राज्यों
के पिछड़ेपन के
लिए मानदंड निर्धारित
करने हेतु गठित
रघुराम राजन कमेटी
की रिपोर्ट सार्वजनिक
होने के बाद, झारखंड
को पिछड़ा राज्य
घोषित करवाने का
श्रेय लेने के
लिए राजनीतिक दलों
के बीच होड़
चल रही है।
आजसू पार्टी ने
तो ‘पहली लड़ाई
अलग राज्य, अगली
लड़ाई विशेष राज्य’
का नारा भी
दिया था और
इसी को आधार
बनाकर पार्टी इसका
श्रेय लेना चाहती
है। यह अलग
बात है कि
झारखंड आंदोलन के समय
यह पार्टी अस्तित्व
में ही नहीं
थी। वहीं भाजपा
कह रही है
कि असली लड़ाई
तो उन्होंने ही
लड़ा है। जेवीएम
ने रघुराम राजन
कमेटी के अस्तित्व
पर ही सवाल
खड़ा किया है
कि यह विशेष
राज्य के लिए
चल रही मुहिम
पर ब्रेक लगाने
की साजिश है।
वहीं सत्तारूढ़ दल झामुमो अलग राज्य
के साथ-साथ
विशेष राज्य का
श्रेय भी पूर्णरूप
से ले लेना
चाहती है। राजनेताओं
के बीच खुशी
इस कद्र दिखाई
पड़ रही है
कि मानो उन्होंने
कुछ खास हासिल
कर लिया हो।
कुछ लोग तो
यह भी सवाल
कर रहे हैं
कि भला पिछड़ा
घोषित होने पर
किसी को खुशी
कैसे हो सकती
है? क्या इसके
पीछे मलाई खाने
की खुशी है?
निश्चित रूप से
झारखंड को विशेष
राज्य का दर्जा
मिलना चाहिए लेकिन
सवाल कई और
भी हैं जिसका
जवाब खोजा जाना
चाहिए।
चूंकि
विशेष राज्य का
दर्जा आर्थिक पैकेज
का मामला है
इसलिए बात इसी
से प्रारंभ होनी
चाहिए कि क्या
सचमुच में झारखंड
को आर्थिक पैकेज
की जरूरत है?
राज्य की आर्थिक
स्थिति, प्रतिव्यक्ति आय और
विकास के सूचकांक
तो यही कहते
हैं लेकिन फंड
का उपयोग कुछ
और भी कहानी
कहती है। प्रतिवर्ष
मार्च लूट होने
के बावजूद राज्य
सरकार बड़े पैमाने
पर केन्द्रीय राशि
सरेंडर करती है।
वर्ष 2002-03 से लेकर
वर्ष 2011-12 तक राज्य
सरकार कुल 10,961.6 करोड़
रूपये सरेंडर कर
चुकी है, जबकि
इस पैसे से
राज्य के मूलभूत
संरचना का विकास
हो सकता था।
दूसरा महŸवपूर्ण
सवाल यह है
कि क्या सरकार
आर्थिक पैकेज के सही
इस्तेमाल की गारंटी
दे सकती है?
यह सवाल इसलिए
है कि राज्य
में सरकारी पैसे
की लूट मची
हुई है। राज्य
के विभिन्न जिलों
से 4400 करोड़ रूपये
का हिस्साब सरकार
को नहीं मिल
पायी है। यह
पैसा कहां गया
इसका जवाब है
क्या? ऐसी स्थिति
में सवाल यह
भी है कि
क्या सरकार के
पास विशेष आर्थिक
के उपयोग का
खाका तैयार है?
विशेष राज्य के
सवाल पर प्रमुख
दलीलों में से
एक यह भी
महत्तवपूर्ण
है कि यह
राज्य आदिवासी बहुल
है और वे
विकास के पायदान
पर पीछे हैं।
लेकिन सवाल यह
है कि जो
लोग आदिवासियों के
नाम पर विशेष
राज्य का दर्जा
हासिल करना चाहते
हैं क्या सचमुच
में वे आदिवासियों
के हितैशी हैं
या उनके नाम
पर मलाई खाना
चाहते हैं? आंकड़ा
बताता है कि
यह मलाई मारने
की तैयारी है।
यह दावे के
साथ मैं इसलिए
कह रहा हूं क्योंकि जो
लोग राज्य में
गैर-आदिवासी मुख्यमंत्री,
अनुसूचित क्षेत्र को खत्म
करने, पैसा कानून
के खिलाफ, सी.एन.टी.एक्ट और
एस.पी.टी.
एक्ट को खत्म
करने का अभियान
चलाते हैं वे
आदिवासियों के हितैषी
कैसे हो सकते हैं?
वहीं ट्राईबल सब-प्लान का बात
कर लीजिए तस्वीर
और ज्यादा साफ
हो जायेगी। संविधान
के अनुच्छेद 275 के
तहत केन्द्रीय सहायता
प्राप्त करना आदिवासियों
का संवैधानिक अधिकार
है। झारखंड में
ट्राईबल
सब-प्लान के
तहत आदिवासियों के
विकास एवं कल्याण
के लिए वर्ष
2006-07 से लेकर वर्ष
2011-12 तक कुल 27,141.83 करोड़ रूपये
आवंटित किया गया,
जिसमें से 21,494.02 रूपये खर्च किया
गया एवं 5647.81 रूपये
केन्द्र सरकार को वापस
कर दिया गया।
इस पैसे का
उपयोग आदिवासी एवं
आदिवासी बहुल इलाके
का विकास हेतु
खर्च करना था
लेकिन ट्राईबल सब-प्लान का अधिकांश
पैसा दूसरे मदों
में खर्च किया
जा रहा है
जो आदिवासी हक
का सीधा लूट
है। जब आदिवासियों
के पैसे की
लूट हो रही
है तो क्या
विशेष राज्य का
दर्जा मिलने से
उन्हें कुछ हासिल
होगा?
झारखंड
एक विशेष राज्य
है, जिसे आर्थिक
पैकेज इसलिए चाहिए
क्योंकि राज्य में उपलब्ध
प्रकृतिक संसाधन का फायदा
इसे नहीं मिल
रहा है अपितु
केन्द्र सरकार सबकुछ ले
जा रहा है।
लेकिन सवाल यह
भी है कि
क्या सचमुच इस
पैकेज से जरूरतमंदों
का कल्याण और
विकास होगा या
फिर से राज्य
के नाम पर
मलाई कोई और
खायेगा? इसके लिए
प्रभावशाली नेतृत्व, कर्त्तव्यनिष्ठ नौकरशाह और राचनात्मक
राजनीति की जरूरत
ज्यादा है, जिसे
समावेशी विकास होगा। सवाल
यह भी है
कि क्यों गरीब
राज्य के राजनेता,
नौकरशाह, ठेकेदार, बिचौलिये और
सरकारी कर्मचारियों की बिल्डिंग,
गाड़ी और बैंक
बैलेंश में भारी
इजाफा होता जा
रहा है जबकि
मैंगो पीपुल संसाधनहीनता
का शिकार हो
रहा है? क्या
आर्थिक पैंकेज से मैंगो
पीपुल की दशा
सुधारने की गारंटी
दी जा सकती
है? क्या यह
तेजी से बढ़
रही आर्थिक असमानता
को लगाम लगायेगी?
क्या इसे आदिवासियों
के हक और
अधिकार सुरक्षित होंगे? अगर
नहीं तो फिर
विशेष राज्य का
दर्जा लेने के
नाम पर यह
तमाशा क्यों होना
चाहिए?
- ग्लैडसन
डुंगडुंग मानवाधिकार कार्यकर्ता हैं।