंदर
और वनवासी कहने
वाले तथा सरना
को हिन्दू धर्म
बताने वाले आरएसएस
व विश्व हिन्दू
परिषद के खिलाफ
आज तक इन्होंने
कोई विरोधात्मक कदम
क्यों नहीं उठाया? कि
आदिवासी समाज में
कोई धर्मगुरू नहीं
होता फिर वे
कैसे धर्मगुरू बन
गए?
·
कि
चर्च के खिलाफ
होने वाले उनके
प्रदर्शनों के लिए
बस और गाड़ियों
के खर्चें कौन
देता है?
· कि
आदिवासी पहचान और अलग
झारखंड राज्य की मांग
करने और लड़ाई
लड़ने वाले अधिकांश
झारखंड आन्दोलनकारी अगुआ कौन
थे? सरना या
ईसाई?
· कि
जल,जंगल,जमीन
और भाषा-संस्कृति
बचाने के लिए
चल रही विस्थापन
विरोधी लड़ाइयों में ये
क्यों नहीं शामिल
होते?
इसलिए
संगी-साथियों, आप
सभी से अनुरोध
है कि सरना-ईसाई के
नाम पर दंगा
भड़काने वाले और
हमारी आदिवासी एकता
तोड़ने वाले ऐसे
तथाकथित धर्मगुरूओं के बहकावे
में न आएं।
आदिवासी समाज का
प्रमुख दुश्मन साम्राज्यवाद और
पूंजीवाद है। वे
बहुराष्ट्रीय कंपनियां हैं जो
वर्षों से हमारी
जल,जंगल और
जमीन को लूट
रहे हैं। हमें
मार रहे हैं।
हमें विस्थापित कर
रहे हैं। आश्चर्य
है तथाकथित सरना
धार्मिक संगठन इनके खिलाफ
कोई आवाज नहीं
उठाते और न
ही लड़ाई लड़ते
हैं। लेकिन
जब आदिवासी जनता
चाहे तो सरना
हो या ईसाई
जब एकजुट होकर
अपने संसाधनों को
बचाने की लड़ाई
लड़ रहे हैं।
आदिवासी पहचान,भाषा-संस्कृति
और अस्मिता-अस्तित्व
के लिए जान
दे रहे हैं
तो ये सरना-ईसाई का
झगड़ा लगाकर इस
लड़ाई को कमजोर
कर देना चाह
रहे हैं।
असुर
नेशन झारखंड ही
नहीं देश के
समस्त आदिवासी समुदायों
के आदि धर्म
या सरना धर्म
का कट्टर समर्थक
हैं। लेकिन असुर
नेशन आदिवासीयत के
इस सहअस्तित्व और
सहजीविता के दर्शन
में विश्वास करता
है और मानता
है कि जो
लोग ईसाई या
हिन्दू हो गए
हैं, वे सब
हमारे ही रिश्तेदार-कुटुंब परिवार है।
वे हमारे दुश्मन
नहीं है। इसलिए
आदिवासी धर्म की
रक्षा का मामला
हो या फिर
बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की लूट
हम सभी आदिवासी
एकजुट होकर इसके
लिए प्रयास करेंगे
और किसी भी
सूरत में आरएसएस,विश्व हिन्दू परिषद
व भाजपा जैसे
देश की एकता
को खंडित करने
वाले साम्प्रदायिक संगठनों
के घृणित मंसूबों
को सफल नहीं
होने देंगे।25 दिसंबर
को होने वाले
प्रदर्शन का विरोध
करें और शहीद
आदिवासी पुरखों के झारखंड
की एकजुटता बनाए
रखें।
आलोक कुमार