Saturday 3 December 2016

कैंसर से पीड़ित डोरिस फ्रांसिस को प्रधानमंत्री राहत कोष से तीन लाख मिला

प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष

पाकिस्तान से विस्थापित लोगों की मदद करने के लिए जनवरी, 1948 में तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की अपील पर जनता के अंशदान से प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष की स्थापना की गई थी। प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष की धनराशि का इस्तेमाल अब प्रमुखतया बाढ़, चक्रवात और भूकंप आदि जैसी प्राकृतिक आपदाओं में मारे गए लोगों के परिजनों तथा बड़ी दुर्घटनाओं एवं दंगों के पीड़ितों को तत्काल राहत पहुंचाने के लिए किया जाता है। इसके अलावा, हृदय शल्य-चिकित्सा, गुर्दा प्रत्यारोपण, कैंसर और एसिड हमलों आदि के उपचार के लिए भी इस कोष से सहायता दी जाती है। यह कोष केवल जनता के अंशदान से बना है और इसे कोई भी बजटीय सहायता नहीं मिलती है। समग्र निधि का सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में विभिन्न रूपों में निवेश किया जाता है। कोष से धनराशि प्रधान मंत्री के अनुमोदन से वितरित की जाती है। प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष का गठन संसद द्वारा नहीं किया गया है। इस कोष की निधि को आयकर अधिनियम के तहत एक ट्रस्ट के रूप में माना जाता है और इसका प्रबंधन प्रधानमंत्री अथवा विविध नामित अधिकारियों द्वारा राष्ट्रीय प्रयोजनों के लिए किया जाता है। प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष का संचालन प्रधान मंत्री कार्यालय, साउथ ब्लॉक, नई दिल्ली 110011 से किया जाता है। इसके लिए कोई लाइसेंस फीस नहीं दी जाती है। प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष को आयकर अधिनियम 1961 की धारा 10 और 139 के तहत आयकर रिटर्न भरने से छूट प्राप्त है। प्रधानमंत्री, प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष के अध्यक्ष हैं और अधिकारी/कर्मचारी अवैतनिक आधार पर इसके संचालन में उनकी सहायता करते हैं। प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष में किए गए अंशदान को आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 80 (छ) के तहत कर योग्य आय से पूरी तरह छूट हेतु अधिसूचित किया जाता है। प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष का स्थाई खाता संख्या (पैन नं.) ।।।।AACTP 4637Q gSA  है।

एनएच-24 स्थित अति व्यस्तम खोड़ा कट पर बीते सात सालों से लगातार निरूस्वार्थ भाव से ट्रैफिक कंट्रोल करने वाली महिला डोरिस फ्रांसिस आज कैंसर से जिंदगी की जंग लड़ रही हैं। दिल्ली के एम्स अस्पताल में भर्ती डोरिस ने मुश्किल वक्त में भी जिस ट्रैफिक पुलिस की मदद की, उस पुलिस ने बीमार डोरिस की सुध लेना मुनासिब नहीं समझा। ट्रैफिक पुलिस की इस बेरुखी से डोरिस का परिवार आहत है।

सारकोमा पीड़ितों के लिए एम्स बन रहा है मददगार

इलाज के लिए डोरिस की दोनों बेटियों मोनिका और डोली ने सालभर पूर्व जो अपने लिए बाइक खरीदी थी वह भी उन्होंने 20 हजार रुपए में बेच दी है। इसके बाद भी इलाज के लिए आर्थिक तंगी से जूझ रहा डोरिस का परिवार अपने मकान को गिरवी रखने के लिए तैयार है। डोरिस के पति विक्टर फ्रांसिस का कहना है कि जो ट्रैफिक पुलिसकर्मी उन्हें मुश्किल वक्त में खोड़ा कट पर ट्रैफिक की जिम्मेदारी संभालने के लिए फोन किया करते थे उनके फोन पर अब कॉल करने के बाद भी जवाब नहीं मिल रहा है। उनका कहना है कि वे कई बार कई पुलिसकर्मियों की नौकरी बचा चुके हैं।  

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दिवाली से पूर्व उठा था पेट में दर्द

मोतियाबिंद और शुगर की बीमारी से पीड़ित डोरिस के पति विक्टर फ्रांसिस का कहना है कि दिवाली से पूर्व डोरिस के पेट में दर्द उठा था, जिसके बाद उन्हें एम्स अस्पताल में भर्ती कराया गया। वहां डॉक्टरों ने एमआरआई, अल्ट्रासाउंड, ब्लड टेस्ट और एक्स-रे कर डोरिस को कैंसर से ग्रसित होने की जानकारी दी। उनका कहना है कि एम्स में भर्ती होने के बाद भी उन्हें कई टेस्ट और दवाइयां बाहर से खरीदनी पड़ रही हैं। इलाज में उनके अब तक करीब 40 हजार रुपए खर्च हो चुके हैं। 

अखिलेश ने सम्मान में दिया सिर्फ शॉल

डोरिस के पति का कहना है कि ट्रैफिक पुलिस की मदद करने के लिए प्रदेश के सीएम अखिलेश यादव ने उन्हें 15 नवम्बर, 2015 को लखनऊ बुलाकर सम्मानित किया था। सम्मान के नाम पर सीएम ने डोरिस को मात्र एक शॉल भेंट किया। शासन द्वारा उन्हें मदद करने का भी आश्वासन दिया गया था, लेकिन इसके बाद शासन प्रशासन ने उनकी कोई खैर-खबर नहीं ली।

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ऑटो चालक बेटे पर परिवार का बोझ

विक्टर की मानें तो उनकी दोनों बेटियां मोनिका और डोली एक सिक्योरिटी कंपनी में जॉब करती थीं। दोनों ने अपनी जॉब छोड़ दी। बंटी नाम का उनका इकलौता बेटा है, जो ऑटो चालक है। बंटी की कमाई से ही उनके परिवार का खर्च बमुश्किल चलता है। डोरिस के इलाज के लिए उन्होंने अपने मकान को गिरवी रखकर पांच प्रतिशत ब्याज की दर से रकम लेने का फैसला कर लिया है। इसके लिए वे सूदखोरों से भी संपर्क साध रहे हैं। 

मीडिया के माध्यम से मदद की गुहार

पीड़ित परिवार ने मीडिया के माध्यम से सीएम और ट्रैफिक पुलिस से मदद की गुहार लगाई है। विक्टर का कहना है कि उन्होंने जमाने को अपना जीवन दिया और बदले में जमाने से उन्हें रुसवाई मिली। उनका कहना है कि कुछ लोग मदद करने के लिए उन्हें कॉल तो कर रहे हैं, लेकिन कोई भी मददगार उनसे आकर नहीं मिला। वे चाहते हैं कि सरकार या फिर पुलिस विभाग उनकी मुश्किल घड़ी में उनके काम आए। 

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