महादलितों को बंधुआगिरी से मिल गयी मुक्ति
हिलसा। पलायन वरदान साबित होने लगा है। जिन परिवार के लोग बंधुआ मजदूर बने थे। सूबे से बाहर जाकर काम किये। इन परिवारों को गांवघर के खेत और खलियान में काम नहीं मिल रहा था। और तो और मनरेगा में भी बेेहतर ढंग से रोेजगार नहीं मिल पा रहा था। इसके आलोक में काफी संख्या में नौजवान पलायन कर गये। प्रदेश से बाहर जाकर काम करने लगे और जो वहां मजदूरी मिलती है, उसे बचत करने लगे। दैनिक खर्च के बाद बच गयी रकम को संग्रह करने लगे। उन बचत की गयी राशि के बल पर हिलसा में बने बंधुआ मजदूर परिवार के लोगों को बंधुआ मजदूरी की दास्ता से बाहर निकालने में सफल हो गये।
यह हाल नालंदा जिले के प्रखंड हिलसा, पंचायत मिर्जापुर और गंाव चमंडी का है। यहां पर महादलित रविदास के गरीब लोग 55 घरों में रहते हैं। सब के सब बीपीएल श्रेणी में हैं। 9 को अंत्योदय और 46 को लाल कार्ड निर्गत किया गया है। राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना के तहत 40 स्मार्ट कार्ड निर्गत किया गया है। महात्मा गांधी नरेगा के तहत 35 जॉब कार्ड निर्गत किया गया है। इनको मनरेगा में काम नहीं मिलता है। इसके आलोक में यहां से 20 नौजवान पलायन करके चेन्नई चले गये हैं। वहां पर उनको धांगा कम्पनी के द्वारा 2 सौ रूपए मजदूरी के रूप में मिलता है।
बंधुआ मजदूर मिथिलेश रविदास के पिता टोहन रविदास ने उपेन्द्र यादव से 4 सौ रूपए लिये थे। टोहन रविदास की मौत के बाद पुत्र मिथिलेश रविदास बंधुआ मजदूर बन गया। बंधुआ मजदूर बनने के बाद उपेन्द्र यादव ने 12 कट्टा जमीन दिये। मालिक के द्वारा बंधुआ मजदूर को केवल पम्पिग मशीन दिये। इसे चलाने के लिए डीजल भी दिये। इसके अलावे बीज,खाद,मजदूरी आदि पर खर्च बंधुआ मजदूर को ही करना पड़ा। उपेन्द्र यादव के पास ही बैजनाथ रविदास भी बंधुआ मजदूर थे। अन्य प्रदेशों में जाकर काम किये और जो मजदूरी मिली। उससे अपने परिवार के लोगों को बंधुआ मजदूरी की दास्ता के दलदल से बाहर निकालने में सफल हो गये।
ननहक रविदास ने कहा कि जो व्यक्ति बंधुआ मजदूर नहीं हैं। उनको खेत में मजदूरी करने के एवज में डेढ़ किलो चावल, आधा किलो सत्तू और ढाई सौ ग्राम रोटी बनाने के लिए आटा दिया जाता है।
आलोक कुमार