Friday 22 March 2013

विचार गोष्ठी का उद्घाटन विधान सभा के अध्यक्ष करेंगे






बिहार भूमि सुधार अधिनियम 1950 में बना था। उसे पूर्व 19 जुलाई 1949 को अखिल भारतीय कांग्रेस समिति कुमारप्पा समिति की भूमि सुधार समिति 19 जुलाई 1949 को जमीन्दारी उन्मूलन तथा कठोर सीलिंग अधिनियमों के क्रियान्वयन की अनुशंसा की थी। किसी तिथि के बाद से बिहार के भू-धारियों को भूमि पर सीलिंग लगाने की पूर्व चेतावनी मिल गयी थी। एक सीलिंग विधेयक 1955 में लाया गया जो अधिनियमित नहीं हो सका। वर्त्तमान सीलिंग अधिनियम 1961 में पारित हो गया। 1961 का संशोधन कानून 09.09.70 के प्रभाव से लागू हुआ। अतः भू-धारियों को दो दशकों का समय कपटपूर्ण दस्तावेज बनाने हेतु मिल गया ताकि विभिन्न तरीकों से देवी-देवताओं और जानवरों के नाम से बिखरा सके। इस लिए एक्शन 5 (1द्ध (3) में विहित 22.10.1959 की तिथि की कोई तार्किक शुद्धता नहीं है। भूमि के अन्तरण, निबंधन करने का अन्यथा की जांच के लिए तिथि देने की जरूरत नहीं है पर यदि तिथि देनी भी है तो यह 09.07.1949 होनी चाहिए जिस तिथि को कुमारप्पा समिति ने अपनी रिपोर्ट सौंपी थी।

इस अधिनियम के अन्तर्गत भू-हदबंदी कानून में जमीनदारों को कृषि योग्य अधिकतम सीमा के अलावा खाद्यान एवं बाग-बगीचा के भूमिस्वामित्व कानून की गारंटी दी गयी। दूसरी ओर राज्य मे 80 प्रतिशत से अधिक खेतीहर मजदूर जो भूमिहीन दलित परिवार के खेतीहर मजदूरों का आवासीय भूमि एवं जोत की भूमि का कानूनी हक सूनिश्चित नही की गयी।

   राज्य के दलित समुदायों का आवासीय भूमि एवं जोत भूमि की कानूनी हक सूनिश्चित कराने हेतू 23 मार्च 2013 को 10.00 बजे दिन से, ठाकुर प्रसाद सामुदायिक भवन, किदवईपुरी, में आवासीय भूमि एवं जोत की भूमि का स्वामित्व दलित समुदायों का कानूनी हक प्राप्त कराने के संबंध में एक विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया है।

   इस विचार गोष्ठी की उद्घाटन उदय नारायण चौधरी, अध्यक्ष, बिहार विधान सभा के द्वारा की जायेगी तथा मुख्य अतिथि श्याम रजक ,मंत्री खाद्य उपभोक्ता संरक्षण विभाग होंगे। इस विचार गोष्ठी में दलित अधिकार मंच संगठन के 28 जिलों के जिला अध्यक्ष अन्य दलित संगठनों के अलावा राष्ट्रीय दलित भूमि अधिकार अभियान के राष्ट्रीय महासचिव ललित बाबर शिरकत करेंगे। इस बात की जानकारी कपिलेश्वर राम ,दलित अधिकार मंच, बिहार के प्रदेश अध्यक्ष ने दी है। 



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