राजीव
गांधी की पुण्य
तिथि के अवसर
पर बिहार आर्थिक
अध्ययन संस्थान के सभागार
में
आज मानवाधिकार
संरक्षण प्रतिष्ठान के तत्वावधान
में बिहार आर्थिक
अध्ययन संस्थान के सभागार
में पूर्व प्रधानमंत्री
राजीव गांधी की
पुण्य तिथि के
अवसर पर आयोजित
गोष्ठी को संबोधित
करते हुए प्रतिष्ठान के राष्ट्रीय
अध्यक्ष डा. जगन्नाथ
मिश्र, पूर्व मुख्यमंत्री एवं
पूर्व केन्द्रीय मंत्री
ने कहा कि
देश के सबसे
युवा प्रधानमंत्री और
कम्प्यूटर क्रांति के जरिये
देश को सूचना
एवं प्राद्योगिकी के
सिंहासन पर बैठाने
वाले राजीव गांधी
को वाकई श्रद्धांजलि
दे रहे होते
यदि उनके हत्यारों
की सजा अधर
में नही होती।
वे 21 मई 1991 को
कोयम्बदुर में लिट्टे
आतंकवादियों के मानवबम
के शिकार हुए
थें। किन्तु इस
मामले में 21 वर्ष
बाद भी अंतिम
न्याय नही हो
पाया है। उच्चतम
न्यायालय ने 5 मई
1999 को अपना फैसला
सुना दिया और
दोषियों को फाँसी
कि सजा दी
गई थी। उनमें
एक को नलिनी
कि दया याचिका
पर तत्कालिन राष्ट्रपति
प्रतिभा देवी सिंह
पाटिल उसकी फांसी
कि सजा आजीवन
कारावास में बदल
दी थी। देश
का दुर्भाग्य है
कि राष्ट्र अस्मिता
और उसकी संप्रभुता
के साथ खेलवाड़
करने वाले आतंकवादियों
को सजा देने
पर भी राजनीति
करनेे लगी है।
मुम्बई में 26 नवम्बर को
हुए आतंकी हमले
में दोषी अफजल
कसाब को फंदे
पर लटकाने के
लिए कई बार
संसद में शोर
शरावें हुए। संसद
भवन पर हमले
के आरोपी अफजल
गुरू को फांसी
देने से संबंधित
मामले न जाने
कितनी बार संसद
में उठा और
अंततः सजा मिली।
राजीव गांधी के
हत्यारों के मामले
में भी कुछ
इसी तरह कि
स्थिति है। राजीव
गांधी का परिवार
इसे अपनी भावना
से जोड़ कर
संवेदनशील दर्जा देकर चुप
है। अब डी.एम.के.
के प्रमुख राजीव
गांधी हत्या कांड
से जुड़े शेष
अन्य तीनो अपराधियों
को फांसी न
देने कि मुहिम
चलाती है। डा.
मिश्र ने कहा
कि विडंबना यह
है कि 1991 को
राजीव गांधी कि
हत्या हुई 1 वर्ष
के भीतर आरोप
पत्र दाखिल हो
गये। 7 साल में
अदालत का निर्णय
हो गया। लेकिन
फांसी कि सजा
अभियुक्तों कि दया
याचिका पर राष्ट्रपति
का निर्णय आने
में 11 वर्ष लग
गये किन्तु इस
मामले का अब
तक कोई न्याय
नही हो पाया।
यह भारत की
प्रशासनिक, न्यायिक एवं राजनीतिक
व्यवस्था के लिए
अत्यंत ही विस्मयकारी
और दुखदायी है।
राजीव
गांधी ने अपने
नाना पंडित नेहरू
के पद चिन्हों
पर चलते हुए
आण्विक, निशस्त्रीकरण, सम्राजवाद और उपनिवेशवाद
तथा रंगभेद नीति
के विरोध, पराधीन देशों
की स्वतंत्रता की
हिमायत, विश्व में शांति
की स्थापना तथा
पड़ोसी देशों के
साथ भारत के
संबंधों को सुधारने
पर अधिक जोर
दिया। राजीव गांधी
की यह परिकल्पना
थी कि एक
ओर भारत का
श्रेष्ठतम उन्नयन हो और
वह राजनीतिक, आर्थिक,
सैनिक, सामाजिक, नैतिक आदि
दृष्टियों से शीर्ष
पर रहें, विश्व
का आध्यात्मिक और
वैचारिक नेतृत्व करें तो
दूसरी ओर वे
एक शोषण रहित,
प्रेमपूर्ण, सहयोगात्मक और लोकतांत्रिक
विश्व की परिकल्पना
करते थे। वे
एक ऐसे अंतर्राष्ट्रीय
संगठन की परिकल्पना
चाहते थे, जो
अंतर्राष्ट्रीय समस्याओं का समाधान
आम सहमति से
करे। वस्तुतः वे
एक स्वस्थ और
सुन्दर भारत के
साथ-साथ एक
स्वस्थ और सुन्दर
विश्व की परिकल्पना
करते थें। परंतु
इस समय देश
के आन्तरिक सुरक्षा
के लिए आतंकवाद,
नक्सलवाद और माओवाद
संगठन ही बड़ी
चुनौती है।