Saturday 10 January 2015

बिहार मानवाधिकार आयोग के समक्ष एक परिवादपत्र दाखिल से.........


पटना। बिहार मानवाधिकार आयोग के समक्ष एक परिवादपत्र दाखिल किया गया। इस परिवादपत्र ने सरकार को कांपने को मजबूर कर दिया। इसके आलोक में सरकार ने फौरन पत्र जारी कर दिया। यह पत्र सभी विभाग,सभी विभागाध्यक्ष,सभी प्रमंडलीय आयुक्त और सभी जिला पदाधिकारी को प्रेषित किया गया। अब यह सवाल उठता है दिनांक 14 दिसंबर,2010को जारी पत्र को सरकारी अफसरान अमल कर रहे है? अब देखना है कि सरकार ने नौकरशाह पत्र के जारी करने के पांचवे साल में पांच कदम उठा पाएं हैं? ऐसा तो प्रतीक नहीं हो रहा है। 
संपूर्ण मामला यह है कि बिहार मानवाधिकार आयोग के समक्ष एक परिवाद पत्र दाखिल किया गया कि राज्य सरकार के विभिन्न कार्यालयों में बड़े पैमाने पर संविदा के आधार पर कर्मचारी नियुक्त हैं। इन कर्मचारियों से क्षमता से अधिक कार्य कराये जाते हैं। निर्धारित कार्यावधि के अलावे भी/छुट्टी के दिनों में भी इन्हें कार्य करने को बाध्य किया जाता है। अन्यथा अनुशासनहीनता / भुगतान पर रोक लगा देने/कार्यमुक्त कर देने की बात कहीं/की जाती है। बड़े पैमाने पर कर्मचारी संविदा आधारित नियुक्ति होने के कारण विवश होकर शोषण को बाध्य होते हैं तथा अपनी बातों को किसी मंच पर इस आशंका से नहीं उठा पाते हैं कि कही इसके लिए कार्यमुक्त न कर दिया जाय। यह भी आशंका बनी रहती है कि राज्य सरकार के किसी मंच पर अपनी बातों को रखने से क्या न्याय मिल सकेगा?
इस परिवादपत्र के आलोक में अनुरोध है कि अपने विभाग/ अधीनस्थ कार्यालयों में संविदा के आधार पर नियोजित कर्मियों के मामलों में परिवादपत्र में उठाये गये विन्दु की सत्यता की जांच करा ली जाय और यदि परिवादमें सत्यता पायी जाती है तो उसका निराकण करते हुए उन्हें अनुमान्य छुट्टी/ साप्ताहिक अवकाश उपयोग करने देना आदि सुनिश्चित किया जाय। साथ ही, ऐसा उपाय भी किया जाय कि इस तरह की किसी शिकायत के मिलने पर उसका शीघ्र निराकरण हो और जिम्मेदार पदाधिकारी के विरूद्ध कार्रवाई भी हो। इस दिशा में कृत कार्रवाई से विभाग को भी अवगत कराने की कृपा की जाय। बिहार सरकार के सामान्य प्रशासन विभाग के सरकार के संयुक्त सचिव सरयुग प्रसाद के पत्रांक-3 एम0-112/2010 सा0 4618 को अमल करने सभी विभाग,सभी विभागाध्यक्ष,सभी प्रमंडलीय आयुक्त और सभी जिला पदाधिकारी को दिनांक 14 दिसंबर,2010 को अग्रसारित किया गया था। 
वर्ष 2014 में संविदा पर बहाल कर्मियों ने जमकर सरकार के समक्ष फरियाद किए। बिहार राज्य आई.सी.डी.एस. महिला पर्यवेक्षिका एवं कर्मचारी यूनियन, मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता (आशा), बिहार राज्य आंगनबाड़ी कर्मचारी यूनियन, बिहार राज्य कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय संद्य, बिहार राज्य संविदा अमीन संद्य, बिहार मौसमी डीडीटी छिड़काव कर्मचारी यूनियन के अलावे अन्य ने भी सड़क पर उतरे। अभी तक मिशनरी और गैर सरकारी संस्थाओं के संविदा पर बहाल होने वाले मुखर नहीं हो पा रहे हैं। यहां तो और अधिक शोषण चरम पर है। घरेलू जांच करने का धौंस जमाते हैं। एक माह के वेतन देने के वादे के साथ मनमानी ढंग से आवेदन लिखकर नौकरी से बाहर कर दिया जाता है।यहां पर खाली हाथ और खाली हाथ चला जाना पड़ता है। ऐसा होने से न वर्तमान और न ही भविष्य खुशहाल होता है। अभी संविदा पर बहाल श्रेणी‘ए’ की नर्सेंज ने मानदेय में इजाफा करने की मांग को लेकर मुंह खोली तो नौकरी से ही हाथ धो देना पड़ा। 

आलोक कुमार

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