Thursday 17 February 2022

पुरोहिताई जीवन के चार स्तंभों पर ध्यान केंद्रित किया है संत पापा ने

पटना. प्रजातंत्र की सफलता में चार स्तंभ है.इसमें तीन मुख्य अंग है कार्यपालिका विधायिका और न्यायपालिका. प्रजातंत्र की सार्थकता एवं दृढ़ता को ध्यान में रखते हुए और जनता के प्रहरी होने की भूमिका को देखते हुए मीडिया (दृश्य, श्रव्य और मुद्रित) को प्रजातंत्र के चैथे स्तंभ के रूप में देखा जाता है. इसी तर्ज पर संत पापा ने कहा आज पुरोहिताई जीवन के चार स्तंभों पर ध्यान केंद्रित किया है.

उन्होंने कहा कि सभी बुलाहटों की तरह पुरोहितीय बुलाहट भी भरोसेमंद आत्मपरख की मांग करता है जिसमें दृढ़ता हो कि ईश्वर हमें कहाँ ले जा रहे हैं. हमारे युग के कई सवालों एवं परीक्षाओं का सामना करते हुए वे उस पर ध्यान आकृष्ट करना चाहते हैं जो आज के पुरोहित के जीवन के लिए निर्णायक है, मनोभाव जो पुरोहितों को बल प्रदान करता है. संत पापा ने पुरोहिताई जीवन के चार स्तम्भों पर ध्यान केंद्रित किया जिसको उन्होंने चार तरह का सामीप्य कहा ˸ ईश्वर के प्रति सामीप्य, धर्माध्यक्ष के प्रति सामीप्य, अपने साथी पुरोहितों के प्रति सामीप्य एवं ईश प्रजा के प्रति सामीप्य.

तब संत पापा ने पुरोहितों का लोकधर्मियों के साथ संबंध पर चिंतन किया जिसको उन्होंने कर्तव्य नहीं बल्कि एक कृपा कहा। उन्होंने कहा कि यही कारण है कि हर पुरोहित का सही स्थान लोगों के बीच में होता है, दूसरों के साथ नजदीकी संबंध में.उन्होंने कहा कि इसका इसका मतलब लोगों की कठिनाइयों और दुखों से खुद को बचाने के बजाय उनके ‘वास्तविक जीवन‘ में शामिल होना है. संत पापा ने पुरोहितों को येसु भले चरवाहे के अंदाज को अपनाने का निमंत्रण दिया जो सामीप्य, सहानुभूति एवं कोमलता का अंदाज है.उन्होंने उन्हें अपनेपन की भावना में बढ़ने का प्रोत्साहन दिया, ऐसे युग में जब सभी के सम्पर्क में रहते हुए भी लोग अकेलापन महसूस करते हैं.

संत पापा ने धर्माध्यक्षों एवं पुरोहितों को चिंतन के लिए प्रेरित करते हुए कहा कि वे इन सभी नजदीकियों का अभ्यास किस तरह कर रहे हैं. उन्होंने जोर देकर कहा कि ‘एक पुरोहित का दिल सामीप्य को समझता है, क्योंकि उसकी निकटता का प्राथमिक रूप प्रभु के साथ है.‘संत पापा ने कहा कि ये नजदीकियाँ जिनकी मांग प्रभु करते हैं वे बोझ नहीं हैं बल्कि वरदान हैं जिनको वे हमारी बुलाहट को जीवित और फलप्रद रखने के लिए प्रदान करते हैं.वे संकेत-स्तंभ हैं जो उनके मिशनरी उत्साह की सराहना करने और उसे फिर से जगाने का मार्ग दिखाते हैं. पुरोहितीय सामीप्य स्वयं ईश्वर के सामीप्य का अंदाज है जो सहानुभूति एवं कोमल प्रेम के साथ हमेशा हमारे नजदीक रहते हैं.

संत पापा के कथन को अब पुरोहितगण तोड़-मरोड़ कर ईश प्रजा के उपर थोप देंगे.जिस प्रकार पवित्र बाइबिल में लिखित वचनों को केवल ईश प्रजा के समक्ष प्रस्तुत करते हैं ताकि सादगी और लाचारी बनकर जीवन जीते रहे.द्वितीय वाटिकन सभा में ईश प्रजा के बारे लिये गए निर्णयों को लागू नहीं करते हैं

आलोक कुमार

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