Sunday 10 January 2016

बालक येसु को बपतिस्मा मिला

पटना। बालक येसु का बपतिस्मा संस्कार लेने का त्योहार मना रहे हैं। 24 दिसम्बर की अर्द्धरात्रि में बालक येसु का जन्म हुआ था। ईसाई समुदाय 25 दिसम्बर को बड़ा दिन कहकर येसु का जन्म दिन मनाया। आज 10 जनवरी को बालक येसु को बपतिस्मा संस्कार दिया गया। इनको यर्दन नदी में डूबकी दिलवाकर बपतिस्मा संस्कार दिया गया।

आज हम हमारे प्रभु येसु ख्रीस्त के बपतिस्मा का पर्व मना रहे हैं। इस अवसर पर प्ररितों की रानी ईश मंदिर में सहायक पल्ली पुरोहित फादर सुशील साह ने कहा कि आजकल हमलोग त्योहार मनाने में पलट गए हैं। आरंभ में बच्चों को बपतिस्मा संस्कार लेते समय आनंद मनाते और भोज का लुफ्त उठाते थे। अब बच्चों के परमप्रसाद के असवर पर मजा लुटते हैं। उन्होंने कहा कि आज का पर्व, दूसरा प्रभु प्रकाशना है अर्थात येसु का मसीह होना पुनः स्पष्ट करता है। प्रभु येसु के बपतिस्मा के अवसर पर स्वर्ग से यह वाणी सुनाई दी, ’’तू मेरा प्रिय पुत्र है, मैं तुझ पर अत्यंत प्रसन्न हूँ’’। जिस कार्य के लिए वह भेजे गये है उसकी स्वीकृति और शुरूआत इस घटना से होती है। आज प्रभु के बपतिस्मा का पर्व इसलिए खास तौर पर बहुत ही महत्वपूर्ण है कि यह हमें हमारे ईश्वर द्वारा कलीसिया को सौंपा गया प्रमुख कार्य-विशेष की याद दिलाता है।स्वर्गारोहण से पहले येसु ने बपतिस्मा संस्कार को स्थापित की। उन्होंने अपने शिष्यों से कहा, ‘‘तुम लोग जाकर सब राष्ट्रों को शिष्य बनाओ और उन्हें पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा के नाम पर बपतिस्मा दो। मैंने तुम्हें जो आदेश दिए हैं, तुम लोग उनका पालन करना उन्हें सिखलाओ और याद रखो मैं संसार के अंत तक सदा तुम्हारे साथ हूँ’’ ।

ख्रीस्तीय बपतिस्मा संस्कार के महान उपहार को ग्रहण करने से हम बहुत भाग्यशाली हो गए हैं। बपतिस्मा में ईश्वर ने हमें अपने पुत्र-पुत्रियाँ बना दिया हैं। बपतिस्मा संस्कार उसे ग्रहण करने वालों को कुछ कार्यबद्धता और जिम्मेदारियाँ सौंप देता है। यही बात हम तीतुस के नाम संत पौलुस के पत्र में पढ़ते हैं ‘‘क्योंकि ईश्वर की कृपा सभी मनुष्यों की मुक्ति के लिए प्रकट हो गयी हैं वह हमें शिक्षा देती है कि अधार्मिक कला तथा विषयवासना त्याग कर, हम इस पृथ्वी पर संयम, न्याय तथा भक्ति का जीवन बिताये’’।

हम प्रभु येसु ख्रीस्त के नाम पर पवित्र और निर्दाेष बताए गए हैं। हम वे लोग हैं जिनके लिए ख्रीस्त पास्का रहस्य की मुक्ति की शक्ति के साथ आये हैं। बपतिस्मा संस्कार में ख्रीस्त हम से आध्यात्मिक रूप से मिलने आते हैं। आज जब हम अपने बपतिस्मा संस्कार को याद करते हैं तो हमें अपनी प्रतिज्ञाओं को नव स्फूर्ति प्रदान करना चाहिए और उन प्रतिज्ञाओं को हमारे जीवन में फिर से चलन में लाना चाहिए।

बपतिस्मा संस्कार की प्रतिष्ठा महान है। संत योहन ख्रीसोस्तोम इसका महत्व प्रकट करते हुए कहते हैं, ‘‘देखो, वे लोग जो थोड़ी देर पहले भूल और पाप के कैदी थे, अब वे आज़ादी का आनंद ले रहें हैं और कलीसिया के सदस्य बन गए हैं। वे लोग न केवल आज़ाद है वरन् पवित्र भी, न केवल पवित्र पर सही भी, न केवल सही पर बच्चे भी है, न केवल बच्चे पर उत्तराधिकारी भी है, न केवल उत्तराधिकारी पर येसु ख्रीस्त के सहउत्तराधिकारी भी, न केवल सहउत्तराधिकारी पर सदस्य भी, न केवल सदस्य पर मंदिर भी, न केवल मंदिर पर पवित्र आत्मा के अंग भी है। यह सब कितना महान हैं’’।

ईसाइयों के बपतिस्मा संस्कार को मानवीय इतिहास में बहुत ही क्रांतिकारी चीज़ कहना उचित है। हालाँकि ख्रीस्त में बपतिस्मा के द्वारा पुनर्जीवन प्राप्त करनेवाले किसी निश्चित माता-पिता से जन्म लेते है, किसी निश्चित आयु समूह के सदस्य हो, किसी निश्चित निवास क्षेत्र में रहते हो या किसी विशेष सामाजिक वर्ग के अंग हों फिर भी ख्रीस्त में उनका पुनर्जीवन सारी असमानताओं को मिटा देता है और सारे दोष हटा देता है। बपतिस्मा संस्कार हम सब- नर और नारी, अमीर और गरीब, मालिक और मज़दूर, अधिकारी और कर्मचारी- को ख्रीस्त में बराबर बना देता है।परन्तु हम इस दृष्टिकोण से कितने दूर हैं! यह केवल बपतिस्मा संस्कार के बारे में हमारी अज्ञानता का फल है। बपतिस्मा संस्कार की माँग को समझने एवं उसे पूरा करने में हमें बहुत लम्बा रास्ता तय करना हैं।

कुछ ईसाई, विशिष्टतः क्वेकर (Quakers) तथा मुक्ति सेना (Salvation Army), बपतिस्मा को आवश्यक नहीं मानते और न ही वे इस रिवाज का पालन करते हैं। जो लोग इसका पालन करते हैंए उनमें भी बपतिस्मा लेने की पद्धति और माध्यम के संदर्भ में तथा इस रिवाज के महत्व की समझ के प्रति मतभेद देखे जा सकते हैं। अधिकांश ईसाई ष्पिता केए तथा पुत्र केए तथा पवित्र आत्मा के नाम परष् बपतिस्मा लेते हैं (ग्रेट कमीशन (Great Commission) का पालन करते हुए), लेकिन कुछ लोग केवल ईसा मसीह के नाम पर बपतिस्मा लेते हैं। अधिकांश ईसाई शिशुओं का बपतिस्मा करते हैं अनेक अन्य लोग यह मानते हैं कि केवल विश्वासकर्ता का बपतिस्मा ही सच्चा बपतिस्मा है। कुछ लोग इस बात पर बल देते हैं कि बपतिस्मा ले रहे व्यक्ति का निमज्जन किया जाए या उसे कम से कम आंशिक रूप से डुबोया जाएए जबकि अन्य लोग यह मानते हैं कि जल के द्वारा नहलाए जाने का कोई भी रूप पर्याप्त है, जब तक कि जल सिर पर प्रवाहित हो रहा हो।

अंग्रेजी शब्द (Baptism)" प्रयोग किसी भी ऐसे धार्मिक आयोजनए प्रयोग या अनुभव के संदर्भ में भी किया जाता रहा है जिसमें व्यक्ति को दीक्षित या शुद्ध किया जाता है अथवा उसे कोई नाम दिया जाता है।

आलोक कुमार
मखदुमपुर बगीचा,दीघा घाट,पटना।


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