Monday 30 March 2015

विवाह के बाद एक अंग बन गए,एक पलंग पर सोने वाले ही सुमित्रा देवी को कर दिए अपंग

Sumintra Dev  
आने वालों को आने नहीं देते और जो आ जाते हैं उसे जीने नहीं देते
उसका साक्षात् दर्शन सुमित्रा देवी के रूप में हुआ

आजकल जोरशोर से संभाषण के दौरान वक्तागण कहते हैं कि आने वालों को आने नहीं देते और जो आ जाते हैं उसे जीने नहीं देते। यह उक्ति खासकर महिलाओं के संदर्भ में पेश किया जाता है।समस्तीपुर जिले के पठौरी गांव में रहने वाले पंचानंद गिरी ने अपनी पत्नी सुमित्रा देवी को परलोक नहीं भेज सका। तो पंचानंद गिरी ने ऐसा गिरा हुआ कार्य कर दिया कि सुमित्रा देवी को भाग-दौड़ करने लायक नहीं छोड़ रखा।

समस्तीपुर जिले में पठौरी गांव है। सुमित्रा देवी की शादी पंचानंद गिरी के साथ हुई। दोनों एक अंग होकर एक पलंग पर सोने लगे। फिलवक्त इन दोनों के तीन बच्चे हैं। दो लड़के और एक लड़की हैं। सुमित्रा देवी कहती हैं कि पतिदेव पंचानंद गिरी को कुष्ठ रोग हो गया है। सामाजिक प्रतिष्ठा के खिलाफ कुष्ठ रोग से पीड़ित होने से चिढ़चिढ़ा रहते हैं। अब तो अंग भी साथ न देकर अपंग होने लगा है।

सुमित्रा देवी कहती हैं कि घर की माली हालत खराब होने लगी। घर की गाड़ी खिंचने की जिम्मेवारी आ गयी। इसके कारण घर से बाहर निकलकर बाहर में कार्य करने लगीं। अभी स्वास्थ्य विभाग में कार्य करते अल्पकाल ही हुआ था। चेहरे पर मुस्कान बिखरने लगा। इस मुस्कान से पतिदेव को बुरा लगने लगा।पतिदेव शक पालने लगे। शक की बीमारी से पीड़ित पतिदेव पंचानंद गिरी ने पति-पत्नी के संबंध को दागदार बना दिया। पंचानंद गिरी ने जमीन में गिरा गड़ासे को हाथ में उठाकर गिरा हुआ कार्य को अंजाम दे दिया। उसने बेरहम बनकर दाहिने पैर ही काट दिए। और तो और रक्त प्रवाह अवस्था में ही छोड़कर गांवघर से फरार हो गए।जब इसकी सूचना पंचायत के मुखिया को मिली।मुखिया जी ने कॉल करके एम्बुलेंस बुलाया। समस्तीपुर जिले से पटना जिले में स्थित पीएमसीएच में भर्त्ती कराया गया। चिकित्सकों ने जल्द से जल्द इलाज शुरू कर दिए। इस विकट परिस्थिति में अग्नि को साक्षी मानकर सात फेरा लेने वाले पतिदेव नदारद रहे। तो जन्म देने वाले मेरे माता-पिता सहायक सिद्ध हुए।

अपंग सुमित्रा देवी कहती हैं कि पीएमसीएच के बेड पर पड़े रहने के समय में एक उपाय सुझा। उपाय यह रहा कि जिस प्लेट में भोजन करती हैं। उसी प्लेट के सहारे भीख मांगी जाए। सुमित्रा देवी कहती हैं कि दिन में पीएमसीएच से निकल जाती थीं। वैशाखी के सहारे चलकर मुख्य सड़क पर आ जाती थी। यहां से रिक्शा पर बैठकर कारगिल चौक रवाना हो जाती थी। दिनभर भीख मांगती थी। कोई दो-तीन सौ रू0 हो जाता। रात में पीएमसीएच के बेड पर सो जाती थी। एक दिन ईटीवी बिहार ने आपबीती को रिले किया। रीयल लाइफ को पेश करने से देवेशचन्द्र ठाकुर को दया आ गया। श्री ठाकुर पीएमसीएच में पहुंचे। एक बार पांच हजार और दूसरी बार चार हजार रू.का चेक दिए। नौ हजार रू.देने के बाद श्री ठाकुर ने कहा कि हरेक में सात सौ रू.बैंक एकाउंट में डाल देंगे। जनवरी और फरवरी में डाल दिए हैं। अभी मार्च महीने का एकाउंट बुक अप दू डेट नहीं किया गया है। हां,निःशक्ता सामाजिक सुरक्षा पेंशन के रूप में चार सौ रू.मिलता है। जो नियमित भुगतान नहीं होता है। छह माह पर भुगतान होता है। कुल मिलाकर 11 सौ रू. में परिवार की माली हालत चरमरा जाती है।

ऐतिहासिक गांधी मैदान के बगल में कारगिल चौक है। पुलिस चौकी के सामने प्लास्टिक सीट को बिछाकर बैठी हैं सुमित्रा देवी। पीछे में वैशाखी और आगे प्लेट है,जो दुःखित दिनों में सहायक सिद्ध हो रहे हैं।सुमित्रा देवी कहती हैं कि दो साल से परेशान हैं। भीख मांगकर कार्तिक कुमार और अन्य बच्चों को पढ़ा रही हैं। बीमारी के कारण ही 2014 में कार्तिक कुमार मैट्रिक की परीक्षा नहीं दे सका। अब 2015 में कार्तिक कुमार मैट्रिक की परीक्षा दिया है। अभी समस्तीपुर से आकर पीएमसीएच के चिकित्सक से शनिवार 4 अप्रैल 2015 के दिन दिखाना है। अभी भी घाव ठीक नहीं हुआ है। असहनीय दर्द होता है। दिनभर भीख मांगने के बाद रात में सोने पीएमसीएच में चले जाएंगे। चिकित्सक से दिखाकर समस्तीपुर चले जाएंगे। आने-जाने का खर्च भीख मांगका पूरा कर रही है। अन्य खर्च भी निकालना है। तीन से चार सौ रू. मिल जाता है। दानवीर 10 रू. भी दे जाते हैं। दस और पांच को अलग रखने लगती हैं। इतना कहने के बाद सुमित्रा देवी कहती हैं कि उनके पति पंचानंद गिरी धमकी देता है कि सपरिवार को मार डालेंगे। धमकी मिलते रहने से घबड़ा जाती है। इस ओर प्रशासन को कदम उठाने की जरूरत है।

आलोक कुमार


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