उच्चस्तरीय बैठक 4 मार्च को
पटना। वक्त परिवर्तनशील है। इसके आलोक में किया जाता है मुद्धों का
बदलाव। इसमें पीछे नहीं है एक्शन ऐड।
अब उसने असंगठित क्षेत्र के कामगारों की
करने लगे हैं चिन्ता। असंगठित क्षेत्र के कामगारों को
सामाजिक सुरक्षा हक मिले। इसके
लिए व्यापक अभियान छेड़ने का फैसला किया
है। इस क्रम में
उच्चस्तरीय बैठक 4 मार्च को बुलायी गयी
है।
बिहार चैम्बर ऑफ कॉमर्स हॉल
में विमर्श के दौरान आगामी
बजट सत्र में असंगठित क्षेत्र में कार्यरत मजदूरों के लिए सामाजिक
सुरक्षा हेतु मांग-पत्र
यह
अभियान स्वीकार करता है कि वर्तमान
राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन व्यापक रूप से सामाजिक सुरक्षा
का अधिकार सारे असंगठित क्षेत्र में कार्यरत मजदूरों के लिए आवश्यक
है इसलिए सरकार ने कई तरह
की योजनाओं की शुरूआत की
है। प्रथम राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के दौरान द्वितीय
श्रम आयोग -2002 का गठन हुआ
और उसने भी प्रत्येक श्रेणी
के मजदूरों के लिए सामाजिक
सुरक्षा प्रदान करने हेतु एकल खिड़की व्यवस्था की बात की।
हम इस बात
पर जोर देना चाहते हैं कि सामाजिक सुरक्षा
एक अधिकार है और इसके
नियम न्यायोचित हो। इस सरकार से
यह अपील करते है कि आने
वाले बजट सत्र में असंगठित मजदूरों के सामाजिक सुरक्षा
हेतु पर्याप्त मात्रा में राशि स्वीकृत की जाए जो
सरकार द्वारा पूर्ण रूप से देय हो
व उसमें मजदूरों की किसी भी
प्रकार की वित्तीय भागीदारी
न हो तथा इसे
सार्वभौमिक ( वहिष्कृत की शर्त के
साथ) रूप से लागू किया
जाए साथ ही वेतन से
वंचित महिला मजदूरों को जिन्हें सामाजिक
सुरक्षा नहीं मिलती है उन्हें भी
इससे जोड़ा जाए।
यह अभियान यह
सोच रखता है कि सरकार
या किसी व्यक्ति की वित्तीय भागीदारी
से जुड़ी सामाजिक सुरक्षा एक अतिरिक्त सामाजिक
सुरक्षा राशि के रूप में
मिलनी चाहिए तथा इसका आधारभूत सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रम के साथ कोई
संबंध नहीं होना चाहिए।
यह अभियान यह
मांग करता है कि सामाजिक
सुरक्षा कार्यक्रम की विशेषताएं होनी
चाहिए-
1. वृद्धावस्था
पेंशन सुरक्षा- सार्वभौमिक रूप से पेंशन की
राशि राष्ट्रीय न्यूनतम मजदूरी की दर के
आधी से कम से
कम नहीं होनी चाहिए। यह पेंशन महिलाओं
को 50 वर्ष एवं पुरूषों को 55 वर्ष से मिलना निर्धारित
होना चाहिए साथ ही यह उन
सभी वृद्ध महिलाओं एवं पुरूषों , विधवाओं और विकलांगों को
मिलनी चाहिए जो संगठित क्षेत्र
के सामाजिक सुरक्षा के दायरे में
नहीं आते हैं। इसमें कुछ सामाजिक और पेशागत वर्ग
से जुड़े हाशिये पर खड़े मजदूरों
को विशेष छूट मिलनी चाहिए।
2. स्वास्थ्य
एवं मातृत्व लाभ- सरकार द्वारा जन स्वास्थ्य व्यवस्था
के माध्यम से समस्त मजदूरों
को स्वास्थ्य जांच, परीक्षण एवं चिकित्सा की निःशुल्क सुविधा
सार्वभौमिक रूप से उपलब्ध होनी
चाहिए। गर्भवती माताओं को मातृत्व लाभ
के रूप में 9 माह ( तीन माह प्रसव से पूर्व एवं
छह माह प्रसव के बाद ) तक
के श्रम की राशि देय
हो जो न्यूनतम मजदूरी
की दर से आधी
से कम न हो।
3. जीवन
सुरक्षा एवं विकलांगता- ये निर्माण मजदूर
कल्याण बोर्ड के तर्ज पे
होना चाहिए। असंगठित मजदूर की सामान्य मृत्यु
पर उसके परिजनों को एक लाख
रूपए एवं दुर्घटना में मृत्यु होने पर दो लाख
रूपए की राशि सार्वभौमिक
रूप से देय हो।
इसके अलावे हम सरकार से
अपील करते हैं कि सामाजिक सुरक्षा
कार्यक्रम के क्रियान्वयन के
लिए कदम उठाएं जाये-
1. छह
माह के भीतर प्रत्येक
असंगठित मजदूर को उसके स्वयं
की घोषण पर एक श्रमिक
पहचान पत्र जारी किया जाए जिससे वो अपने पहचान
के अधिकार के साथ सामाजिक
सुरक्षा भी प्राप्त कर
सके। यह पंजीकरण बॉयोमीट्रिकस
एवं हाल में मौजूद जैसे आधार कार्ड व युविन से
अलग होना चाहिए। श्रमिक पहचान पत्र बनाने का खर्च सरकारी
बजट से देय हो।
2. समाजिक
सुरक्षा के क्रियान्वयन हेतु
अलग से एक मंत्रालय
गठित हो और इस
कार्यक्रम के लिए जितनी
भी आवश्यक राशि है वो सीधे
असंगठित मजदूरों के सामाजिक सुरक्षा
फंड से जमा हो।
3. असंगठित
मजदूर सामाजिक सुरक्षा अधिनियम 2008 में संशोधन हो और वो
योजना आधारित न होकर सार्वभौमिक
रूप से अधिकारों पर
आधारित होना चाहिए साथ ही इसमें पोर्टबिलिटी
सुनिश्चित हो।
4. छह
माह के भीतर राज्य
एवं राष्ट्रीय स्तर पर अनिवार्य
रूप से सामाजिक सुरक्षा
बोर्ड का गठन कानून
के अन्तर्गत हो जिसमें सलाहकारी
अधिकार के साथ निर्देशीय
अधिकार भी निहित हो
साथ ही मजदूर सुविधा
केन्द्र की व्यवस्था का
प्रावधान भी कानून में
हो।
अन्ततः हम मांग करते
हैं कि मनरेगा और
खाघ सुरक्षा अधिनियम के क्रियान्व्यन के
लिए सरकार उचित वित्तीय एवं प्रशासनिक सहायता बनाये जिससे स्वस्थ एवं उत्पादक समाज का निर्माण हो
तथा ग्रामीण क्षेत्र में उत्पादन संपति को भी बढ़ावा
मिले।
आलोक कुमार
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