Friday 6 February 2015

रो रहा है सृष्टिकर्ता हम सबका


                                                                                                                                              #   एस.के.लॉरेंस

मैं तो एक निर्जीव मात्र (चर्च),उस सृष्टिकर्ता का आस्था का प्रतीक स्थल हूँ ,जो तुम सबको शांति, प्रेम ,सदाचार और भाईचारा का सन्देश देने का प्रार्थना स्थल बनकर मौजूद हूँ,खड़ा हूँ। जो हर मानव का, तुम्हारा और सभी मानव जाति का सृष्टिकर्ता है।चाहे तुम जिस धर्म के पालनहार हो। हो तो तुम सब उसी की ही रचना। यह और बात है कि तुम सब मानव समयानुसार,मतानुसार अलग अलग मजहब के माध्यम से अपने अपने रीति एवं धार्मिक आस्था के तौर पर उसकी आराधना करते हो,पूजते हो तथा विश्वास रखते हो।परन्तु आखिर पूजते या प्रार्थना तो तुम सब अपने अपने धार्मिक  माध्यम से उसी परमात्मा , सृष्टिकर्ता से ही तो करते हो?माध्यम चाहे कोई हो। चाहे गिरजा हो,मंदिर हो,मस्जिद हो ,गुरुद्वारा हो या कोई अन्य धार्मिक स्थल हो। तुम सब तो अपनी मन की शांति के लिए,अपनी मनोकामना पूरी करने के लिए,अपनी भक्तिभाव दर्शाने के लिए अपनी आस्था (धर्म)के प्रतीक धार्मिक स्थल पर जाकर अपनी श्रद्धा अर्पित करते हो तथा एक जैसी ही भावना प्रदर्शित करते हो। मैं भी तो उन्ही धर्म स्थलों में से एक हूँ।मेरे धार्मिक स्थल पर भी संसार के लोगों का उद्धार करने, सदाचार करने,उन्हें सही मार्ग दर्शन देने के लिए सृष्टिकर्ता द्वारा इस संसार में भेजे गए प्रभु यीशु के मानवता, भाईचारा ,प्रेम और  सेवा करने के संदेशों का पालन करने की प्रेरणा दी जाती है।प्रभु यीशु के सच्चे अनुयायी कभी भी किसी का नुकसान नहीं कर सकते हैं और न नफरत की राजनीति कर सकते हैं। मेरे शरण में भी तो तुम्हारे जैसे ही भक्त या दुखी व्यक्ति आराधना करने या अपनी परेशानियों से राहत पाने के लिये आते हैं। मुझसे तो किसी का कोई नुकसान हो ही नहीं सकता है। परन्तु जो भी मेरी शरण में आते हैं,वो यहाँ शांति पाते हैं।उनकी मुरादें भी पूरी हो जाती हैं। तो फिर तुम मुझ जैसे निर्जीव  पवित्र स्थल को नुकसान क्यों पहुंचाते हो ?क्यों  मुझे जलाकर अपने भगवान को नाराज करते हो,उसको चोट पहुंचाते हो। अपने मन की कमजोरी ,घृणा तथा विकार को निकालकर  तुम किसी दिन मेरी शरण में आकर और शुद्ध मन से चिंतन मनन कर के देखो। तुम्हें भी यहाँ शांति  प्राप्त होगी। क्योंकि यह पवित्र स्थल है और यह उस सृष्टिकर्ता का प्रार्थना स्थल है,जो मानव का परमात्मा है।वो अलग बात है कि तुम मानव अपने अपने तरीके सेे अपने अपने अलग धार्मिक आस्था के कारण अपने द्वारा बनाए गए अपने धार्मिक स्थल को मान्यता देते हुए अपने भगवान के माध्यम से सृष्टिकर्ता  की पूजा या आराधना करते हो।क्या तुम यह जानते हो कि जब किसी धर्म को मानने वाला अपनी आस्था के अनुसार अपने मान्य भगवान से फरियाद कर थक जाता है, और जब उसकी मनोकामना पूरी नहीं होती है। तब वो निराश हो कर दूसरे धर्म के धार्मिक स्थल पर जाकर इस उम्मीद के साथ वहां फरियाद करता है,मिन्नत करता है कि शायद वहां उसकी मुराद पूरी हो जाए। बहुतों की मुरादें पूरी भी हो जाती हैं। तब उस व्यक्ति का उस दूसरे धर्म के प्रति सम्मान और आस्था बढ़ जाता है और उनमें से कई  स्वैच्छा से उस धर्म के अनुयायी भी बन जाते हैं।तो क्या उस व्यक्ति का ऐसा करना गलत है? क्या दूसरे के धर्म या धार्मिक स्थल का सम्मान करना गलत है?कौन ऐसा धर्म या धार्मिक स्थल है,जो यह कहता है कि जाओ जाकर दूसरे के धार्मिक स्थल को बर्बाद कर दो,उसके अनुयायियों को नाश कर दो,ऐसा माहौल पैदा कर दो कि उनका अस्तित्व ,धर्म समाप्त हो जाए,क्योंकि वह तुम्हें गलत बात सीखाता है? कोई भी धर्म इस तरह का गलत सन्देश या आदेश नहीं देता है। सभी धर्म तथा सभी धर्म के भगवान तो मानवता का धर्म ही निभाने की बात करते हैं। जिसे जो धर्म शांति प्रदान कर


ता है,अच्छा लगता है,उसकी आस्था को मजबूती प्रदान करता है तथा एक अच्छा जीवन जीने की राह दिखाते हुए उसे सत्कर्म करने,मानवता का धर्म निभाने की प्रेरणा देता है। उससे किसी भी धर्म का भगवान किसी भी मानव या समुदाय  को छिनने की सीख या आदेश नहीं देता है।हमेशा यह याद रखो कि तुम सब मानव उस सृष्टिकर्ता की रचना हो, नाशवान हो ।और तुम स्वयं उसकी एक रचना होने के नाते तुम्हे उस सृष्टिकर्ता (परमात्मा) की तुम्हारे जैसे दूसरी रचना (मानव) को नाश करने का कोई अधिकार नहीं है।और न किसी दूसरे को,तुम्हे नाश करने का अधिकार है। जिस तरह उसने तुम्हें इस धरती पर अपने तरीके से उस परमात्मा में विश्वास के साथ स्वतंत्र रूप से जीने का अधिकार दिया है। वैसे ही दूसरों को भी अपने तरीके से स्वतंत्र रूप से जीने का अधिकार दिया है। किसी भी  धर्म की उपज किसी दूसरे देश की हो सकती  है। परन्तु सभी तो हमारे सृष्टिकर्ता के इस पृथ्वी की ही तो उपज हैं।जिस तरह तुम्हारे अपने कई पुत्र अलग अलग देशों में जाकर अपनी इच्छा से ,अपने विश्वास एवं समझ के साथ अपना जीवन  यापन अपने तरीके से करते हैं और  वे वहां के आबो हवा में रम जाते है। तो इसका मतलब यह तो नहीं होता कि वे तुम्हारे संतान नहीं हैं। उसी  तरह इस पृथ्वी पर जहाँ भी जिस देश में या विदेश में जो भी लोग रहते हैं। वे सभी उसी एकमात्र सृष्टिकर्ता के ही संतान हैं। तो फिर उनसे या उनके धर्म से बैर क्यों? यह निर्धारित करने वाले तथा जबरन दबाव डालकर ,लालच देकर अपने मतानुसार मनवाने वाले तुम सब मानव कौन होते हो ?अगर तुम सृष्टिकर्ता के किसी रचना(मानव या उसके धार्मिक स्थल को) को नुकसान पहुंचाते हो तो तुम कभी भी अपने धर्म के सच्चे अनुयायी हो ही नहीं सकते हो। क्योंकि कोई भी धर्म, भगवान या तुम्हारा सृष्टिकर्ता  इसकी इजाजत नहीं देता है। न ही किसी भी तरह के आडम्बर को मान्यता देता है और न स्वीकार करता है।वह तुम्हारे इस गलत कार्य से बहुत ही दुखी है।वह तो सबको एक दूसरे से प्रेम करने,सहयोग करने,इज्जत करने तथा एक दूसरे को उसकी आस्था के साथ जीने की सीख देती है।

 तो आओ ,खुद अपनी आस्था के साथ जीओ और दूसरों को भी उनकी आस्था के साथ स्वतंत्र रूप से जीने दो। जिसे जिस धर्म से लगाव या सच्ची आस्था हो उसे उसके मन मुताबिक जीने दो। क्योंकि जो भी लालच,आडम्बर या दबाव में आकर अपने स्वार्थ के लिए जिस  किसी धर्म को अपनाता है या अपनाने का दबाव बनाता है।वो कभी भी उस धर्म का सच्चा उपासक नहीं हो सकता है और न किसी और धर्म का ही उपासक बन सकता है। और सच मानो ऐसे लोगों को सृष्टिकर्ता कभी माफ़ नहीं करेगा ।

एस.के.लॉरेंस,
अध्यक्ष,
अल्पसंख्यक  ईसाई  कल्याण संघ,
पटना।
उवइ.दव. 9430284400
फातिमा माता सुसमाचार केंद्र के पीछे,
शिवाजी नगर,मखदुमपुर,

पोस्ट-दीघा-800011,पटना,बिहार

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