वह धर्म बदल सका पर कर्म नहीं बदल सका
अनुसूजित जाति का मिलने वाला आरक्षण बदला
पटना। कुर्जी मोड़ के समीप मन्नू दास बैठकर जूता-चप्पल सिलाई करते हैं। नवादा जिले के निवासी हैं। यहां पर कैथोलिक धर्मालय है। जो चर्च ऑफ संत जोसेफ द वर्कर से संबंधित है। इसका सृजन 1938 में हुआ। अबतक धर्म परिवर्तन कर 2516 लोगों ने ईसाई धर्म
अंगीकार किए हैं।
अंगीकार किए हैं।
इसी में मन्नू दास भी है। ईसाई धर्म कबूलने के बाद इम्मानुएल दास बन गया। फादर जैकब ने मन्नू दास को बपतिस्मा देकर नाम परिवर्तन किया।धर्म तो परिवर्तन हुआ पर कर्म नहीं परिवर्तन हुआ। वहीं हिन्दु धर्म मानने समय अनुसूजित जाति का मिलने वाला आरक्षण छीन गया। ईसाई धर्म मानने पर पिछड़ी जाति वर्ग में आ गए। उनको पिछड़ी जाति का आरक्षण प्राप्त है। आज भी वह कुर्जी मोड़ के समीप बैठकर जूता-चप्पल सिलाई करता है। पॉलिश मार जूतों को चमकाने वाले इम्मानुए दास की किस्मत नहीं चमकी।
बिहार में अव्वल उत्तर बिहार के पिछड़ी जाति के लोगों को धर्म परिवर्तन किया गया। इसके बाद अनुसूचित जाति के लोगों को धर्म परिवर्तन किया गया। उत्तर बिहार के धर्म अंगीकार करने वाले लोग अंग्रेजी नाम रखे। अनुसूचित जाति के धर्म अंगीकार करने वाले हिन्दी नाम रखे। और तो और मजे से अनुसूचित जाति का होने का लाभ भी उठाते रहे। सनातम धर्म घोषित करते हैं। अगर कानूनी अड़चन में पड़ते हैं तो ईसाई धर्म के ठेकेदारों को ईसायत धर्म अंगीकार नहीं करने का प्रमाण पत्र निर्गत करने से पीछे हटते नहीं हैं। इसी के बल पर अनुसूचित जाति से धर्म परिवर्तन करने वाले लोग ‘ कहीं ईसाई कहीं हिन्दु धर्म दर्शाते धर्मान्तरित ईसाई’ लिखते रहते हैं। मिशनरियों से फायदा उठाने वक्त ईसाई और आरक्षण की सुविधा लेते वक्त सतातन धर्म लिखते रहते हैं। इस नीति के कारण ईसाइयों की जनसंख्या कम दिखती है। करीब 54 हजार की जनसंख्या
बिहार में है।
मखदुमपुर बगीचा,दीघा घाट,पटना।
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