मेरे साथ अन्याय किया गया
1 जून 1948 से 18 मई 2015 तक
मुम्बई। यहां के किंग एडवर्ड मेमोरियल हॉस्पिटल में मातम छा गया। सभी लोग वार्ड नम्बर-4 की
ओर
जा
रहे
थे।
जनाना
वार्ड के एक रूम के बेड पर पड़ी 24 साल की नर्स रेप से पीड़ित होकर 42 साल
से
जिदंगी
की
जंग
लड़
रही
थी।
उसी
मानव
सेवा
करने
वाली
नर्स
की
मौत
हो
गयी।
सभी
लोग
आतुर
होकर
दर्शन
कर
लेना
चाहते
थे।
उनको
श्रद्धा
के
पुष्प
अर्पित
करना
चा
रहे
थे।
इस
बार
सहेली
नर्सेस
अरूणा
का
जन्म
दिन
मनाने
की
तैयारी
कर
रहे
थे।
जन्म
दिन
के
13 रोज
पहले
ही
वह
वहशी
दरिंदे
की
शिकार
हो
गयी
।
जी हां, वह अरूणा रामचन्द्रन शानबाग नामक नर्स थीं। अरूणा का जन्म कर्नाटक राज्य के शिमोगा जिले के हल्दीगांव में 1 जून
1948 को
हुआ।
जब
वह
12 साल
की
थीं।
प्यारी
मां
कोकणी
भाषा
में
अरूणा
से
कहती
हैं
कि
लाडली
बेटी
इडली
का
आटा
पिस-पिस दो। तब वह तपाक से कहती हैं कि आपलोगों की तरह पिस-पिसकर मरना नहीं है। मुझे बहुत कुछ करना है। मैं मानव सेवा करने वाली नर्स बनना चाहती हूं। 1966 में
मुम्बई
के
के.ई.एम. हॉस्पिटल में जूनियर नर्स के तौर पर नौकरी शुरू की थीं।वह सदैव शान की जिंदगी जीना चाहती थीं। हर वक्त अरूणा के चेहरे पर खुशी की लकीर परिलक्षित होती रहती थी। अपने मुस्कान से रोगियों और सहकर्मियों की दिल पर राज कर पाने में सफल हो जाती थीं। इसी कारण खुश नसीब नर्स को नेरो सर्जन डाक्टर संदीप सरदेसाई ने दिल दें दिए। अरूणा और संदीप ने संगाई कर ली। संगाई की मस्ती में डूबने और दोस्तों को पार्टी का मजा लुटने की व्यवस्था अरूणा और संदीप ने 30 नवम्बर
1973 को
कर
रखी
थी।
इसमें
कुत्तों
की
देखभाल
करने
वाले
और
कुत्तों
के
आहार
लुटने
वाले
सोहनलाल
को
भी
बुलाया
गया
था।
इसके
बाद
छुट्टी
में
जाकर
दोनों
एक
अंग
बनने
वाले
थे।
मैं
तेरी
दुल्हन
और
तू
मेरा
दुल्हा
को
साकार
करने
वाले
थे।
विधि
के
विधान
को
मान्य
नहीं
था।
दोनों
तीन
दिन
पूर्व
ही
क्या
से
क्या
हो
गए?
क्या हुआ था उस रातः 27 नवम्बर
1973 की
रात
केईएम
हॉस्पिटल
में
नर्स
अरूणा
ड्यूटी
के
बाद
बेंसमेंट
में
स्थित
चेजिंग
रूम
में
कपड़े
बदलने
गई
थीं।
अरूणा
के
द्वारा
धमकी
देने
कि
कुत्तों
का
आहार
मत
लुटो
नहीं
तो
प्रबंधन
से
शिकायत
कर
देंगे।
बेसमेंट
में
ही
डॉग
सर्जरी
रूम
है।
वहीं
पर
सफाई
करने
का
भी
कार्य
करता
था।
अरूणा
के
द्वारा
धमकी
देने
से
तभी
से
खार
बैठे
वार्ड
ब्यॉय
सोहनलाल
वाल्मीकि
ने
उसे
दबोच
लिया
और
अप्राकृतिक
दुष्कर्म
किया।
उसने
कुत्ते
की
चेन
अरूणा
के
गले
में
बांधकर
उसे
मारने
की
कोशिश
की।
यह
सोचकर
अरूणा
मर
गयी
है।
वार्ड
ब्यॉय
अरूणा
के
हाल
पर
छोड़कर
चला
गया।
वह
रातभर
बेसमेंट
में
ही
पड़ी
रहीं।
उसे
सुबह
आठ
बजे
से
ड्यूटी
में
जानी
थीं
तब
जाकर
अरूणा
की
खोज
होने
लगी।
तबतक
काफी
विलम्ब
हो
गया
था।
अरूणा
को
जिंदा
लाश
बनाकर
वार्ड
ब्यॉय
फरार
हो
गया।
संपूर्ण
हादसा
में
अरूणा
की
मस्तिष्क
में
ऑक्सीजन
की
आपूर्ति
रूक
गई
और
कोमा
में
चली
गई।
आंख
की
रोशनी
गायब
हो
गयी।
शरीर
में
लकवा
मार
दिया।
बोलचाल
करना
बंद
कर
दी।
ट्यूब
के
सहारे
तरल
आहार
दिया
जाने
लगा।
मुम्बई की पुलिस पर सवालः यह जरूर हुआ कि पुलिस ने अरूणा को मौत के सिरहाने सुला देने वाले वार्ड ब्यॉय सोहनलाल वाल्मीकि को गिरफ्तार कर लिया। उसने एफआईआर दर्ज किया। पुलिस ने हत्या करने की कोशिश और कान की बाली चुराने का आरोप लगाया। इस समय किंग एडवर्ड मेमोरियल हॉस्पिटल के प्रबंधक ने विशेष रूचि नहीं लिया। इसके कारण ही आरोपी पर रेप करने का मामला दर्ज नहीं किया गया। फिर भी पुलिस द्वारा आरोपित आरोप में सोहनलाल जेल गए। सत्र न्यायालय ने केवल 7 साल
की
सजा
सुनायी।
वह
7 साल
की
सजा
काटकर
स्वछंद
हो
गया।
अनुमान
लगाया
गया
है
कि
वह
नाम
में
परिवर्तन
कर
किसी
हॉस्पिटल
में
कार्य
कर
रहा
है।
अब
मुम्बई
पुलिस
सोहनलाल
को
गिरफ्तार
करके
मुकदमा
चलाये।
देखभाल में पूरा हॉस्पिटल जूटाः
किंग
एडवर्ड
मेमोरियल
हॉस्पिटल
के
प्रशासन
ने
1980 अरूणा
शानबाग
को
घर
भेजने
का
आदेश
निकाला।
इसका
जोरदार
विरोध
हुआ।
फिर
क्या
था।
तभी
से
और
मुस्तैदी
से
बलात्कार
पीड़ित
नर्स
अरूणा
शानबाग
की
देखभाल
में
पूरा
हॉस्पिटल
जूटा
रहता
था।
हॉस्पिटल
के
वार्ड
नम्बर
चार
के
एक
कमरे
में
बिस्तर
पर
ही
उन्होंने
कोमा
में
42 साल
गुजार
दिए।
उनके
सारे
दांत
टूट
चुके
थे।
तरल
भोजन
देना
पड़ता
था।
वे
अक्सर
बेहोश
रहती
थीं।
रिश्तेदार
साथ
छोड़
चुके
थे, पर हॉस्पिटल की नसें और सारा स्टाफ उनकी देखभाल ठीक उसी तरह करते जैसे घर में नन्हे बच्चे की देखभाल की जाती है। सेवा करने में पीछे डाक्टर संदीप सरदेसाई नहीं रहे। चार साल तक सेवा करते रहे और इंतजारी करते रहे कि अरूणा ठीक हो जाएगी। ऐसा नहीं होने पर तब जाकर डाक्टर संदीप सरदेसाई ने शादी कर ली।
इच्छामृत्यु को सुप्रीम कोर्ट ने ठुकरा दियाः
अरूणा
शानबाग
की
दोस्त
पिंकी
विरानी
ने
7 मार्च
2010 में
सुप्रीम
कोर्ट
में
याचिका
दायर
करके
इच्छामृत्यु
का
आदेश
देने
का
आग्रह
किया
था।
देश
में
इच्छामृत्यु
को
लेकर
अभी
तक
कानून
नहीं
है।
इस
मुद्दे
पर
बहस
जारी
है।
जब
हम
जिंदगी
ने
नहीं
सकते
तो
लेने
वाले
कौन
होते
हैं।
वहीं
ये
तर्क
भी
है
अगर
जिंदगी
जीने
लायक
रही
ही
नहीं तो ऐसी जिंदगी जीने या ना जीने का फैसला उसका है, जिसकी वह जिंदगी है। वीरानी का तर्क था कि अरूणा के शरीर में कोई हलचल नहीं है। उनका मस्तिष्क मर चुका है और बाहरी दुनिया के बारे में उन्हें कुछ पता नहीं है।
इस मामले में अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एक्टिव यूथेनेसिया गैरकानूनी है। असामान्य परिस्थितियों में पैसिव मर्सी यूथेनेसिया को अनुमति दी जा सकती है। एक्टिव यूथेनेसिया के तहत गंभीर रूप से बीमार मरीज को कोई इंजेक्शन दिया जाता है जबकि पैसिव यूथेनेसिया के अंतर्गत जीवन रक्षक प्रणाली के उपकरण हटा लिए जाते हैं। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि अरूणा के मामले में तथ्यों और हालात , चिकित्सा साक्ष्य और बाकी जानकारी से पता चलता है कि पीड़ित को इच्छामृत्यु की जरूरत नहीं है। सर्वोच्च न्यायालय ने 17 दिसम्बर
2010 में
इच्छाशक्ति
की
याचिका
को
रिजेक्ट
कर
दी।
इसके
बाद
24 जनवरी
2011 में
तीन
सदस्यों
की
कमेटी
बनायी
गयी।
जो
जहरीला
इंजेक्शन
के
बारे
में
निर्णय
दिया।
और चिकित्सकों ने मृत घोषित कर दियाः
दो
दिनों
से
अरूणा
को
निमोनिया
हो
गया
था।
उसे
वेंटिलेटर
पर
रखा
गया।
इस
दौरान
18 मई
2015 को
8:30 मिनट पर ह्नदय गति रूक जाने से मौत हो गयी। निधन की खबर सुनकर हॉस्पिटल में अरूणा की भांजी मंगला शानबाग आ गयी। इस बीच हॉस्पिटल के डीन डॉक्टर सुपे ने अरूणा के शव को उनके परिवार को सौंपने का ऐलान किया। इससे विवाद खड़ा हो गया। हॉस्पिटल की नसों ने विरोध किया और कहा कि अरूणा की सेवा उनके परिवार वालों ने नहीं की है इसलिए उन्हें शव न सौंपा जाए। हालात को देखते हुए प्रशासन ने फैसला बदला और फिर अरूणा को हॉस्पिटल की बेटी की तरह अंतिम विदाई दी गई।
नम आंखों से दी अंतिम विदाईः केईएम हॉस्पिटल की नसों ने अरूणा शानबाग को अपनी बहन की तरह आखिरी विदाई दी। नसों के विरोध के आगे हॉस्पिटल प्रशासन झुका और भोईवाड़ा श्मशानभूमि में केईएम हॉस्पिटल के डीन डॉक्टर अविनाश सुपे ने अरूणा को मुखाग्नि दी। इस मौके पर अरूणा के परिवार के सदस्य भी मौजूद थे। काफी गमगीन महौल बन गया। अंतिम विदाई के समय नसों ने अरूणा शानबाग अमर रहे के नारे भी लगाए। पूर्व डीन डॉक्टर प्रज्ञा पाई,हेड नर्स संजीवनी जाधव आदि का बुरा हाल हो रहा था।
अरूणा शानबाग पर लिखी गई किताबः
अरूणा
शानबाग
की
कहानी
पुस्तक‘अरूणाज स्टोरी, द टू एकाउंट ऑफ ए रेप एंड इट्स ऑफ्टरमेंथ’ शीर्षक से 1988 में
आई।
इसे
पिंकी
विरानी
ने
लिखा।
अरूणा
के
जीवन
पर
दत्त
कुमार
देसाई
ने
1995 में
मराठी
नाटक
‘कथा अरूणाची’ लिखा। साल 2002 में
विनय
आप्टे
के
निर्देशन
में
इस
नाटक
का
मंचन
किया
गया।
आलोक कुमार
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