आखिर महादलित मुसहर समुदाय
के लोग
बाल मजदूर
बनने को
मजबूर क्यों?
इस मासूमों का बचपन,ईंट और बालू के साथ
बिहार
में बाल
मजदूरी जारी
है। बाल
मजदूरी को
खात्मा करने
वाले निर्मित
कानून लालफीताशाही
के शिकार
हो गया
है। तब
न कानून
को ठेंगा दिखाकर
खुलेआम बाल
मजदूरी करवाया
जा रहा
है। आश्चर्य
यह है
कि दानापुर
प्रखंड के
कुछ ही
दूरी पर
बाल मजदूर
कार्यशील हैं।
प्रखंड में
प्रखंड विकास
पदाधिकारी और
अंचलाधिकारी महोदय
बैठते हैं।
इनकी आवाजाही
इसी राह
से है।
फिर भी
सुशासन सरकार
के नौकरशाह
गांधी जी
के तीन
बंदर बन
गये हैं।
आजकल सरकार के द्वारा दानापुर-पटना
मुख्य मार्ग
के किनारे
नाला निर्माण
करवाया जा
रहा है।
नाला निर्माण
कार्य में
बाल मजदूरों
को झोंककर
बाल मजदूरी
करवाया जा
रहा है।
जिल हाथों
में स्कूल
जाने के
लिए स्कूल
बैंग रहना
चाहिए था।
अब उस
हाथ में
ईंट और
बालू रहता
है। स्कूल
जाने के
बदले बाल
मजदूर बन
गये हैं।
दानापुर प्रखंड
के कुछ
ही दूरी
पर दानापुर
तकियापर काम
कर रहे
हैं। बाल
मजदूर और
उनके परिजन
दीघा नहर
के किनारे
रहते हैं।
यह रामजीचक
मोहल्ला में
पड़ता है।
यहां के
मल्लाह मांझी
की पुत्री
सोनी कुमारी
औेर बिहारी
मांझी की
बेटी संजू
कुमारी हैं।
दोनों की
तस्वीर देखकर
उम्र का
अंदाजा लगाया
जा सकता
है। इन
दोनों के
अलावे अन्य
बाल मजदूर
भी कार्यरत
हैं।
सवाल यह उठता है कि आखिर इन मासूमों को स्कूल जाने के बदले बाल मजदूर बनना
क्यों पड़ा?
सवाल का जवाब यह होगा कि इनके परिजनों को
ठीक तरह
से रोजगार
नहीं मिल
पाता होगा।
इसके साथ
मजदूरी भी
ठीकठाक नहीं
मिल पा
रहा होगा।
खैर, इस
न्यूज को
पढ़ने के
बाद नौकरशाह
संवेदनशील बनेंगे?
इसके आलोक
में ठोस
कदम उठाकर
बाल मजदूरों
और उनके
परिजनों को
सामाजिक-आर्थिक
उत्थान करने
के लिए
कदम उठाएंगे।
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