Monday 12 January 2015

दुखद बात यह है कि विद्यावाहिनी सरस्वती जी प्रतिमा बना रहे


कोसो दूर हैं शिक्षा से
विद्या माता से आग्रह है कि बच्चों को शिक्षित कर दें
पटना। इस समय प्रतिमाओं को निखारने में लगे हैं मूर्त्तिकार। अबतक के अपने संपूर्ण तर्जुबा को समेट करके मूर्त्तिकार प्रतिमा को जानदार बना रहे हैं। आप खुद ही प्रतिमाओं को देखकर समझ लेंगे। उनकी कार्यकुशलता,लगनशीलता,निष्ठा और तत्परता।दुखद बात यह है कि विद्यावाहिनी सरस्वती जी प्रतिमा बना रहे हैं। मगर कोसो दूर शिक्षा से हैं। इस लिए खुद और उनके परिवार के लोग शिक्षा की रोटी नहीं खा पा रहे हैं। यह प्लास्टर ऑफ पेरिस से विद्यादाता सरस्वती माता की प्रतिमा बनाने वालो का हाल है। 
राजस्थान के जोधपुर से आएं हैं प्लास्टर ऑफ पेरिस से विभिन्न तरह के वस्तु निर्माण करने वाले। 24 जनवरी को मां सरस्वती जी की पूजा है। इसके आलोक में रातोंदिन प्रतिमा बनाने में लगे हैं। परिवार के सभी सदस्य लगे रहते हैं। महिलाएं और बच्चियां भी पीछे नहीं रहती हैं। विद्यादाता की चेहरे पर चार चांद लगाने की जिम्मेवारी नाजुक कलाई वाली महिलाओं के हवाले है। अपने चातुर्य बुद्धि का प्रयोग पुरूष करते हैं, इनके ही हाथों में प्रतिमाओं को अंतिम स्वरूप प्रदान करना रहता है। 
मूर्त्तिकार मनोज कुमार कहते हैः हमलोग काफी मेहनत से कार्य करते हैं। अब हमलोग मिट्टी से प्रतिमा बनाने वालों को चुनौती देने लगे हैं। प्लास्टर ऑफ पेरिस की प्रतिमा की कीमत आठ सौ से लेकर पांच हजार रूपए तक की है। इसमें प्रतिमाओं को वस्त्रधारण करवाने की जरूरत नहीं है। पूर्ण ड्रेसअप करके देते हैं। बस आप ऑडर दें।अमुख तिथि पर आकर प्रतिमा को ले जाएं और उसे पद स्थापित कर दें। पूजा करके प्रसाद वितरण करने लगें। शोरजोर से सरस्वती जी की प्रतिमा बनाने वाली राधिका कुमारी का कहना है कि परिस्थितिवश हमलोग पढ़ नहीं पाते हैं। कल राजस्थान में हैं और आज बिहार में हैं। तो किस तरह से हमलोग पढ़ जाएंगे। हमलोगों के परिजन गरीबी रेखा के नीचे जीवन व्यापन करते हैं। इतनी धनराशि नहीं हैं कि परिजन छात्रावास में रखकर अध्ययन करा सके। न राजस्थान और न ही बिहार की सरकार ही ध्यान देकर ठोस कदम उठाती है। 
मिट्टी से प्रतिमा बनाने वाले मेद्यन चौधरी कहते हैंःअभी आठवीं कक्षा में पढ़ते हैं। जब 3री कक्षा में पड़ते थे। तब से मिट्टी से प्रतिमा बनाना शुरू कर दिया। इस समय 10 रू. में 1 बोरी मिट्टी खरीदी जाती है। एक बोरी मिट्टी से प्रतिमा बन जाती है। बांस,सूती साड़ी,कांटी,रंग आदि लेकर प्रतिमा बनाने में 600 रू. खर्च हो जाता है। मेघन चौधरी और उसके दोस्त राहुल रजक 24 नवम्बर 2014 से प्रतिमा बनाना शुरू किए थे। कुल 28 प्रतिमाओं में 26 बेचा गया है। 2 अभी बेचना है। अंग्रिम राशि के रूप में 500 रू. लिया जाता है। अब तो स्कूल के अलावे टोलो में भी प्रतिमाओं को स्थापित की जाती है। जो न्यूनतम एक हजार से अधिकतम आठ हजार रू. में बेचा जाता है।इस राशि पर प्रतिमा खरीदकर ले जाते हैं। इसके आप खुद ही सजावट पर खर्च करते हैं। न्यूनतम एक हजार रू. से अधिक ही व्यय किया जाता है। खुद बच्चे ही राशि संग्रह करके सरस्वती देवी की प्रतिमा स्थापित करते हैं। विद्या माता से आग्रह है कि बच्चों को शिक्षित कर दें। ऐसा कर दें कि विश्व स्तर पर नाम और पहचान मिल सके। 
आलोक कुमार

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