
पटना।
आज ऑक्सफैम इंडिया
के सहयोग से
और प्रगति ग्रामीण
विकास समिति के
तत्तावधान में ' भूमिहीन
महिला किसानों के
लिए आवासीय भूमि
तथा कृषि भूमि
के वर्तमान नीतियों
पर ' एक दिवसीय
राज्य स्तरीय परिसंवाद
किया गया।
इस अवसर पर ए . एन . सिन्हा समाज अध्ययन संस्थान के निदेशक डी . एम . दिवाकर ने कहा कि सर्वाधिक जरूरी संसाधन में जमीन ही है। इसके आलोक में बिहार सरकार ने भूमि सुधार कानून बनाकर अव्वल स्थान हासिल कर पायी थी। मगर भूमि सुधार कानून को बेहतर ढंग से लागू नहीं किया गया। भूमि सुधार कानून कोर्ट में , सड़क पर और तो और सरकारी की इच्छाशक्ति के अभाव पर लटक गया है। एक बार वर्तमान मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने भूमि सुधार कानून को सख्ती से लागू करने पर बल दिये हैं। इसके साथ आवासीय भूमिहीनों के पक्ष में महत्वपूर्ण निर्णय लिए है कि किसी भी हाल में आवासहीनों को 3 डिसमिल जमीन देंगे। अगर पंचायत में जमीन अनुपलब्ध हो तो बाजार भाव में जमीन खरीदकर देंगे। इसकी कीमत 5 हजार अथवा 5 लाख रू . क्यों ने हो। अगर ऐसा भी नहीं हो पा रहा है तो जमीन अधिग्रहण करके भी आवासहीनों को जमीन देंगे। जो स्वागत योग्य है। हमलोग सरकार को हरसंभव सहयोग करेंगे। आगे कहा कि भूमि सुधार आयोग के अध्यक्ष के द्वारा अनुशंसा दी गयी। उसे लागू नहीं की गयी। यह कोई क्रांतिकारी अनुशंसा नहीं था। केवल किसान को जमीन बेचने के पहले बटाईदार की सहमति को अनिवार्य कर दिया गया। जो लोग नहीं समझे और इसको लेकर अफवाहों का दौर चला दिया गया।
इस अवसर पर ए . एन . सिन्हा समाज अध्ययन संस्थान के निदेशक डी . एम . दिवाकर ने कहा कि सर्वाधिक जरूरी संसाधन में जमीन ही है। इसके आलोक में बिहार सरकार ने भूमि सुधार कानून बनाकर अव्वल स्थान हासिल कर पायी थी। मगर भूमि सुधार कानून को बेहतर ढंग से लागू नहीं किया गया। भूमि सुधार कानून कोर्ट में , सड़क पर और तो और सरकारी की इच्छाशक्ति के अभाव पर लटक गया है। एक बार वर्तमान मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने भूमि सुधार कानून को सख्ती से लागू करने पर बल दिये हैं। इसके साथ आवासीय भूमिहीनों के पक्ष में महत्वपूर्ण निर्णय लिए है कि किसी भी हाल में आवासहीनों को 3 डिसमिल जमीन देंगे। अगर पंचायत में जमीन अनुपलब्ध हो तो बाजार भाव में जमीन खरीदकर देंगे। इसकी कीमत 5 हजार अथवा 5 लाख रू . क्यों ने हो। अगर ऐसा भी नहीं हो पा रहा है तो जमीन अधिग्रहण करके भी आवासहीनों को जमीन देंगे। जो स्वागत योग्य है। हमलोग सरकार को हरसंभव सहयोग करेंगे। आगे कहा कि भूमि सुधार आयोग के अध्यक्ष के द्वारा अनुशंसा दी गयी। उसे लागू नहीं की गयी। यह कोई क्रांतिकारी अनुशंसा नहीं था। केवल किसान को जमीन बेचने के पहले बटाईदार की सहमति को अनिवार्य कर दिया गया। जो लोग नहीं समझे और इसको लेकर अफवाहों का दौर चला दिया गया।

बिहार
सरकार के कृषि
विशेषज्ञ अनिल कुमार
झा ने कहा
कि कृषि रोड
मैंप में साफ
तोर पर कहा
गया है कि
कौन किसान हैं।
मगर किसान को
जमीन वालों को
ही समझ लिया
जाता है। वास्तव
में भूमिहीन एवं
घुमंतू भी किसान
हो सकते हैं।
ऐसे लोग मछली
पालन , मधुमक्खी पालन ,
दुध पालन , फल
उत्पादक आदि हो
सकते हैं। जैविक
खेती करने पर
बल दिया। आगे
कहा कि हमलोग
46 तरह के मुआवजा
आदि देते हैं।
जिसमें सिर्फ दो तरह
के ही मुआवजा
प्राप्त करने के
लिए जमीन की
कागजात जरूरी है। वह
है 15 से 25 लाख
रू . की मश्ीन
खरीदने के समय
और गोदाम निर्माण
करने के लिए।
मगर लॉन और
मुआवजा देने के
लिए अनावश्यक ढंग
से रसीद और
पर्चा की मांग
करते हैं। अगर
आपको डीजल पर
सब्जिडी लेना है।
तो नाम और
पता लिखकर देने
की जरूरत है।
बगल वाले किसान
का नाम और
पटवन की तारीख
लिखनी है। अगर
व्यवधान पड़े तो
तुरंत ही बीडीओ
से मिलना चाहिए।
पद्मश्री
सुधा वर्गीज ने
कहा कि यह
दुर्भाग्य है कि
आज भी महिलाएं
भूमिहीन हैं। इनके
पास भूमि भी
नहीं है। जिसके
कारण परेशानी से
दो - दो हाथ
होने को बाध्य
हैं।

इस असवर
पर संजय कुमार
प्रसाद , मंजू डंुगडुंग ,
उमेश कुमार , सिंधु
सिन्हा , रंजीत राय , गणेश
दास , प्यारे लाल
आदि ने विचार
व्यक्त किए। मधेपुरा
से ध्रुव श्रीवास्तव ,
मुजफ्फरपुर से लखेन्द्र
सिंह , पूर्वी चम्पारण
से ष्श्यामनंदन सिंह ,
जमुई हजारी प्रसाद
वर्मा आदि लोग
शामिल थे।
Alok
Kumar
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