भगवान भास्कर के
आगमन और भगवान
दिवाकर के जाने
के पश्चात महिलाएं
और बच्चियां शौचालय
जाने को मजबूर
अगर जिला
प्रशासन सक्रिय हो जाए
तो महादलितों की
समस्याएं अंत
हो जाए
जहानाबाद। आजादी के
65 साल के बाद
भी महादलित मुसहर
समुदाय की तकदीर
और तस्वीर नहीं
बदली। आज भी
कल्याणकारी सरकार के राज्य
में बटईया में
जमीन और बटईया
में बकरी और
भैंस रखकर आजीविका
चलाने को मजबूर
हो रहे हैं।
महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण
रोजगार गारंटी अधिनियम के
तहत काम नहीं
मिलने से मजदूर
पलायन होने को
बाध्य हो रहे
हैं। खेत में
मजदूरी करने में
4 किलोग्राम चावल अथवा
आटा मिलता है।
इसके सहारे महादलित
जीवन चला रहे
हैं।
यह
हाल जहानाबाद प्रखंड
में स्थित सिकरिया
ग्राम पंचायत के
रसलपुर गांव के
रसलपुर मुसहरी का है।
इस ग्राम पंचायत
की मुखिया प्रभा
देवी हैं। जो
अपने घर और
रसोईघरों के कार्य
में अधिक समय
दिया करती हैं।
एमपी (मुखिया पति)
विजेन्द्र कुमार ही पंचायत
के कार्य देखते
हैं। रसलपुर मुसहरी
में समाज के
किनारे ठहरे महादलित
मुसहर समुदाय के
55 परिवार के लोग
रहते हैं। इनकी
जनसंख्या 225 है। इस
मुसहरी में 4 पुश्त से
महादलित रहते हैं।
मुसहरी के गिरजा
मांझी कहते हैं
कि उनके बाबा
छठ्ठू मांझी,खरौज
नामक गांव में
रहते थे। इसके
बाद स्व0 छठ्ठू
मांझी के पुत्र
लल्लू मांझी रसलपुर
मुसहरी में आकर
रहने लगे। उस
समय में केवल
दो ही परिवार
रहते थे। स्व0
लल्लू मांझी के
पुत्र बालगोन्विद मांझी
भी रहे। इसके
बाद स्व0 बालगोविन्द
मांझी के पुत्र
गिरजा मांझी भी
रहते हैं। दुख
के साथ गिरजा
मांझी ने खुलासा
किया कि जब
उनके बाबा छठ्ठू
मांझी खरौज गांव
में रहते थे।
उनके साथ तीन
एकड़ घर और
खेत की जमीन
थी। यह सब
सम्पत सिंह ने
हथिया लिये हैं।
केवल हथिया ही
नहीं लिये परन्तु
सम्पत सिंह ने
तीन एकड़ घर
और खेत की
जमीन को किसी
के हाथ बेच
भी दिये हैं।
गिरजा मांझी ने
कहा कि उस
समय सम्पत सिंह
ने कागजात पर
अंगूठा का निशान
देने का कह
रहे थे। उसका
विरोध करके गिरजा
मांझी ने अंगूठा
निशान लगाने से
इंकार कर दिये।
अगर गिरजा मांझी
के कथन सत्य
है तो जहानाबाद
प्रखंड के सीओ
को अवश्य ही
तहकीकात करनी चाहिए
ताकि दूध का
दूध और पानी
का पानी हो
सके। गिरजा मांझी
के पास किसी
तरह की कागजात
नहीं है।
खैर,अभी रसलपुर
मुसहरी में जिस
जमीन पर महादलित
रहते हैं। वह
जमीन भूमिहार और
मुस्लिम की है।
उसका रकवा एक
एकड़ है। सरकार
के द्वारा प्रचारित
और प्रसारित 3 डिसमिल
जमीन देंगे। यहां
पर अमल नहीं
किया जा रहा
है। वासगीत पर्चा
भी निर्गत नहीं
किया गया है।
महादलितों ने बताया
कि दो दशक
पूर्व रणवीर सेना
के द्वारा 2 मुसहरों
को गोली से
छलनी कर देने
के बाद मुसहरी
छोड़कर मुसहर भाग
गये थे। राजनीति
और सामाजिक हस्तक्षेप
करने के बाद
मुसहर आकर रहने
लगे। उस समय
पूर्व मुख्यमंत्री लालू
प्रसाद यादव सत्तासीन
थे। उनकी पहल
पर इंदिरा आवास
योजना के तहत
45 मकान बनाने की स्वीकृति
मिली। योजना मंद
के अनुसार 20 हजार
रूपए व्यय किया
गया। महादलितों को
इन्दिरा आवास योजना
की राशि मिलते
ही ईंट और
सिमेंट की कीमत
आसमान पर चढ़
गयी। उसका परिणाम
यह निकला कि
मकान बनाने वाले
महादलितों का दम
निकलने लगा। हाथ
खड़ा कर दिल
की अरमान आंसूओं
में बहाने लगे।
इनका मकान अधूरे
ख्याब की तरह
ही अधूरे रह
गया है। मकान
लिंटर तक आकर
ठहर गया।
उसी
समय से 45 मकान
अधूरा रह गया।
पुआल आदि लगाकर
रहते हैं। बाद
में केवल 2 मुसहर
छत ढालने में
सफल हो सके
हैं। 43 मकान अभी
भी अधूरा है।
निकट भविष्य में
बनने की संभावना
नहीं है। जहां
के लोग स्तरीय
दाल,भात और
सब्जी नहीं खा
पा रहे हैं।
भात और चौखा
खाकर जीवन बीता
रहे हैं। उनसे
किस तरह से
उम्मीद की जा
सकती है कि
मंहगाई के मौसम
में अधूरे मकान
को पूर्ण कर
सके। इस बीच
एनडीए सरकार के
द्वारा घोषणा की गयी
थी कि अधूरा
मकान को पूरा
करने के लिए
प्रति मकान 10 हजार
रूपए दिये जाएंगे।
मगर महादलितों को
देने में जहानाबाद
के जिला प्रशासन
सहायक नहीं बन
रहे हैं। अगर
जिला प्रशासन सक्रिय
हो जाए तो
महादलितों की समस्याएं
अंत हो जाए।
यहां
तो पूर्व मुख्यमंत्री
लालू प्रसाद यादव
की विफलता को
दर्शाने की भरपूर
तैयारी कर ली
गयी है। इसे
आप क्या कहेंगे?पूर्व मुख्यमंत्री लालू
प्रसाद यादव के
शासनकाल में 45 मकान इंदिरा
आवास योजना के
तहत बनाया गया।
अपनी पूरी शक्ति
और पूरी पूंजी
लगाने के बाद
भी महादलित मकान
नहीं बना सके।
अभी मकान का
सपना पूरा नहीं
हो सका है।
बस मेरा जीवन
कोरा कागज, कोरा
ही रह गया
की तर्ज पर
यहां पर अधूरे
ख्याब की तरह
अधूरे ही इंदिरा
आवास योजना के
द्वारा निर्मित मकान रह
गया। वहीं वर्तमान
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने
आम लोगों को
मुसहरी तक जाने
और टहलने के
लिए कीचड़युक्त गली
को पक्कीकरण करा
दिया है। और
तो और दो
सौर उर्जा से
बत्ती लगा दिया
गया है। ताकि
आम लोग दिन-रात राजनीति
के बड़े भाई
लालू प्रसाद यादव
के विफलता को
अच्छी तरह से
निहार सके।
यह
डंके की चोट
पर कही जा
सकती है कि
सरकार के द्वारा
विकास के नाम
पर अधूरा मकान
दिया गया है।
55 महादलित परिवारों को सर्वेकर्ताओं
ने ठीक तरह
से सर्वे किया
ही नहीं है।
बदहाल और बेसहारे
मुसहरों को आंख
बन्द करके पीला
और लाल कार्ड
देने का निर्धारण
करके 15 को
पीला और 40 को
लाल कार्ड वितरित
कर दिया। इनके
कुहरकत के कारण
से महादलितों के
बीच में आक्रोश
और चेहरा लालकर
तनमना जाता है।
हां, जरूर ही
प्रत्येक परिवार को महात्मा
गांधी नरेगा के
तहत 55 जॉबकार्ड बना दिया
गया है। मगर
जॉबकार्डधारियों को काम
उपलब्ध न करवाया
जाता है। मगर
कुछ को काम
दिया जाता है
तो उसका दाम
नहीं दिया जाता
है। इसका भुक्तभोगी
गिरजा मांझी और
अन्य हैं। 15 दिनों
तक काम कराया
गया और मजदूरी
दिया नहीं गया।
इसके अलावे रोजगार
सेवक की अकर्मण्यता
के कारण 10 श्रमिक
पलायन करने को
बाध्य हो गये।
मनरेगा चलाने वाले पलायन
रोकने में नाकामयाब
हो रहे हैं।
वहीं 20 परिवारों को राष्ट्रीय
स्वास्थ्य बीमा योजना
के तहत स्मार्ट
कार्ड निर्गत किया
गया है। शेष
लोगों को 3 माह
के बाद स्मार्ट
कार्ड उपलब्ध करा
देंगे परन्तु आजतक
ऐसा नहीं कर
सके। सरकार के
द्वारा चार चापाकल
बनाया गया। दो
चालू व्यवस्था में
है और दो
मवेशियों को बांधने
लायक खुट्टा बन
गया है। शौचालय
की व्यवस्था नहीं
है। भगवान भास्कर
के आगमन और
भगवान दिवाकर के
जाने के पश्चात
महिलाएं और बच्चियां
शौचालय जाने को
मजबूर हैं। यहां तो इन लोगों को प्रत्येक दिन कष्ट उठाना पड़ रहा है।
यह
जानकार हैरत में
पड़ जाएंगे कि
4 पुश्त से रहने
वाले महादलितों में
सिर्फ सिद्धेश्वर मांझी
के पुत्र सुनील
मांझी मैट्रिक पास
करके आई.ए.
कर पाने में
सफल हो पाये।
कुछ विवादों के
कारण सुनील मांझी
की मौत गोली
मारने से हो
गयी। सिद्धेश्वर मांझी
को पेंशन मिलता
है और उनकी
60 वर्ष की पत्नी
फूलवसिया देवी को
पेंशन नहीं मिलता
है। यहां के
लालो देवी को
यक्ष्मा बीमारी हो गयी
है। वह दवा
छोड़-छोड़ कर
खाती हैं। यहां
की आंगनबाड़ी सेविका
संतोषी देवी का
कहना है कि
आशा कार्यकर्ता के
द्वारा डाट्स प्रोग्राम के
तहत यक्ष्मा रोगियों
को दवा खिलाती
हैं। एक कुष्ठ
रोगी हैं। इनका
नाम सुरेन्द्र मांझी
हैं। बीमारी से
चंगा होने के लिए
1 साल और 5 माह
का कोर्स पूरा
कर दिया है।
तब भी ठीक
नहीं हो पा
रहा है। कुष्ठ
का प्रभाव पैर
और हाथ से
देखा जा सकता
है जो विकृति
की ओर अग्रसर
है। संतोष की
बात हैं कि
इनको पेंशन मिल
रहा है। गंदगी
के कारण डायरिया
का कहर देखा
जा सकता है।
जब महादलित मर
जाते हैं तो
बगल में चिरारी
है वहीं पर
जाकर गाड़ देते
हैं। अगर रकम
हैं तो पटना
में ले जाकर
गंगा नदी के
किनारे पंचतत्व में विलिन
कर देते हैं।
सबसे बड़ा ‘रूपया’
का प्रभाव देखा
जाता है।
हां, आजादी
के 65 साल के
बाद भी महादलित
मुसहर समुदाय की
तकदीर और तस्वीर
नहीं बदली है।
आज भी कल्याणकारी
सरकार के राज्य
में बटईया में
जमीन और बटईया
में बकरी और
भैंस रखकर आजीविका
चलाने को मजबूर
हो रहे हैं।
दो
बीघा जमीन में
चार हजार रूपए
खर्च करके पैदावार
किया जाता है।
इसमें किसान के
द्वारा सिर्फ खाद और
डीजल में व्यय
करने वाली राशि
में फिफ्टी-फिफ्टी
की जाती है।
इसके अलावे जो
बटईया में खेत
लेता है। उसे
व्यय करना पड़ता
है। जब पैदावार
होता है तो
उसमें फिफ्टी-फिफ्टी
की जाती है।
वहीं बटईया लेने
वाले से
बकरी और भैंस
लेने पर प्रथम
बच्चा होने पर
बच्चा रखकर बकरी
और भैंस को
बटईया लेने वाले
को वापस कर
दिया जाता है।
महात्मा गांधी राष्ट्रीय
ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम
के तहत काम
नहीं मिलने से
मजदूर पलायन होने
को बाध्य हो
रहे हैं। खेत
में मजदूरी करने
में 4 किलोग्राम चावल
अथवा आटा मिलता
है। इसके सहारे
महादलित जीवन चला
रहे हैं।
निर्धनतम क्षेत्र नागरिक
समाज के सहयोग
से प्रगति ग्रामीण
विकास समिति के
द्वारा इस क्षेत्र
में कार्य किया
जाता है। समिति
के जहानाबाद प्रखंड
के समन्वयक नागेन्द्र
कुमार का कहना
है कि बेसहारों
का सहायक सरकार
है। सरकार के
पास कानून और
योजना है। गैर
सरकारी संस्थाओं के द्वारा संवाद,
संघर्ष और रचना
का कार्य किया
जाता है। इस
रसलपुर मुसहरी में समस्याओं
का अम्बार है।
सबसे पहले सरकारी
नियमानुसार आवासीय भूमिहीनों को
जमीन देनी चाहिए।
उनको अगर बासभूमि
है। तो बासगीत
पर्चा देनी चाहिए।
अभी यहां पर
सर्वें करके अधूरा
मकान को पूरा
करने के लिए
राशि उपलब्ध करानी
चाहिए।
इस
समय इंदिरा आवास
योजना से मकान
निर्माण करने के
लिए नक्सल प्रभावित
क्षेत्र में 75 हजार रूपए
मंजूर किये गये
है। जो दो
बार में दिया
जाएगा। इस पर
सरकार की नजर
होनी चाहिए कि
दलालों को प्रवेश
न हो। इसके
अलावे ईंट,सिमेंट,बालू,छड़
आदि की कीमत
में उछाल न
हो। मगर ऐसा
होता है तो
विरमित होने वाली
राशि से भी
गरीबों का मकान
न बन सकेगा।
Alok Kumar