Monday 16 February 2015

बिहार विकलांग अधिकार मंच के राज्य सचिव राकेश कुमार ने कहा

निःशक्त व्यक्ति समान अवसर अधिकारों का सरंक्षण पूर्ण भागीदारी अधिनियम -1995 के आलोक में

सरकार शिक्षित और अशिक्षित विकलांगों को तीन हजार रू. बेरोजगारी भत्ता दें

मिलने वाले 400 सौ रूपए ऊंट के मुंह में जीरा समान

प्राकृतिक एवं अप्राकृतिक ढंग से होने वाले विकलांग कष्ट में हैं। विकलांगों को विकलांगता प्रमाण-पत्र बनाने में दिक्कत होती है। आज भी अनेकों विकलांग हैं जिनको सामाजिक सुरक्षा पेंशन नहीं मिल पाती है।पेंशन से महरूम होने वाले दर-दर की ठोकर खाने को बाध्य हो रहे हैं। हालांकि विकलांगों के हितार्थ सरकार समय समय पर ठोस कदम उठाती है। जो विकलांगों तक पहुंच ही नहीं पाता है।

बिहार विकलांग अधिकार मंच के राज्य सचिव राकेश कुमार ने कहा कि सर्वें के अनुसार पोलियो मुक्त बिहार प्रदेश में 48 लाख उपेक्षित विकलांग हैं।इसमें 12 लाख शिक्षित और 38 लाख अशिक्षित बेरोजगार हैं। सरकारी उदासीनता के कारण मजबूरी में सामाजिक सुरक्षा पेंशन पर आश्रित होना पड़ता है। फिलवक्त कल्याणकारी सरकार के द्वारा मात्रः 400 सौ रूपए सामाजिक सुरक्षा पेंशन दी जाती है। जो ऊंट के मुंह में जीरा के समान है। इस अल्पराशि से 10 दिनों का भोजन भी नहीं हो पाता है।इसके आलोक में अन्य प्रदेशों की सरकार के द्वारा प्रत्येक माह 1200 से 3600 सौ तक राशि पेंशन में देती है।
वहीं आज भी गांवघर में अनेकों पोलियो और दुर्घटना ग्रसित विकलांग हैं। जिन्हें पेंशन से महरूम कर दिया गया है। इस ओर जन प्रतिनिधि और नौकरशाह धृतराष्ट्र बन जाते हैं।इनके समर्थन और हित में मैदान में नहीं उतरते है। इसके कारण विकलांग घर और घर के बाहर तिरस्कृत होते हैं। सिर्फ मजबूरी का दंश झेलने को बाध्य होते रहते हैं। वक्त की मांग है कि परिवार के सदस्यों के बीच में विकसित मानसिकता में परिवर्तन लाया जा सके। विकलांगों को परिवार के बोझ नहीं समझे। बस रोजगार के अवसर प्रदान करें। अन्य राज्यों में सरकारी नौकरी में 3 प्रतिशत से 6 प्रतिशत आरक्षण सीमा निर्धारित की गयी है। सूबे में 3 प्रतिशत आरक्षण को ईमानदारी से पूर्ण से पूर्ण नहीं की जाती है।

बिहार विकलांग अधिकार मंच के राज्य सचिव राकेश कुमार ने आगे कहा कि देश के स्तर पर विकलांगों के लिए बनाए गए  निःशक्त व्यक्ति समान अवसर अधिकारों का सरंक्षण पूर्ण भागीदारी अधिनियम -1995 के अध्याय 13 और धारा 68 में वर्णित है। वहां उल्लेख है कि ऐसे विकलांग व्यक्ति हैं।जो रोजगार कार्यालय में पंजीकृत हैं। दो साल होने के बाद सरकार के द्वारा किसी तरह के लाभप्रद आजीविका में नहीं लगाया जा सका है। एैसी परिस्थिति में सरकार विकलांगों को बेरोजगारी भत्ता देने के लिए एक स्कीम की अधिसूचना कर सकती है। यह सब सरकार की आर्थिक क्षमता पर निर्भर है। अधिनियम के आलोक में मुख्यमंत्री से आग्रह है कि शिक्षित विकलांग बेरोजगारों को तीन हजार रू. बेरोजगारी भत्ता दें। इसी तरह अशिक्षित बेरोजगारों को भी 3 हजार रू. बतौर पेंशन दी जाए। हमलोग दया की भीख नहीं मांग रहे हैं। बल्कि निःशक्त व्यक्ति समान अवसर अधिकारों का सरंक्षण पूर्ण भागीदारी अधिनियम -1995 के अनुसार ही सरकार से आग्रह किया जा रहा है।


आलोक कुमार

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