Monday 27 February 2017

वर्ष 2017 पवित्र बाइबिल का वर्ष घोषित


‘जिस तरह पानी और बर्फ आकाश से उतर कर भूमि सींचे बिना, उसे उपजाऊ बनाये और हरियाली से ढके बिना वहाँ नहीं लौटते, जिससे भूमि बीज बोने वाले को बीज और खाने वाले को अनाज दे सके, उसी तरह मेरी वाणी मेरे मुख से निकल कर व्यर्थ ही मेरे पास नहीं लौटती। मैं जो चाहता हँू, वह उसे कर देती है और मेरा उद्देश्य पूरा करने के बाद ही मेरे पास लौट आती है।’ (इसायस, 55ः11-12)
ख्रीस्त में प्रिय भाइयों और बहनों,

मैं अपनी हार्दिक अभिलाषा के साथ इस पत्र को शुरूआत करता हूँ कि यह वर्ष आम सभों के लिए ईश्वर की आशिष -शांति स्वस्थ जीवन, सम्पन्तता एवं कृपा से परिपूर्ण हो। अपार हर्ष के साथ मैं वर्ष 2017 को ‘ पवित्र बाइबिल का वर्ष’ घोषित कर रहा हूँ। पवित्र धर्मग्रंथ के प्रति अपनी गहरी श्रद्धा एवं प्रेम के साथ मैं यह घोषणा कर रहा हूँ। जैसा कि संत जेरोम का कहना है कि ‘धर्मग्रंथ की अज्ञानता ख्रीस्त के विषय में अज्ञानता है।’ कैथोलिक कलीसिया के जीवन में पवित्र धर्मग्रंथ एक अति महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

पवित्र धर्मग्रंथ जीवन-दायिनी रक्त है एवं ईश्वर का प्रकाशना। इसके द्वारा ईश्वर स्वयं अपने मुक्तिकारी योजना में पहले नबियों के द्वारा और फिर स्वयं अपने पुत्र येसु ख्रीस्त के द्वारा अपने को प्रकाशित करते एवं दर्शाते हैं। पुराने व्यवस्थान में वे नबियों के माध्यम से हमपर अपने को प्रकाशित करते थे और समय पूरा होने पर उन्होंने अपने पुत्र और हमारे येसु ख्रीस्त के द्वारा अपने को प्रकाशित किया है ( इब्र,1ः1) ईश्वर की योजना में पवित्र धर्मग्रंथ ईश्वर की वाणी है, जो पवित्र आत्मा की प्रेरणा द्वारा लिखे गए हैं।

ईश्वरीय प्रकाशन से संबंधित द्वितीय वाटिकन महासभा का प्रपत्र( देई भर्बम) हमें ईश्वर की वाणी की शक्ति के विषय में सिखाता है। ‘ और ईश्वर की वाणी में ऐसी ताकत एवं शक्ति है कि वह कलीसिया की सहायिका एवं नवजीवन के रूप में कार्य करती है, और कलीसिया के बच्चों के लिए वह उनके विश्वास की शक्ति का भोजन तथा आध्यात्मिक जीवन के लिए निर्मल एवं अनन्त जीवन के जल का सोता बन जाती है’ (देई भर्बम 21) वह विश्वासियों का एक ही मेज। वेदी पर से ईश्वर की वाणी और ख्रीस्त का शरीर ग्रहण करने के लिए निमंत्रित करती है। कहने की आवश्यकता नहीं है कि कलीसिया को सभी शिक्षाएं , पवित्र धर्मग्रंथ से सम्पूष्ट एवं संचालित है। पवित्र कलीसिया एक सच्ची माता के रूप में अपने बच्चों के लिए अर्थात सभी ख्रीस्तियों के लिए धर्मग्रंथ प्राप्त करने के मार्ग बताती है। (देह भर्बम 22), ताकि धर्मग्रंथ की मुक्तिकारी संदेश से उनका जीवन अनुप्राणित हो सके। यह समय की माँग है, तथा अनन्त कालीन कार्य है, जो धर्मग्रंथ को ईश्वर की प्रजा के निकट ले आता है। कलीसिया जोर देकर और विशेष से सभी विश्वासियों का आहवान करती है कि धर्मग्रंथ का पाठ बार-बार करके ईश्वर की पवित्र योजना तथा येसु ख्रीस्त के विषय में महान ज्ञान प्राप्त करें। ‘ इसीलिए, पवित्र ईशशास्तीय अध्ययन की आत्मा पवित्र वचन का अध्ययन होना चाहिए। पवित्र वचन की सेवा भी प्रवचन , हर प्रकार की धर्म शिक्षा, ख्रीस्तीय शिक्षा आदि में पवित्र वचन को प्रमुख स्थान दिया जाना चाहिए- इससे पवित्र धर्मग्रंथ के द्वारा कलीसिया अपनी पवित्रता एवं संपूर्णता में विकसित हो सकेगी। ( देई भर्बम 24)।
पत्रित्र बाइबिल में संस्थापित ईश्वर के वचन हमारे पैरों के लिए दीपक एवं हमारे मार्ग के लिए ज्योति है (स्तोत्र 119)।यह मानव जीवन की हर परिस्थिति के संबंध में बात करता है तथा ईश्वर की इच्छा प्रकट करता है। ईश्वर की इच्छा बाइबिल के पुष्ठों में हैं। हम इससे प्रेरणा ,मार्गदर्शन और सहायता प्राप्त कर सकते हैं जो हमें ईश्वर के साथ, एक दूसरे के साथ तथा स्वयं के साथ अच्छे संबंध बनाकर इस दुनिया में जीने में हमारी सहायता कर सकता है। बाइबिल , ईश्वर का वचन है जो, मार्ग,सत्य,जीवन और मार्गदर्शक तथा प्रेरणा स्त्रोत है। जीवन की कठिनाइयों में यह हमें प्रोत्साहन प्रदान करता है, कमजोरी में हमें शक्ति प्रदान करता है, निराशा में हमें आशा देता है, शोक में हमसे खुशी का संचार करता है, तथा अशांत जीवन में हमें शांति से भर देता है। हमारे गुरू कहते हैं, ‘थके माँदे और बोझ से दबे हुए लोगों, तुम सब-के -सब मेरे पास आओ मैं तुम्हें विश्राम दूँगा’ ( मत्ती 11,28)े।

विश्वासियों के जीवन में बाइबिलः महाधर्माध्यक्ष के रूप में ईश्वर के वचन के पालक की अपनी जिम्मेदारी को समझते हुए मैं, इस धर्माध्यक्षीय पत्र को आप सबों के समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूँ जो हमारे ख्रीस्तीय जीवन में बाइबिल की महत्ता एवं पूरे महाधर्मप्रांत में विश्वासियों द्वारा बाइबिल अध्ययन एवं सहभागिता पर अधिक जोर देता है। मैं आप सभों के जीवन में बाइबिल की महत्ता एवं उपयोगिता को समझने एवं उससे आनन्दित होने के लिए आमंत्रित करता हूँ। पवित्र धर्मग्रंथ में प्राप्त ईश्वर की वाणी को बार-बार पढ़ना एक बहुत अच्छा माध्यम है। मैं श्री ए.वी.जोस जो हाल में ‘ख्रीस्त के लिए दम्पति’ के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे हैं, को महाधर्मप्रांत में बाइबिल मिशन कार्य कोे बढ़ावा देने के लिए नियुक्त करता हूँ। मैं सभी पल्ली पुरोहितों से अनुरोध करता हूँ कि आप श्री जोस को अपने-अपने पल्लियों में निमंत्रित करें तथा बाइबिल मिशन कार्य शुरू करें।
आज बाइबिल पर आधारित आध्यात्मिकता की सख्त जरूरत है। बाइबिल का पाठ एवं उसपर मनन-चिंतन न सिर्फ, ईश्वर के साथ घनिष्ठता स्थापित करने तथा उनके सत्य के प्रति गंभीर रूप से समर्पित होने में बल्कि एक दूसरे के साथ संबंध स्थापित करने में भी हमारी सहायता करते हैं। इससे संसार की घटनाओं की गहरी प्रतिभूति हमें होती है तथा मनुष्य के जीवन के हर पहलू तथा इतिहास एवं वर्तमान की विशेष परिस्थितियों से हम अवगत हो सकते हैं। पवित्र बाइबिल वास्तव में ‘ मार्ग सत्य एवं जीवन की सच्चाई की खोज’ में मानव का साथी है।

इतना ही नहीं, पवित्र धर्मग्रंथ आध्यात्मिक स्फूर्ति,शक्ति एवं सांत्वना का स्त्रोत भी है। ‘ धर्मग्रंथ में जो कुछ पहले लिखा गया था, वह हमारी शिक्षा के लिए लिखा गया था, जिसमें हमें उससे धैर्य, तथा सांत्वना मिलती रहे और इस प्रकार हम अपनी आशा बनाये रख सके’( रोमियो 15ः4)। और जैसा कि संत जेरोम ने कहा है, ‘यदि इस जीवन में कुछ है जो एक बुद्धिमान व्यक्ति को दृढ़ बनाये रखता है, तथा दुनिया की झंझावातों एवं दुख तकलीफों एवं समस्याओं   के बीच  भी शांत एवं धैर्यवान बनाये रखता है तो मेरे ख्याल से सबसे प्रथम स्थान पर धर्मग्रंथ का ज्ञान एवं उसपर मनन-चिंतन है’।

बाइबिल को प्राथमिकता एवं प्रयोग पर जोरः ख्रीस्तीय जीवन में धर्मग्रंथ की महत्वपूर्ण भूमिका को ध्यान में रखते हुए मैं विनम्रता पूर्वक आप सभों का ध्यान इन कुछ बिन्दुओं की तरफ आकृष्ट करना चाहता हूँ जिससे एक ख्रीस्तीय के रूप में हम सभी प्रभु के ज्ञान एवं कृपा में अधिकाधिक मानव के रूप  विकसित हो सकें, तथा एक दूसरे के साथ भाईचारा के संबंध विकसित कर सकें। मैं इन बिन्दुओं पर आपका ध्यान इसीलिए आकृष्ट कर रहा हूँ ताकि आप सभी विश्वासीगण बाइबिल को जीवन का आधार बनाकर इससे विकास एवं मार्गदर्शन प्राप्त करें। इस उद्देश्य से मैं सभी विश्वासियों का ध्यान इस बिन्दुओं की तरफ लाना चाहता हूँ।

पवित्र ख्रीस्तयागः पवित्र ख्रीस्तयाग कलीसिया के जीवन का चरम बिन्दु एवं स्त्रोत है। ईश्वर की प्रजा को ख्रीस्तयाग में भाग लेते समय ईश्वर की वाणी पर आधारित अमूल्य जीवन का अनुभव कराना चाहिए। जैसे कि द्वितीय वाटिकन सभा कहता है, ‘ ख्रीस्तयाग समारोह में पवित्र धर्मग्रंथ सर्वाधिक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है.... पवित्र ख्रीस्तयाग की पुर्नस्थपना, विकास एवं अनुकूल बनाने के लिए यह अति आवश्यक है कि पवित्र धर्मग्रंथों के प्रति प्रेम और श्रद्धा को प्रज्वलित किया जाये जिसे पूर्वी और पश्चिमी धर्म रीतियों के द्वारा साक्षी दी जाती रही है... ( एस सी 25) ख्रीस्तयाग के समय पढ़े जाने वाले प्रभु के वचन के प्रति सावधानी एवं भक्ति की जरूरत है। ख्रीस्तयाग के समय ईश्वर की वाणी के बदले अर्थात बाइबिल के पाठ के बदले किसी अन्य धर्म के धर्मग्रंथ के चुने हुए पाठ के अंश, अथवा किसी पुरूष या महिला के द्वारा लिखित पुस्तक के अंश पढ़े जाने का विरोध करता हूँ चाहे वह आधुनिक लेखकों की पुस्तक के अंश हों, अथवा गैर ईसाइयों के ग्रंथ हों या फिर किसी धर्म समाज के संस्थापक के द्वारा लिखित ग्रंथ हो। ईश्वर के वचन के पाठकों की पूरी तैयारी के साथ पढ़ना चाहिए।
पुरोहित,धर्मसंघी,उम्मीदवारः पुरोहित , धर्मसंघीगण एवं प्रशिक्षण में लगे उम्मीदवार को धर्मग्रंथ के ज्ञान के लिए विशेष रूचि लेनी चाहिए। जैसा कि हम ‘ परफेक्ते कारीतातिस’ में पढ़ते हैं‘ प्रथम स्थान पर उन सभी को पवित्र धर्मग्रंथ का प्रतिदिन अध्ययन करना चाहिए, ताकि पवित्र वचन का पाठ करने और उसपर मनन-चिंतन करने से वे ‘येसु ख्रीस्त’ की महत्ती प्रजा एवं ज्ञान को प्राप्त कर सकेंगे। ( पी सी 6) प्रशिक्षकों को चाहिए कि वे अपने अधीन प्रशिक्षित उम्मीदवारों को बाइबिल पर केन्द्रीत विश्वास के अनुभव प्रदान करें और सेवा कार्यों के द्वारा बाइबिल के संदेश को विभिन्न रूपों में जी सकें।

धर्मप्रचारक ( कैटेकिस्ट) और लोकधर्मी नेताः धर्मप्रचारक तथा लोकधर्मी नेतागण कलीसिया के धर्मप्रचार के कार्यों में बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ख्रीस्तीय समुदायों के अनुप्राणदाता के रूप में उन सभों को धर्मग्रंथ की उचित एवं संपूरक शिक्षा मिलनी चाहिए। उन्हें बाइबिल को अपनी आध्यात्मिकता का श्रोत एवं प्रार्थना के जीवन का केन्द्र बनाना चाहिए। ‘ पूरा धर्मग्रंथ ईश्वर की प्रेरणा से लिखा गया है। वह शिक्षा देने के लिए, भ्रांत धारणाओं का खंडन करने के लिए,जीवन के सुधार के लिए सदाचरण का प्रशिक्षण देने के लिए उपयोगी है,जिससे ईश्वर भक्त सुयोग्य और हर प्रकार के सत्कार्य के लिए उपयुक्त बन जाये। ‘ ( 2 तिमयी3ः16-16)
परिवारः  हम सभी इस बात से वाकिफ है कि हमारे परिवार कितने बड़े एवं विकट परिवर्तनों के दौर से गुजर रहे हैं जिनका प्रभाव हमारे समाज एवं संस्कृति पर सामान्य रूप से पड़ रहा है। मैं अपने सारे ख्रीस्तीय परिवारों को आमंत्रित करता हूँ कि वे ईश्वर के वचन से अर्थात बाइबिल से अपने को परिपूष्ट करें और वर्तमान जीवन की जरूरतों एवं समस्याओं एवं चुनौतियों का सामना कर सकें। बाइबिल को हर घर में अलतार पर सजाकर रखा जाए और इसके पाठ एवं मनन-चिंतन से पूरा परिवार प्रेरणा एवं शक्ति प्राप्त करें। समय-समय पर पूरा परिवार एक साथ इसका सामूहिक पाठ करें तथा इसपर मनन-चिंतन एवं विचारों का आदान-प्रदान करें। परिवारों में तथा परिवारों के इर्दगिर्द बाइबिल का संदेश प्रतिघ्वनित होना चाहिए। ख्रीस्तीय धर्म की नींव एवं बुनियाद पवित्र बाइबिल ही है। 

विघालय एवं युवाजनः मैं अपने युवाजन में कलीसिया के निर्माण अर्थाथ ख्रीस्त के शरीर के निर्माण की अपार क्षमता पाता हूँ। यदि हम उनके सत्य की खोज में पयार्प्त सहायता एवं संतुष्टि प्रदान करें तो ईश्वर के राज्य के प्रसार-प्रचार में हम उनसे काफी महत्वपूर्ण अपेक्षा कर सकते हैं। इस लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए मैं सभी कैथोलिक विघालयों एवं कॉलेजों से अनुरोध करता हूँ कि हमारो नवयुवकों के लिए बाइबिल पर आधारित , प्रशिक्षण की व्यवस्था सुनिश्चित करें ताकि वे सही मार्ग एवं दर्शन प्राप्त करें तथा जीवन में मानवीय एवं दैवी मूल्य प्राप्त कर सकें जो हमें ईश्वर के वचन से ही प्राप्त हो सकता है। 

लघु ख्रीस्तीय समुदायः लघु ख्रीस्तीय समुदाय का आंदोलन इस बात का स्पष्ट प्रमाण है कि आज कलीसिया में पवित्र आत्मा क्रियाशील है। हमारा विश्वास है कि पल्लियों एवं समुदायों की आध्यात्मिकता उन्नति एवं नवीकरण के क्षेत्र में ये मध्य भूमिका निभाएंगे। इस बात पर ध्यान दिया जाना चाहिए कि समुदाय में पाठ एवं मनन-चिंतन के लिए ईश्वर के वचन का चुनाव सही हो एवं उसकी तैयारी उचित हो, तथा ईश्वर के वचन के प्रयोग के लिए विशेष प्रशिक्षण की व्यवस्था की जाए। 
भाइयों और बहनों , मैं आप सभों से आग्रह करता हूँ कि इस बाइबिल वर्ष को कृपा का वर्ष बनाएं। मैं कुछ सुझाव प्रस्तुत कर रहा हूँः

1. ‘महाधर्मप्रांतीय बाइबिल समिति’ पूरे महाधर्मप्रांत के लिए कुछ कार्यक्रमों को सुनिश्चित करेगी।
2. प्रत्येक परिवार में एक बाइबिल होनी चाहिए जिसे घर के अलतार पर सजा कर रखा जाना चाहिए। परिवार के सदस्यों को एक साथ बाइबिल का अध्ययन करना तथा उसपर मनन-चिंतन करना चाहिए।
3. प्रत्येक परिवार के पास ‘ प्रकाश हो जाए’ मिस्सा के पाठों का संकलन रखा जा सकता है।
4. हमारे छात्रावासों में बाइबिल पाठ की प्रथा प्रारम्भ करनी चाहिए।
5. आप अपने स्मार्टफोन में कुछ एैप्स लगा सकते हैं जैसे- बाइबिल डायरी ( क्लेरेशियन प्रकाशन की बाइबिल डायरी) अथवा ‘ लेकटियो डिविना’ (मिस्सा के पाठ, पवित्र घंटा और प्रतिदिन के संत)।
6. हमारी पल्लियों में , गांवों में, विघालयों में तथा समुदायों में बाइबिल अध्ययन दल का निर्माण किया जाना चाहिए।
7. बाइबिल क्विज का आयोजन किया जा सकता है, जो पुराने व्यवस्थान,नये व्यवस्थान,सुसमाचार अथवा पत्रों पर आधारित हो सकते हैं। बाइबिल क्विज की पुस्तकें ज्योति भवन मोकामा, मोकामा पल्ली तथा प्रकाश प्रकाशन पटना में उपलब्ध हैं।
8. महाधर्मप्रांत के द्वारा बाइबिल महोत्सव का आयोजन किया जाएगा, परन्तु इसके चलते पल्ली स्तर पर तथा डिनरी स्तर पर इसकी तैयारी करनी जरूरी होगी।
9. बाइबिल के विषयों पर आधारित प्रार्थना सभा, मौन-चिंतन दिवस, मौन साधना, रेकोलेशन्स और रिट्रिट आदि का आयोजन किया जाना चाहिए।
10. बाइबिल पर आधारित पोस्टर बनाना, नृत्यनाटिका,बाइबिल के अंश को स्मरण करके बोलना,बाइबिल पर आधारित विडियों दिखाना आदि पल्ली स्तर कुछ क्रिया-कलाप किये जाने चाहिए।
इस प्रकार सभी ख्रीस्तीय इस बात के लिए निमंत्रित है कि पवित्र धर्मग्रंथ के माध्यम से जो ईश्वर का वचन है तथा येसु ख्रीस्त का महान सुसमाचार है, और स्वयं ईश्वर का प्रतिरूप है, कि गहन खोजबीन करें।( 2 कुरिन्थियों का पत्र 4,4)। मेरी यही प्रार्थना है कि हम सभी बाइबिल अर्थात ईश्वर के वचन का पाठ करें, समझे तथा मनन-चिंतन करें। ईश्वर आप सभों को आशीष प्रदान करें और आप सभों को अपनी प्रजा एव ज्ञान से भर दें। आइये हम विनम्रतापूर्वक अपने को पवित्र कुमारी माँ मरियम को सुपुर्द कर दें, जिन्होंने ईश्वर के वचन को अपनी कोख में संभाला,जिन्होंने ईश्वर के वचन पर मनन-चिंतन किया। वही ‘ प्रज्ञा का सिंहासन’ हैं और कलीसिया की माता तथा आदर्श हैं, जिन्होंने हम सभों से अधिक कृपा एवं आशीर्वाद प्राप्त किया, जो‘ईश्वर का वचन सुनते और उसका पालन करते हैं’ (लू. 11.28)

विलियम डिसूजा , ये.स.
पटना के महाधर्माध्यक्ष

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