Friday 21 October 2016

आग अभी बुझी नहीं









बड़कागांव में नहीं बुझी है ‘कफन और चिता सत्याग्रह’

झारखंड। झारखंड के हजारीबाग के बड़कागांव में पिछले दिनों आरंभ हुए ‘चिता सत्याग्रह’ को लाठी गोली से सरकार ने भले ठप्प करने की कोशिश की हो लेकिन इसकी आग अभी बुझी नहीं है। कोयले के खनन के लिए किसानों की अत्यधिक उर्बर खेती की जमीन संविधान की सभी नियमों की धज्जियां उड़ाकर जबरन कब्जे में  लेने की कोशिश से  मुख्यमंत्री रघुवर दास की सरकार खतरे में पड़ सकती है। पिछले 15 सालों से बड़कागांव में सरकार और किसान आमने-सामने हो गए हैं। एक तरफ एनटीपीसी के लिए कोयला खनन की परियोजना पर सरकार पूरे लाव लश्कर के साथ जमीन लेने में फिरंगियों को भी पीछे छोड़ने की हठ पर अड़ी हुई है तो दूसरी तरफ निहत्थे किसान, रैयत अपनी उपजाउ जमीन नहीं देने पर आमादा हैं। इस संघर्ष में अबतक पांच लोगों ने अपनी जानें गंवा दी है और सैकड़ों घायल लोग अपने बलबूते विभिन्न अस्पतालों में उपचार करा रहे हैं।सरकार की ओर से उन्हें कोई राहत नहीं दी गयी है।अब इस आंदोलन में एकता परिषद् के राजगोपाल कुद गए हैं। वे बड़कागांव के सवाल पर विपक्षी दलों की एकजूटता का स्वागत करते हुए कहते हैं कि इस आंदोलन में  देश के गांधीजनों सहित सामाजिक संगठनों को भी अपनी ताकत झोंकनी चाहिए क्योंकि बड़कागांव का सवाल देश के भावी विकास के स्वरूप को तय करेगा। साथ ही यह भी  तय होगा कि देश के संसाधन सभी लोगों के लिए हैं या केवल कारपोरेट कंपनियों के लिए।
जमीन छीनने के लिए सरकार का दमन जब हद पार कर गया तो किसान कफन ओढ़कर चिता सत्याग्रह के करने को विवश हो गए। गांधी जयंती की पूर्व संघ्या पर स्थानीय विधायक निर्मला देवी के नेतृत्व में चल रहा यह सत्याग्रह जब नहीं थमा तो सरकार ने इसे रोकने के लिए सभी नियमों और कानूनों को ताख पर रखकर अंधाघुंघ गोलियां बरसा कर स्वावलंवी किसानों को बड़कागांव छोड़ने पर मजबूर कर दिया है। अपनी जमीन बचाने के लिए किसानों द्वारा किए जा रहे चिता सत्याग्रह का जवाब लाठी गोली से दिया जा रहा है। महिलाओं और बच्चों को सरकार ने ऐसी बर्बर कार्रबाई की है कि अब उनके आंसू से चिता सत्याग्रह की आग बुझने की वजाय भभक उठा है। 19 अक्टूबर को बड़कागांव में हुई सर्वदलीय संकल्प सभा में राजनेताओं और समाजकर्मियों ने एकजूट होकर एक मंच पर जिस तरह से हुंकार भरी है उसकी घमक पूरे देश में महसूस की जा रही है। आनेवाले दिनों में प्रदेश के कोने- कोने में बड़कागांव गोलीकांड के खिलाफ लोग सरकार विरोधी नारे लगाते हुए सड़कों पर आने से नहीं रूकेंगे।संकल्प दिवस के एक दिन पहले विधायक निर्मला देवी को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया।
बड़कागांव में  संकल्प सभा में शामिल राष्ट्रीय नेताओं और समाजकर्मियों सहित राज्य के विपक्षी दल गोलबंद हुए। इसमें कांग्रेस,झाविमो, राजद, जदयू, माकपा, भाकपा सहित कई दलों के नेता शामिल थे तो दूसरी तरफ एकता परिषद् के संस्थापक और सुप्रसिद्ध गांधीवादी राजगोपाल पी0 व्ही 0  रण सिंह परमार, राष्ट्रीय स्वाभिमान आंदोलन के वासवराजा पाटिल हाजिर हुए। सभी नेताओं ने केंद्र और राज्य सरकार को जम कर कोसा। साथ ही केन्द्र और राज्य सरकारों के खिलाफ संघर्ष का आह्वान किया। 
पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी ने कहा कि कहा कि झारखंड में किसान जमीन नहीं देना चाहते हैंए लेकिन यह झारखंड सरकार जबरन जमीन छीन कर कंपनियों को जमीन दे रही है। इस गोलीकांड की न्यायिक जांच होनी चाहिए।
एकता परिषद के संस्थापक और सुप्रसिद्ध गांधीवादी राजगोपाल पी0 व्ही 0 ने कहा कि  नैतिकता के आधार पर मुख्य मंत्री रघुवर दास से  पद से इस्तीफा देने की मांग करते हुए कहा कि सरकार की हालत यह है कि उनके मंत्री भी छोड़कर जाने को तैयार हो रहे है। राजगोपाल ने कहा कि उनके एक मंत्री सरयू राय ने सही समय पर अपने पद से इस्तीफा देने की चेतावनी दी है। उन्होंने लोगों का आह्वान किया कि वे  ढांचागत सरकारी हिंसा का संगठित अहिंसक ताकत से करें मुकाबला। माले के पूर्व  विधायक विनोद सिंह ने कहा कि राज्य सरकार किसानों के तीन फसल जमीन का दाम  कॉरपोरेट घरानों के लिए कम कर रही है।  संकल्प सभा में पूर्व केन्दीय मंत्री सुवोधकांत सहाय, राजद के प्रदेश अध्यक्ष गौतम सागर राणा, सीपीआइ के केंद्रीय नेता अतुल कुमार अंजान पूर्व सांसद भुवनेश्वर प्रसाद मेहता, राजद के राष्ट्रीय सचिव जर्नादन  पासवान, भाकपा के राज्य  सचिव गोपीकांत बक्शी, समाजसेवी दयामनी बारला, दिल्ली के आप नेता पवन कुमार पांडेय, दिल्ली के  राष्ट्रीय परिषद के संयोजक पासवान राज पाटिल का जुटान हुआ।  
संकल्प सभा में हजारों लोगों ने हाथ उठाकर मंच से प्रस्तावित इन प्रस्तावों पर अपनी मंजूरी की मुहर लगायी। प्रस्तावों में मांग की गयी है कि बड़कागांव प्रखंड से पुलिस छावनी हटायी जाये। चिरूडीह गोलीकांड के आरोपी अधिकारी व पुलिस व एनटीपीसी के पदाधिकारियों पर हत्या का मामला दर्ज हो। ग्रामीणों पर झूठा मुकदमा वापस लिया जाये। रघुवर सरकार की दमनकारी नीति को रोका जाये। एनटीपीसी खनन कार्य रोका जाये और बड़कागांव  गोलीकांड के मृतक के परिजनों को झारखंड सरकार में नौकरी व 25 लाख मुआवजा दिया जाये।
पूर्व केंद्रीय मंत्री सुबोधकांत सहाय कहते हैं कि मुख्यमंत्री बड़कागांव में  एनटीपीसी खनन को लेकर जनता की मांगों को पूरा करने के लिए दस दिन का समय  दिया था। इसके बाद यहां गोलीकांड की घटना घटती है। इसकी जिम्मेवार सरकार है। किसानों के लाश पर रघुवर सरकार उद्योग लगाना  चाहती है।
बिजली घर के लिए खनन चतराए कोडरमा व हजारीबाग जिला के लगभग सत्रह हजार एकड़ जमीन को अधिग्रहित करने की मंजूरी भी सरकार से मिल गयीए जिसमें कि लगभग पच्चीस सौ एकड़ जमीन वन भूमि है। जिस जमीन का कोल खनन के लिए अधिग्रहण होना तय हुआ वह लगभग सारी जमीन बहुफसली है। किसानों के पास अपनी जमीन के अलावा जीविका का कोई भी साधन नहीं है। बड़कागांव गोलीकांड के पहले से ही  प्रभावित ग्रामीणों ने जन्म भूमि रक्षा समिति व कर्णपूरा बचाओ संघर्ष समिति बनाकर 2004 से ही शांतिपूर्ण आंदोलन शुरू कर दिया था। 
एनटीपीसी ने भी कर्णपूरा ;पकरी.बड़वाडीह, कोल परियोजना के तहत किसानों की जमीन को जबरन छीनने के लिए कमर कस ली।  कोल ब्लॉक आबंटन के समय एनटीपीसी ने अंडरटेकिंग दी थी कि उनके सब लीज में कोई दूसरी कम्पनी शामिल नहीं होगी। लेकिन बाद में आस्ट्रेलियन कम्पनी टीसमाइंस को कोल खनन का सब लीज दे दिया गया। जिसे सुप्रीम कोर्ट के दखल के बाद रद्द किया गया लेकिन बाद में गैरकानूनी तौर पर खनन कार्य का ठेका त्रिवेणी अर्थमूवर व त्रिवेणी सैनिक माइनिंग नाम की दो कम्पनियों को दे दिया गया।  जमीन अधिग्रहण के शुरूआत के साथ ही किसानों का आंदोलन लगातार जारी है। बड़कागांव विधानसभा के लगभग छत्तीस गांव इस अधिग्रहण से प्रभावित होंगे और लगभग तीन हजार परिवार अपने घर से बेदखल हो जाएंगे। 
 24 जुलाई 2013 के केरेडारी ब्लॉक के पगरा गांव में पुलिस फायरिंग में एक व्यक्ति की मौत और चार घायल हुए।  2015 में पुलिस फिर पुलिस फायरिंग हुई जिसमें कई लोग घायल हुए। इस साल  17 मई को बड़कागांव के चिरूडीहए सोनबरसाए सींदुआरीए चूरचूए डाड़ीकला आदि गांवों में खनन का विरोध करने पर पुलिस ने घरों में घुस कर  मारने.पीटने की बर्बर कार्रबाई को अंजाम दिया।  बच्चों बूढ़ों व गर्भवती महिलाओं को भी नहीं बख्शा।  
किसानों के आंदोलन के साथ-साथ अब तक लगभग 9 सौ एकड़ जमीन का अधिग्रहण हो चुका है। जिसमें की सही जमीन मालिकों तक ;जो भी मुआवजा दिया जा रहा हैद्ध कम ही मुआवजा पहुंच सका है। वहां का आलम ये है कि जमीन किसी कीए नोटिस किसी को ओर मुआवजा किसी को। पूरा लूट चल रहा है। लेकिन आंदोलनकारियों की मांग जस की तस है।  संविधान की धारा 39 बी भी स्पष्ट करता है कि किसी भी प्राकृतिक संसाधन पर वहां की ग्राम सभा का अधिकार है। यहां तक कि 8 जुलाई 2013 को जनरल अपील संख्या 4550ध्2000 की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने भी फैसला सुनाया है कि जमीन के नीचे जो भी खनिज हैए उसपर जमीन मालिक का अधिकार है। 
आंदोलनकारियों की पुरानी मांग को लेकर ही ‘बुद्धिजीवि मंच’ के बैनर तले निवर्तमान कांग्रेस विधायक निर्मला देवी 15 सितंबर से ‘कफन सत्याग्रह’ पर बैठी थी।  1 अक्टूबर को जब पूरा देश दुर्गा पूजा की खुशियों में सराबोर होने को तैयार थाए वहीं झारखंड के हजारीबाग जिले के बड़कागांव के डाड़ीकला, सोनबरसाए, कनकीडाड़ी, चीरूडीह, नगड़ी, सींदुआरी, चेपाखुर्द आदि गांवों में चूल्हे तक नहीं जले। मृतक अभिषेक राय ;17 सालद्ध एवं पवन साव ;16 सालद्ध सोनबरसा गांव के थे। रंजन कुमार ;17 सालद्ध सींदुआरी गांव के थे और मेहताब अंसारी ;30 सालद्ध चेपाखुर्द गांव के थे। जहां अभिषेक रायए पवन साव व रंजन कुमार छात्र थे और ट्यूशन पढ़ने जा रहे थे। वहीं मेहताब अंसारी दैनिक मजदूर थाए जो कि शौच करने जा रहा था। इनमें से कोई भी आंदोलन में शामिल नहीं था। इस बर्बर गोलीकांड के कारण पूरे इलाके में मातमी सन्नाटा है। 
लोगों को घर से निकाल.निकाल कर पीटा जाने लगा। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष समेत कई नेताओं को घटनास्थल पर जाने से रोक दिया गया। कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं व वाम दलों के नेताओं को जरूर जाने दिया गया ताकि आक्रोश ज्यादा ना बढ़े। पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन व बाबूलाल मरांडी को भी घटनास्थल पर धारा 144 का बहाना बनाकर जाने से रोक दिया गया। 
संकल्प सभा के एक दिन पूर्व एकता परिषद् के संस्थापक और सुप्रसिद्ध गांधीवादी राजगोपाल पी0व्ही0 राष्ट्रीय स्वाभिमान आंदोलन के बासवराजा पाटिल, पत्रकार प्रसून लतांत, एकता परिषद् के बीरेन्द्र, लक्ष्मी खलको के गोलीकांड के परिजनों के यहां मिलने गए तो पाया कि सोनबरसा गांव की सावित्री देवी का बुरा हाल है। आधार कार्ड में बेटे के फोटो को देखकर चूमती हैं और रोती हुई  कहती है कि '  बेटे का कोई कसूर नहीं,पर पुलिस ने छाती में गोली मार दी।'
एक अक्तूबर को झारखंड के बड़कागांव में पुलिस फायरिंग में मारे गए चार लोगों में उनका नाबालिग बेटा पवन साव भी शामिल है। इसी साल उसने दसवीं की परीक्षा पास की थी। सुबह में वह टयूशन पढ़ने डांडीकला गांव की तरफ गया था और पुलिस की गोलियों से मारा गया।
पीड़ित परिवारों का आरोप है कि पुलिस ने पकड़कर इन लोगों को गोलियां मार दी। पवन साहु के पिता मनरखन साव कोलकता में मज़दूरी करते हैं।
इसी गांव के पवन राय के बेटे अभिषेक भी इस घटना में मारे गए हैं। पवन राय सुबह में खलासी का काम करने निकले और छोटा बेटा अभिजीत टयूशन पढ़ने। गोलीबारी की ख़बर सुनकर अभिषेक अपने भाई की खबर लेने निकला। अभिजीत दूसरे रास्ते से तो घर लौट गयाए लेकिन अभिषेक ही मारा गया।
सोनबरसा के लोग बताते हैं कि पुलिस वालों ने जीना हराम कर दिया है। 
चेपाखुर्द गांव के तीस वर्षीय मेहताब अंसारी पुलिस फायरिंग में मारे गए हैं। उनके पिता मोजीम बूढ़े हो चले हैं, लिहाजा अब रिक्शा नहीं चलाते। मोजीम अंसारी बताने लगे कि मेहताब मज़दूरी कर जो कमाते थेए उसी से घर का खर्च निकलता था। वह शौच करने नाला तरफ गया थाA पुलिस ने पकड़ कर गोली मार दी। 
पांच सौ हिन्दू और मुसलिम परिवारों के इस गांव में लोगों के बीच एका है और इसबार यहां दुर्गा पूजा नहीं मनाया गया और न मुहर्रम के ताजिये उठे। 
ग्रामीण बताते हैं कि चारों तरफ ख़ौफ और दहशत है। जीना मुश्किल है। घर से बाहर नहीं निकल पा रहे। नेशनल थर्मल पावर कॉरपोरेशन की कोल परियोजनाओं के लिए सरकार दबाव देकर जमीन अधिग्रहित कर रही है और लोग देना नहीं चाहते। तीन साल में तीन बार गोलियां चली है। सैकड़ों लोगों के ख़िलाफ़ एफआइआर लिखी गई है।
घटना के बाद राज्य की मुख्य सचिव राजवाला वर्मा और पुलिस महानिदेशक डी0 के0 पांडेय हेलकॉप्टर से बड़कागांव आए थे, तो अधिकारियों से बातें कर वापस हो गएण् कल्याणकारी राज्य में किसी ग्रामीण का दुख दर्द नहीं जाना. सुना।
अब तो इस इलाके का एक ही नारा है' जान देंगे जमीन नहीं देंगे' ।किसानों का कहना है कि यहां की जमीन  चार फसली है।  एक एकड़ का जोतदार साल में लाखों कमाता है और पंद्रह लाख में ही उसकी ज़मीन ले ली जा रही हैं। खनन परियोजनाओं की वजह से चालीस गांवों का वजूद खतरे में है। 
पूरे देश में खनिजों के उत्खनन और जमीन पर कब्जे के लिए सरकार और कारपोरेट घरानों के गठजोड़ द्वारा आदिवासी बहुल क्षेत्रों में सारे कानूनों को ताक पर रखकर जमीनों पर कब्जा करने की कोशिश की जा रही है, उसी का विस्तारित रूप झारखंड के हजारीबाग जिला के बड़कागांव का क्षेत्र है।

आलोक कुमार
मखदुमपुर मखदुमपुर बगीचा, दीघा घाट,पटना।

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