Friday 7 October 2016

गंगा कैनाल में एक मिनट सफर करने की कीमत 5 रूपए


पटना। आप माने माने, बिल्कुल सत्य है। मजबूरी में पुनर्वासित न्यू बिन्द टोली,कुर्जी के लोग हैं। शहर से रूठ कर दूर चली गयी हैं गंगा नदी। प्रथम प्रयास पूर्व सीएम लालू प्रसाद यादव किये थे। दीघा स्थित बाजितपुर से कैनाल निर्माण किया गया। जो बाद में कामयाब नहीं हो सका। इसके बाद माननीय पटना उच्च न्यायालय के आदेश पर सीएम नीतीश कुमार ने पहल की। इस बार गंगा नदी से ही कैनाल निर्माण किया गया। जो परेशानी का सबब बना। इस कैनाल पर पप्पू और थप्पू भाइयों ने पूल निर्माण किया। इसी पूल से लोग आवाजाही करते थे। जो गंगा नदी के उफान के कारण ध्वस्त हो गया।

बताते चले कि पप्पू और थप्पू नामक भाइयों द्वारा फोरलाइन सड़क निर्माण करवाया जा रहा है। कार्य निष्पादन करवाने के सिलसिले में ही पुल निर्माण किया। वह पुल गंगा नदी के उफान के बाद ध्वस्त हो गया। तब जिला प्रशासन ने 6 नाव की व्यवस्था कर दी। पानी उतरने के बाद जिला प्रशासन ने सरकारी नाव चलवाना बंद कर दी। इसका खामियाजा लोग भुगतने लगे। इस समय निजी 1नाव चालित है। इस नाव के नाविक ने व्यवस्था कर रखी है कि जो लोग आवाजाही करेंगे। उनको बतौर किराया देना पड़ेगा। नाव में मशीन लगी है। डीजल आदि को लेकर लोगों से भाड़ा वसूला जाता है।

और जिला प्रशासन ने वादा नहीं निभायाः जब पुनर्वासित लोग बिन्द टोली,दीघा से आये थे। तब जिला प्रशासन ने पुल निर्माण करने का वादा किया था। जो दीघा से कुर्जी आने की तारीख 6 जनवरी, 2016 से 6 अक्टूबर,2016 तक पुल निर्माण करने वादा पूर्ण नहीं किया गया। जिला प्रशासन ने पुल निर्माण करने का वादा को निभाया ही नहीं। 10 माह के बाद भी पूर्ण नहीं किया गया। इसके कारण लोग परेशान हो रहे हैं। महज एक मिनट सफर करने के एवज में बतौर किराया 5 रू 0 देना पड़ रहा है।

स्कूल जाने वाले बच्चे भी हलकानः सरकारी और गैर सरकारी स्कूलों में अध्ययनरत बच्चों को सीएम नीतीश कुमार के कैनाल को नाव पर चढ़कर पार किया जाता है। इसके बाद ही बच्चे स्कूल जा पा़ते हैं। इस कैनाल से संभावित मौत से घबराकर सरकारी शिक्षक नाव से आवाजाही करने पर अडिग हैं। बिन्द टोली,कुर्जी में गंगा नदी से उफान आने के पूर्व ही सरकारी शिक्षक स्कूल आना बंद कर दिये। शिक्षकों ने बच्चों और अभिभावकों से कह दिये कि बच्चों को गंगा कैनाल पारकरके गोसाई टोला में आकर पढ़ना होगा। इस तरह जौखिम में बच्चे पड़कर पढ़ने जाने को मजबूर हो गये।

आलोक कुमार

मखदुमपुर बगीचा,दीघा घाट,पटना।

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