Wednesday, 1 July 2015

आरंभ में बेघरों के घर की सीढ़ी पर उदय नारायण चौधरी चढ़े

अब बिहार विधान सभा की सीढ़ी पर चढ़ते हैं श्री चौधरी
बेघरों के घर से लोकार्पण 3 जुलाई को दिल्ली में

गया।राजधानी पटना में 1975 में प्रलयकारी बाढ़ आयी थी। तब तिनका जोड़-जोड़कर झोपड़ी बनाने वाले लोगों का आशियाना ही ध्वस्त हो गया। बिहार सरकार ने सुधि ली। गैर मजरूआ भूमि पर एक-एक कमरे वाले मकान बना बनाने का निश्चय किया। बिहार सरकार ने बेघरों के घर के निर्माण करने की जिम्मेवारी बिहार राज्य आवास बोर्ड को सौंपा। देखते ही देखते राजेन्द्र नगर, मंदिरी स्थित चीना कोठी और नेहरू नगर में मकान बनकर तैयार हो गया। इसमें सामाजिक कार्यकर्ता फादर फिलिप मंथरा, उदय नारायण चौधरी आदि का योगदान उल्लेखनीय है।इस बीच बिहार राज्य आवास बोर्ड ने गरीबों के बीच में मकानों का पर्चा सही ढंग से वितरण कर दिया। दुर्भाग्य से गरीबों को कब्जा वितरित मकान पर नहीं हो सका।आज भी ‘पर्चा में मेरे हाथ और मकान किसी और के साथ’ का मामला बरकरार है।

जी हाँ, प्रारंभ में मंदिरी स्थित चीना कोठी में निर्मित बेघरों के घर में सामाजिक कार्यकर्ता उदय नारायण चौधरी रहते थे। उन्होंने ‘प्रयास’ग्रामीण विकास समिति बनाया। बेघरों के घर में रहकर सामाजिक कार्य करने लगे। बेघर मुसहरों को जमीन और घर दिलवाने की मुहिम में जुट गए।मुसहरों के बीच कार्य करते समय बंधुआ मजदूरों को मुक्त करवाने में अहम भूमिका अदा किए।‘प्रयास’ग्रामीण विकास समिति के द्वारा गया जिले में शानदार कार्य होने लगा।संस्था में कार्य करते-करते राजनीति की धरती पर पांव जमाना शुरू कर दिए।संस्था को अलविदा कहकर चुनावी समर में कदम बढ़ाया।राजद के टिकट पर उदय नारायण चौधरी चुनाव लड़े। इसमें फतह होने के बाद सूबे के कारा मंत्री बने। कतिपय कारणों से कारा मंत्री के पद से इस्तीफा दें दिए। इसके बाद राजद से हटकर जदयू में शामिल हो गए। जदयू ने उदय नारायण चौधरी को बिहार विधान सभा के अध्यक्ष पद पर ताजपोशी कर दिया। लगातार दो बार बिहार विधान सभा के अध्यक्ष उदय नारायण चौधरी बनाकर रिकॉड कायम किए। 

इस बीच बिहार विधानसभा के अध्यक्ष उदय नारायण चौधरी की अधिकृत जीवनी पर आधारित बेघरों के घर से बुक लिपीबद्ध किए हैं नरेन्द्र पाठक। संपादक नरेन्द्र पाठक द्वारा लिखित बेघरों के घर से का लोकार्पण 3 जुलाई 2015 को 2 बजे अपराह्न से नई दिल्ली स्थित गांधी शांति प्रतिष्ठान, दीनदयाल उपाध्याय मार्ग में होने जा रहा है। इसका लोकार्पण प्रख्यात गांधीवादी और युवाओं के प्रेरणा स्त्रोत डॉ. एस.एन.सुब्बाराव (भाई जी) निदेशक-राष्ट्रीय युवा योजना के करकमलों से संपन्न होगा। समारोह की अध्यक्षता डॉ. राधा बहन भट्ट, अध्यक्ष ,गांधी शांति प्रतिष्ठान करेंगी। इस अवसर पर विशिष्ट अतिथि कुलदीप नैय्यर पूर्व सांसद एवं प्रसिद्ध चिंतक-विचारक व पत्रकार होंगे। मुख्य अतिथि के रूप में स्वामी अग्निवेश ,अध्यक्ष , बंधुआ मुक्ति मोर्चा, पवन के. वर्मा, सांसद व पूर्व राजनयिक,राजगोपाल पी.व्ही., संस्थापक, एकता परिषद होंगे। 

संपादक नरेन्द्र पाठक द्वारा लिखित बेघरों के घर में संपादक का कहना है कि उदय जी ने जिस सत्य का साक्षात्कार किया और उससे यह निष्कर्ष निकला कि अछूत की समस्या का समाधान अछूत जातियों की सांस्कृतिक उन्नति में निहित हैं इसकी शुरूआत उन्होंने पाठशाला के करीब लाकर और दारू के अड्डों से दूर ले जाकर की। 

वे यही चाहते थे कि दलित जातियाँ इतिहास से भी अपने सवालों के जवाब ढूँढ़े कि 10 जनों के लिए 200 बीघा जमीन और 560 जनों के लिए 9 कट्ठा ही क्यों? यह 9 कट्ठा भी चकबैरिया के मुसहरों को विरासत में नहीं मिली। इसके लिए लम्बी लड़ाई लड़ी गई। छोटे दायरे में लड़ी गई ये लड़ाइयाँ इतिहास में दर्ज होने लायक नहीं है, क्योंकि ये किसी राजा-रानी के द्वारा नहीं लड़ी गई। एक दलित यह लड़ाई अपनी तरह की मुसहर जातियों के लिए वासभूमि दिलाने, राशन कार्ड और नागरिकता दिलाने के बाद सुअर के बाड़ों से निकालकर उन्हें स्कूल भेजने के लिए लड़ता रहा। मध्यकाल में अनेक सूबेदारों की उन लड़ाइयों को हम इतिहास के पाठयक्रम में पढ़ते हैं, जिसके मूल में कोई परायी महिला अथवा जागीदारी रही है, उसे हम क्यों पढ़ते हैं, यह कभी नहीं बताया गया । लेकिन जो काम उदयजी ने अपने साथियों के साथ मिलकर किया, वह काम दलित जीवन के भी सबसे निचले पायदान पर खड़े महादलितों की विजय में, उनकी मुक्ति में मील का पत्थर बनेगा। 

आलोक कुमार

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