आखिर महादलित मुसहर समुदाय
के लोग
बाल मजदूर
बनने को
मजबूर क्यों?
इस मासूमों का बचपन,ईंट और बालू के साथ
बिहार
में बाल
मजदूरी जारी
है। बाल
मजदूरी को
खात्मा करने
वाले निर्मित
कानून लालफीताशाही
के शिकार
हो गया
है। तब
न कानून
को ठेंगा दिखाकर
खुलेआम बाल
मजदूरी करवाया
जा रहा
है। आश्चर्य
यह है
कि दानापुर
प्रखंड के
कुछ ही
दूरी पर
बाल मजदूर
कार्यशील हैं।
प्रखंड में
प्रखंड विकास
पदाधिकारी और
अंचलाधिकारी महोदय
बैठते हैं।
इनकी आवाजाही
इसी राह
से है।
फिर भी
सुशासन सरकार
के नौकरशाह
गांधी जी
के तीन
बंदर बन
गये हैं।

सवाल यह उठता है कि आखिर इन मासूमों को स्कूल जाने के बदले बाल मजदूर बनना
क्यों पड़ा?
सवाल का जवाब यह होगा कि इनके परिजनों को
ठीक तरह
से रोजगार
नहीं मिल
पाता होगा।
इसके साथ
मजदूरी भी
ठीकठाक नहीं
मिल पा
रहा होगा।
खैर, इस
न्यूज को
पढ़ने के
बाद नौकरशाह
संवेदनशील बनेंगे?
इसके आलोक
में ठोस
कदम उठाकर
बाल मजदूरों
और उनके
परिजनों को
सामाजिक-आर्थिक
उत्थान करने
के लिए
कदम उठाएंगे।
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